आज मैं काशी से दूर ...
फिर भी मैं अपने प्रेम के पास हूँ
मैंने काशी में लिखा था
अपने माँ के साथ
अपने जीवन का पहला प्यार ...
जबकि आज काशी में कबीर नहीं हैं
इसके बावजूद भी वहां कबीर का प्यार
लोगों के जुबान पर पान की लाली की तरह
सभी ने अपने होंठों पर सजा कर रखा हैं ....
कबीर ने लोई के लिए लिखी
बहुत सी प्रेम की कविताएं
पर लोई नहीं लिख पाई कबीर के लिए कोई भी कविता ....
लोई सिर्फ प्रेम को अपने गर्भ में पालती रही
और आज काशी इसलिए चमक रही हैं
क्योकि लोई एक ज्योति की तरह
गंगा में बह रही हैं ..........
फिर भी मैं अपने प्रेम के पास हूँ
मैंने काशी में लिखा था
अपने माँ के साथ
अपने जीवन का पहला प्यार ...
जबकि आज काशी में कबीर नहीं हैं
इसके बावजूद भी वहां कबीर का प्यार
लोगों के जुबान पर पान की लाली की तरह
सभी ने अपने होंठों पर सजा कर रखा हैं ....
कबीर ने लोई के लिए लिखी
बहुत सी प्रेम की कविताएं
पर लोई नहीं लिख पाई कबीर के लिए कोई भी कविता ....
लोई सिर्फ प्रेम को अपने गर्भ में पालती रही
और आज काशी इसलिए चमक रही हैं
क्योकि लोई एक ज्योति की तरह
गंगा में बह रही हैं ..........