Sunday 24 March 2013

तेरी यादों के साथ

तेरी यादों के साथ 
रात का गुजरना 
कुछ और ही होता हैं 
मेरी कविताये 
बिस्तर पर मुझसे 
नाराज होकर 
करवट बदलती रहती हैं 
और हवा का हर झोंका 
मेरे बदन पर 
तुम्हारी अनकही बातों को 
लिखती --रहती हैं 
थिड़कियों  से झांकता पेड़ 
तुम्हें आईना समझकर 
देखता रहता हैं 
खुदा के फरिस्तों को 
वहम हो जाता हैं 
कहिं कोई दूसरी दुनियां तो 
नहीं बनने जा रही हैं 
तेरी यादों के साथ रात गुजारना 
कुछ और ही होता हैं ।।

नीतीश मिश्र 

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