Tuesday 24 March 2015

सबसे बुरी खबर

संसार की
सबसे  बुरी खबर
आज मेरे सामने खड़ी थी ……
एक प्रेमपत्र का खो जाना
जैसे ही यह खबर मेरे पास आई
और मैं अंदर ही अंदर हंसने लगा
यह सोचकर
कि वह व्यक्ति तो मर गया होगा
जब उसे मालूम हुआ होगा
की चोरी में किसी ने प्रेमपत्र को भी चुरा लिया। ।
प्रेमी रात भर शहर के सभी प्रमुख चौराहों पर घूमता रहा
और देखता रहा
सड़क पर पड़े हुए
तमाम कागजो के टुकड़े को
इस उम्मीद से कहीं मिल जाये उसे अपना प्रेमपत्र
लेकिन नहीं मिला !
थक हारकर वह रोने लगा
और कहने लगा
की जब इस दुनिया का इतिहास लिखा जायेगा तो
क्या कहीं दर्ज किया जायेगा इस घटना को ?
एका -एक वह अँधेरे की दीवार को उठाता हुआ मेरे पास आया
और कहने लगा
मैं बहुत बीमार हूँ
बहुत पूछने पर बताया
की खो गया हैं प्रेमपत्र
मुझे लगा आज के समय की यह सबसे  बुरी खबर हैं ॥

Saturday 21 March 2015

आभासी दुनिया में रहते हुए हम भूल रहे हैं प्यार करने की ताकत

आभासी दुनिया में रहते हुए
हम सिर्फ आभासी बनकर रह जाएंगे
और एक दिन ……
हमारे पास नहीं बचेगी
प्यार करने की ताक़त
एक दिन ख़त्म हो जाएगी
प्रेमपत्र लिखने की आदत.…
एक दिन छीन लेंगें वे
हमसे रोने की प्रवृत्ति ....
बुनी  जा रही हैं हमारे चारो और ऐसी साजिश
की हम भूल जाएँ
अपने पड़ोस में रहने वाले अब्दुल चाचा को
हम भूल जाये
दीनानाथ दर्जी  को
हम भूल जाये गांव के मजदूरो को
हम आभासी दुनिया में
बचे रहेंगे
सिर्फ आभासी संवाद करने लायक
और वे हमारे यहाँ आएंगे
और छीन लेंगे हमसे
हमारा कुंवा
हमसे हमारा त्यौहार
और हुनर
और घोषित कर देंगे
हिंदुस्तान फिर गुलाम हो गया ....
यदि हमको बचाना हैं कुछ
तो हमें मिटटी के दर्द को पहचानना होगा ।
और हर आदमी के चेहरे में अपना चेहरा खोजना पड़ेगा
और लिखना होगा प्रेमपत्र
नहीं तो
हम अपनी आत्मा की कोठरी में बैठकर
जलाएंगे एक दिया
और खोजेंगे अंधेरें में एक संभावना
और लिखेगें मृत्यु पर शोक गीत ॥

नीतीश मिश्र

Tuesday 17 March 2015

हम पहरेदार नहीं हैं

हम सदी के शुरू लेकर
अंत तक …
लिखते आ रहे हैं
या सुना रहें हैं
प्रेम की दास्ताँ
या अपनी आत्मकथा
और एक समय के बाद घोषित कर देते हैं
हम सदी के पहरेदार हैं ।
यदि सही में हम पहरेदार होते
तो आज हम कुरुक्षेत्र में पराजित नहीं होते
या उसके दुष्चर्क के पीछे -पीछे नहीं भागते
लेकिन ! हम पहरेदार नहीं हैं
एक पिजड़े में बंद एक सुग्गा भर हैं ॥
हमारे बीच पहरेदार तो वह हैं
जो अपनी आवाज को पहचानता हैं
या जो सदी का एक सेतु हैं ॥

नीतीश  मिश्र
 …

मैंने सीखा हैं

मैंने चींटियों से
कभी दीमकों से
सीखा हैं…
एक घर के अंदर एक घर बनाना
जिससे बचा रहे ……
दंगें में
हमारा एकांत का सेतु
हम सब कुछ गँवा कर
एक बार
सिर्फ एक बार
पानी की तरह हँस सके
क्योकि हमने सीख लिया हैं
बचाना
अपना एकांत
जहाँ महकता हैं हमारा स्पर्श ॥
नीतीश  मिश्र