Wednesday 8 March 2017

नमक पर प्रेमपत्र लिखता हूँ

मैं कागजों पर नहीं 
नमक पर प्रेमपत्र लिखता हूँ 
जिससे प्रेमपत्र का स्वाद 
सदियों तक सुरक्षित रहे 
हाँ 
मैं अब तुम्हे नमक के टुकड़ों पर प्रेमपत्र लिखता हूँ
ताकि मेरा प्रेमपत्र
समुद्र भी पढ़ सके
अनाज भी
इंसान भी
और बर्तन भी आग भी।।

Friday 21 October 2016

प्रश्न दीवारों में जीवित हैं .

सारे प्रश्न 
अभी भी दीवारों में 
जीवित हैं ......
रात भर मैं 
अपनी आत्मा से प्रश्नो की केंचुल उतारकर 
दीवारों पर सजाता रहता हूँ
मेरी दीवारें
मेरी आत्मकथा हैं

मैं दिन भर धरती पर 
उत्तर की खोज में साईकिल से भटकता रहता हूँ ...... 
इस क्रम में आँखों में कई बार इतिहास  चुभता हैं 
तो कई बार जख़्म  आईने में दिखाई देने लगते हैं ... 
सारी रात 
मैं अपने आत्मा के खाते में 
भागी हुई लड़कियों का रिपोर्ट दर्ज करता हूँ 
सारी रात टूटे हुए खिलौनों में एक रंग भरता रहता हूँ 
इसी बीच पता चलता हैं 
एक सांप मर गया 
जिसने पिछले साल रामअवतार  को मुक्ति का मार्ग दिखाया 
मैं सांप की मरी हुई आँखों में अपनी तस्वीर देखता हूँ 
और सोचता  मैं  इसकी आँखों से कैसे बच जाता था 
गेहुंअन सांप असंख्य बार मेरे कमरे में आता था 
और घंटो मेरी तरह गंभीर होकर 
मेरे प्रश्नों को पढता था 
फिर कुछ देर तक हँसता था 
मैं रात भर सांप के देह को देखता रहा 
और वह रात भर मुझे देखता रहा 


Friday 7 October 2016

एक बार गहरी नींद सोना चाहता हूँ

मैं युद्ध पर जाने से पहले 
एक बार गहरी नींद सोना चाहता हूँ 
और नांव के एकांत को 
अपने भीतर भरना चाहता हूँ 
मैं युद्ध पर जाने से पहले एक बार 
अपने घर की नीव में उतरना चाहता हूँ 
और वहां माँ की रखी हुई आस्था को 
एक नया अर्थ देना चाहता हूँ
मैं युद्ध पर जाने से पहले 
नींद में एक प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ 
मैं एक बार गंगा की रेत से मिलना चाहता हूँ .... 
मैं युद्ध पर जाने से पहले एक बार 
पीपल की पत्तियो पर जमी स्मृतियों को 
अपने भीतर भरना चाहता हूँ 
दीवारों पर निर्मित इतिहास को भाषा से रंगना चाहता हूँ 
मुझे मालूम हैं अगर 
मैं युद्ध से वापस नहीं लौटा 
तो कोई नहीं पूछेगा 
मेरे टूटे हुए खिलौनों का क्या अर्थ हैं 

Friday 5 August 2016

मेरा प्रेमपत्र लेकर कबूतर उड़ रहा हैं

मैं तुमको ऐसा प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जिसे कबूतर लेकर सरहदों के पार   उड़ सके
आसमान उसमे कुछ रंग भर सके
देवता प्रेमपत्र का वाचन कर सके
गरूण देखे तो कुछ देर तक बंद कर दे
अपनी उड़ान .....
इंद्र देखे तो उसे  भोग से घृणा हो जाए
वृहस्पति देखे तो टूट जाए उसका  अंहकार
मेनका देखे तो प्रायश्चित करने लगे......
गणेश देखे तो
मनुष्य होने के लिए
प्रार्थना में डूब जाए .....
मैं तुमको धरती से ऐसा प्रेमपत्र लिखना  चाहता हूँ
जिसे ऋषियों को यह कहना पड़े की
मुक्ति से ज्यादा कहीं पवित्र प्रेमपत्र लिखना हैं
सुनो ब्रह्मा !
मैं प्रेमपत्र में अपना प्यार भी लिखूंगा
अपनी गरीबी भी लिखूंगा
अपने खेत की हरियाली  भी लिखूंगा
अगर कुछ नहीं लिखूंगा तो केवल धर्म
जब मेरा प्रेमपत्र लक्ष्य तक पहुंचेगा
तब समझ लेना धरती पर मनुष्य हारता नहीं हैं
लेकिन मैं जानता  हूँ
तुममे से हर कोई
रोकेगा कबूतर को  ......
जब कबूतर प्रेमपत्र देकर वापस लौट रहा होगा
तब तुम लोग उसकी हत्या की नीति बना रहे होंगे
जिससे यह कबूतर दुबारा धरती से कोई अन्य प्रेमपत्र लेकर उड़ न सके
लेकिन मैंने सभी कबूतरों को दे दिया हूँ
अपना एक एक प्रेमपत्र ......
क्या ऐसे में तुम लोग आसमान में सारे कबूतरों को मार दोगे ?
बोलो देवताओं। .....


Thursday 4 August 2016

इस सदी का प्रेमपत्र लिखना ही धर्म है

केवल मैं ही तुम्हें प्रेमपत्र नहीं लिखता हूं
मेरे प्रेमपत्र में मेरा शहर भी शामिल होता है
मेरे शहर की हवा भी उपस्थित रहती है
मेरे कमरे का अंधेरा भी प्रेमपत्र में शामिल हो जाता है
मैं जब खुश होता हूं या जब दुखी रहता हूूं
या जब  सुख- दुख कुछ भी नहीं होता है तब भी
मैं प्रेमपत्र लिखता हूं
शायद! इस सदी का प्रेमपत्र लिखना ही धर्म हो
धरती का सबसे बड़ा अविष्कार प्रेमपत्र लिखना ही रहा हो
जिसने भी प्रेमपत्र लिखने की कला का इजाद किया होगा
वह धरती का सबसे सभ्य मनुष्य रहा होगा
आज भी मैं उस आदमी के बारे में कल्पना करता रहता हूं
और उस लड़की के बारे में सोचता हूं
जिसके खाते में दर्ज हुई होगी सबसे पहले प्रेमपत्र के प्राप्त होने की खुशी
मैं जब भी तुम्हे प्रेमपत्र लिखकर खाली होता हूं
तब मैं दूसरे प्रेमपत्र के बारे में सोचने लगता हूं
मेरे लिए प्रेमपत्र बिल्कुल पानी की तरह है
प्रेमपत्र हर समाज का मनुष्य लिखता आया है
ऋषियों से लेकर आदिवासियों ने भी लिखा है
धरती पर रंग तभी तक बचे रहे
जब - तक हम प्रेमपत्र लिखते रहे
अगर हमे गंगा को या हिमालय को
जंगह को या अंधेरे को
आकाश को या धरती को बचाना है तो
हमे प्रेमपत्र लिखना ही होगा।।

मैं कविता नहीं लिखना चाहता

अब मैं कविता नहीं लिखना चाहता 
या कविता लिखने की मुझमे योग्यता नहीं है 
अब मैं केवल और केवल 
प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ 
प्रेमपत्र सिर्फ मैं उस लड़की को नहीं लिखना चाहता हूँ 
जो मुझसे प्रेम करने की साहस रखती थी
बल्कि उस लड़की को भी लिखना चाहता हूँ
जिससे मैं प्रेम करने का साहस रखता था
बल्कि उस लड़की को भी लिखना चाहता हूँ
जो शहर में नदी से भी अधिक खूबसूरत थी
लेकिन मैं उससे प्रेम नहीं कर पाया
मैं उस कपास के पौधे को भी प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जिसके धागे का वह वस्त्र पहनती थी
मैं उस घर को भी प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जिसमे वह रहा करती थी
मैं उस देवता को भी प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जिससे वह मेरे लिए सिर्फ मेरे लिए प्रार्थना करती थी
मैं उस विश्वविद्यालय को भी प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जहाँ वह पढ़कर सभ्य होना सिख रही थी
मैं उस बिस्तर को भी प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जहाँ से वह पूरी रात सिर्फ मेरे बारे में सोचती थी
मैं उस गांव को प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जहाँ से वह चलकर सिर्फ मेरे लिए खाली हाथ आई थी
मैं उसके विषय को प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जो उसे इतना अवकाश देता था की वह मेरे बारे में सोच सके
अब मैं कविता नहीं लिखना चाहता हूँ
अब मैं केवल और केवल प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ।
मैं केवल सुबह ही नहीं बल्कि भोर में जब आसमान में तारे सो चुके होते है उस वक्त भी उसे प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
मैं केवल बसंत में ही नहीं बल्कि खड़ी दुपहरी में रेत के बीच भी प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ।।

Wednesday 3 August 2016

जूते की शिकायत

बारिश से पूरा शहर खुश था 
सबसे अधिक शहर के नाले खुश थे 
साल में कुछ ही दिन तो होते है 
जब नालों की प्यास बुझती है
प्यास बुझने के बाद
नाले शहर के विवेक को बचाने में जूट जाते है
अगर नाले शहर में न हो
तब शहर का विवेक मर जाता है
कभी कभी बहुत जरूरी होता है नालों का होना
बारिश में जहाँ पूरा शहर खुश था
वही चूल्हें उदास थे
चूल्हें खो चुके थे अपना चेहरा
अपना धर्म ......
टूटे हुए चूल्हें बगावत की मुद्रा में
आसमान से नजरें मिला रहे थे
बारिश में पेड़ भींगकर एक नई भाषा को जन्म दे रहे थे
वहीँ इस बारिश में
शहर के तमाम जूते
बादल से शिकायत कर रहे थे
जबकि जूतों ने कभी अन्य मौसम के खिलाफ
कभी शिकायत नहीं किए
लेकिन सदी में पहली
बार जूतों ने शिकायत दर्ज कराई है
जूते मोची की भी शिकायत कर रहे थे
मोची को जूता बनाने से पहले हमारे बारे में कुछ सोचना चाहिए था
बारिश में सबसे अधिक नुकसान जूता को ही उठाना पड़ता है।।