Sunday 18 May 2014

आज मैं बनारस में था

आज मैं बनारस में था
गोदौलिया में पप्पू के दुकान पर चाय पी रहा था
फिर चल दिया सारनाथ
देखने लगा बुद्ध को और उनके शिष्यों को
जिन्हे सावन में पूरा बनारस हरा -भरा दिखाई देता हैं
फिर चला गया पीली कोठी / अलईपुर
जहाँ बादलो को सहमा हुआ पाया
रात गोलगड्डा में रहमान की छत पर बैठकर
क्या देखता हूँ
मूसा रो रहे हैं
कबीर चिल्ला रहे हैं
और कह रहे हैं
सारे बाभन हो गए भाजपाई
कबीर कहने लगे कुछ नहीं हो सकता हैं इस देश का
मैं भी लड़ा था
तुम क्या लड़ोगे
तुम मुठ्ठी भर हो और इनके पास अक्षैणी सेना हैं
तुम्हारे पास विचार हैं
इनके पास पुलिस हैं/ राजनीति हैं/ धर्म हैं ।
मैं रात भर कबीर के सामने रोता रहा
सुबह उठकर चल दिया कोयला बाजार
और जैतपुरा / बजरडीहा
पूरी गलियों में कांपते हुए लोगों के पांव के निशान दिखाई दिए
दीवारो में बच्चे छिपा रहे थे अपने कंचे
शाम को उठकर चल दिया लोहता / चांदपुर
मुझे लग रहा था मैं आदमियों को नहीं लाशों को देख रहा हूँ
और अपने को वहां सबसे बड़ा गुनहगार के रूप में पा रहा हूँ
रबीना पूछती हैं
क्या देखने आये हो ?
कि हम लोग मरने से पहले डर कर जीते हैं
 उसकी बात सुनकर मुझे यकीन नहीं हो रहा था
की कबीर भी या कभी प्रेमचंद्र भी बनारस में रहे थे इनके बीच ।
मैं रोता रहा और सुलगता रहा
तभी दालमंडी में कबीर फिरसे मिल गए
और हम दोनों नई सड़क पर साथ चलने लगे
दोनों मौन थे
तभी कबीर बोले ये नए ज़माने का बनारस हैं
मैं तुम्हारे साथ हूँ
मैं तो अब -तक देख रहा था
तुम्हारे अंदर इन लोगों को लेकर कितना दुःख हैं । ।

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