Friday 31 May 2013

बनारस में लोई

आज मैं काशी से दूर ...
फिर भी मैं अपने प्रेम के पास हूँ
मैंने काशी में लिखा था
अपने माँ के साथ
अपने जीवन का पहला प्यार ...

जबकि आज काशी में कबीर नहीं हैं
इसके बावजूद भी वहां कबीर का प्यार
लोगों के जुबान पर पान की लाली की तरह
सभी ने अपने होंठों पर सजा कर रखा हैं ....

कबीर ने लोई के लिए लिखी
बहुत सी प्रेम की कविताएं
पर लोई नहीं लिख पाई कबीर के लिए कोई भी कविता ....

लोई सिर्फ प्रेम को अपने गर्भ में पालती रही
और आज काशी इसलिए चमक रही हैं
क्योकि लोई एक ज्योति की तरह
गंगा में बह रही हैं ..........

Friday 24 May 2013

आज मैं बहुत खुश हूँ ....

आज मैं बहुत खुश हूँ ....
मेरी प्रेमिका डाक्टर हो गयी हैं ...
और मैं
अस्पताल का गंभीर मरीज
वो आज बहुत खुश हैं
क्योकि मेरी प्रेमिका रहते हुए
वो जो नहीं कर पाई थी ...
आज वह सब कुछ करने जा रही हैं ...

उसे ऐसे में देखकर
नहीं लगता हैं की आज यह मेरी प्रेमिका हैं
अब ऐसा लगता हैं की
वह कोई मेरी दादी माँ हैं ...

अब बात -बात पर
मुझे बहुत सी कहानियां सुनाती हैं
जीवन के व्याकरण के रहश्य को खोलकर
दवाइयों में घोलती हैं ....

पहले उतनी पास नहीं आती थी
जिस्मों की सरहदों पर खड़ी होकर
प्यार करते हुए शरमा जाती थी .....

पर अब मेरे जीवन को बचाने के लिए
एक नया इश्क का व्याकरण बना रही हैं ....
वह जानती हैं की
मैं उसका डूबता हुआ कोई सूरज हूँ
और मेरे अंदर जो लालिमा हैं
यह उसका अपना प्यार हैं ....
और वह अपने प्यार को अब अँधेरे में नहीं खोना चाहती हैं ...

इसलिए मेरे मृत्यु के पास बैठकर
एक संगीत की ज्योति जलती हैं ....
वह मुझे काशी में कभी नहीं मरने देगी
क्योकि वह कब तक मेरे पास रहेगी
काशी मेरे पास कभी नहीं आएगा ....
क्योकि मेरी प्रेमिका मेरी कविता भी हैं
और मेरे अंधेरें की एक रोशनी भी .....


नीतीश मिश्र 

Monday 20 May 2013

मेरी आस्था की लौ

तुम आती हो ...
और एक एहसास बनकर 
मेरे दिल की केतली में 
उबलने लगती हो ......

और मैं तुम्हें अपनी सांसों की डोरी में बांधकर 
तुम्हारे देह के आकाश पर 
अपनी अनंत संभावनाओं को 
रंगने लगता हूँ 
यह सोचकर अब तुम्हारी संगत में मेरी मुक्ति हैं ........

इसी बीच इस तरह के सपने 
धूप में सुखकर 
मुझे डूबते हुए सूरज के पास खड़ा कर देते हैं 

पता नहीं क्यों मुझे लगता हैं कि मैं 
कहीं काशी में तो नहीं मर रहा हूँ .......
तभी मेरे कदमों की आँखे बादलों का साथ पकड़कर कर 
मुझे सूने से पहाड़ पर लेकर चले जाते हैं ...
जहाँ मेरे सपने एक रंग की तरह महकते हुए 
वर्षों से मेरे इंतजार में 
एक लम्बी संगीत की श्रंखला को सजाएँ हुए हैं .....
इन्ही पहाड़ियों के झरोखों से मुझे लगातार कोई 
बुला रहा हैं .....
उसका चेहरा और उसकी आवाज बिल्कुल जानी पहचानी सी लगती हैं .....

तभी सोया हुआ तालाब जाग जाता हैं 
और कहता हैं 
मैं कबसे बुला रहा था रक्ताभ पुरुष 
कहाँ थे तुम इतने दिन 
मैं कब तक तुम्हारी हरेक संभावनाओं को 
बचाकर रखता ......
इसी बीच चाँदनी के बीच से एक 
आवाज मुझे मेरा नाम लेकर बुलाती हैं 
आओं ...मैं ही तुम्हारी संगीत हूँ 
मैं ही तुम्हारी सफ़र हूँ ....
ये आवाज सपनों से बिल्कुल मिलता --जुलता सा लगता हैं ....

पहाड़ मेरे हर अभव्यक्ति को बचाकर रखे हुए हैं .....
मैं आज खुश हूँ ....
मेरी आस्था की लौ 
पहाड़ों में चाँदनी की तरह चमक रही हैं ....
पहाड़ में डूबता हुआ सूरज जितना सुन्दर लगता हैं 
ठीक उसी तरह पहाड़ में मेरा प्यार भी सुन्दर लगता हैं ........