Tuesday 14 June 2016

मैं रेल की तरह सभ्य होना चाहता हूँ

मैं रेल की तरह सभ्य होकर 
तुमसे प्यार करना चाहता हूँ 
मैं रेल की तरह तुम्हारे शहर में सिटी बजाते हुए 
धुंआ  उड़ाते हुए आना चाहता हूँ 
सोचो !
अगर मैं रेल की तरह तुम्हे सभ्य होकर प्यार करूँ तो 
सारा आसमान कुछ देर के लिए तुम्हारे छत पर उतर सकता हैं 
और तुम पूरी रात चाँद में दबी  हुई हरी घास बिनते  रहना 
मैं जानता  हूँ 
अगर ! 
तुम्हारे शहर में 
मैं आत्मा या भाषा बनकर आऊंगा तो कभी भी मार दिया  जाऊंगा 
अगर मैं तुम्हारे शहर में सड़क बनकर आऊंगा 
तो लोग मेरे प्यार का मजाक उड़ाएंगे 
अगर पतंग बनकर आऊंगा तो हवा में ही दफ़न हो जाऊंगा 
जब भी रेल की तरह आऊंगा तो तुम आसमान की तरह मुझसे मिलोगी और कुछ देर के बाद 
हम रोशनी में तब्दील जाएंगे 
मैं अब रेल की तरह  सभ्य होना चाहता हूँ 
तुम केवल आसमान की तरह फैलना  सीख  जाओं ॥ 
नीतीश  मिश्र 

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