Saturday 31 May 2014

बनारस में एक कुत्ते का होना जरूरी हैं

बनारस में
अगर एक कुत्ता होता
अजनबियों की पहचान करना
सरल होता .......
कभी -कभी एक
कुत्ते का होना जरूरी हो जाता हैं
और बची रहती हैं
लोगों की अपनी भाषाएँ ।
एक कुत्ते का एक शहर में होना
इस बात को प्रमाणित करता है
यहाँ अभी भी लोग जिन्दा हैं
एक शहर में एक कुत्ते के होने से
सुरक्षित रहती हैं
लड़कियां ।
जब तक शहर में कुत्ते रहते हैं
चौराहे पर नहीं दिखाई देता हैं
कोई बाहरी व्यक्तित्व और विचार
कुत्ते पहचान लेते हैं
समय की हत्या करने वाले हाथों को
कुत्ते पहचान लेते हैं
हत्यारे की आँख में छुपे हुए सपनों को
एक कुत्ता भक्त से पहले पहचान लेता हैं भगवान को
यदि बनारस में एक कुत्ता होता
बनारस से कुरुक्षेत्र के लिए कोई रास्ता नहीं बनता
कुत्ते चले गए
चली गई गलियों की रौनक
कुत्ते होते तो बचा रहता
यहाँ पर विवेक
बचा रहता बसंत
और एक आदमी के साथ कुत्ते भी दिखाई देते
शव यात्रा में । ।



Sunday 25 May 2014

बनारस डूबने वाला हैं औरतों ने घोषित कर दिया हैं

बनारस की औरते
अब नहीं रोती हैं
पति रात को घर चाहे कितनी ही देर से क्यों न आये
या खाली हाथ शाम को आये
बनारस की औरते अब खुश नहीं रहती हैं
भाई को नौकरी मिल जाने पर
पिता को बीमारी से मुक्त हो जाने पर
छोटी बहन की शादी तय हो जाने पर
बच्चों के फर्स्ट डिवीजन पास हो जाने पर ।
बनारस की औरतों को अब दुःख भी नहीं होता
यह जानते हुए की
पति किसी और से रोमांस करता हैं
बनारस की औरते अब नहीं जाती हैं मंदिर में
न ही मज़ार पर
न ही दुकान में
औरते अब नहीं झगड़ती
माकन मालिक से
सब्जी वालों से ,
बनारस की औरते अब नहीं देखती टीवी पर कोई भी धारावाहिक
अब नहीं बैठती आईने के पास देर तक
अब नहीं इच्छा रखती नए कपड़ों की
अब औरतों को नहीं मालूम रहता हैं
पड़ोसी के घर खाने में क्या बना हैं ?
बनारस की औरतो को पता चल गया हैं
आँखों के सामने की दुनियां
कल इतिहास में बदल जाएगी
औरते पहचान लेती हैं
सृष्टा के काल चक्र को
बनारस की औरते अब नहीं जनना चाहती
दूसरा बच्चा !
बनारस डूबने वाला हैं
औरतों ने घोषित कर दिया हैं । ।

Saturday 24 May 2014

बनारस से अब नहीं कोई लिखता बुरहानपुर के लिए प्रेम पत्र

बनारस से अब नहीं कोई लिखता
बुरहानपुर के लिए  प्रेम पत्र
न ही हैदराबाद के लिए / अलीगढ के लिए
और दौलताबाद के लिए/ न ही अजमेर के लिए
न ही लखनऊ के लिए ……
भोपाल / आजमगढ़ / कश्मीर से नहीं जाता हैं
कोई प्रेमपत्र बनारस के लिए
जबकि बनारस के लड़के / लड़कियां
हैदराबाद / दौलताबाद के लड़के / लड़कियां
आज भी करते हैं
एक दूसरे से प्रेम
पर हवाओं की दिशा बदल गई
बनारस का रंग ढल गया
सो प्रेमपत्र का आना - जाना बंद हो गया ।
अब बनारस में दिखाई देता हैं
पुराना प्रेमपत्र
जैसे वे गंगा को साफ करने का इरादा बना लिए
वैसे ही उनके खौफ से लोगों ने छोड़ दिया
प्रेमपत्र लिखना
क्योकि लोगों को मालूम हैं
यदि प्रेमपत्र लिखना नहीं छोड़ेगें
तो उनके सैनिक अंगुलियां काट कर अपने साथ लेकर चले जायेंगे ।
बनारस से जाने वाली और बनारस आने वाली ट्रेनें बहुत उदास दिखाई देती हैं
बनारस के डाकिये के चेहरे पर नहीं दिखाई देती अब  कोई हंसी । ।

Monday 19 May 2014

गाँवो में आदमी के बजाय कहीं देवता तो नहीं आ गए

जब गाँवो में घर नहीं थे
पर आदमी बहुत थे
पेड़  भी ……
आदमी और पेड़ जब -तक थे
तब गांव में जो देवता थे
उनका कद बहुत छोटा था
जब आदमी के पास अन्न नहीं था
फिर भी लोगों के पास भाषा थी
और गांव के हर मोड़ पर
सुनाई देती थी
प्रेम कहानियां ।
अब गांवों की लंबाई / चौड़ाई दोनों बढ़ गई
घर भी बहुत सारे बन गए
और दुकाने मुर्गियों की तरह खुल गई
राजनैतिक पार्टियों की तरह
कई मंदिर खड़े हो गए
लड़के / लड़कियां बहुत खूबसूरत दिखाई देने लगे
और पेड़ एक -एक कर गिरते गए
पिछले बीस सालों से
नहीं सुनाई दी
कोई प्रेम कहानी
और न ही कोई पेड़ लगने की खबर आई
मैं सोच रहा हूँ
आदमी के बजाय कहीं देवता तो नहीं आ गए । ।

हम भूल जायेंगे एक दिन अपने शहर की हवा को

हम
अपने प्यार और बाज़ार के
विस्तार में
भूल गए हैं
शहर में रहने वाले दर्जियों के नाम
और उनके चेहरे को ।
जो हर रात सोचते  हैं
आदमियों को कैसे सभ्य बनाया जाए
हम भूल गए हैं
चौराहे पर बैठे हुए मोची को
जो सूरज के विरुद्ध मोर्चा खोलकर
आदमी को चलने का हुनर सिखाता हैं
हम भूल गए हैं
राजगीर की  कला को
जिसके ऊपर हम बैठकर
दूसरे शहर को बताते हैं
हमारा मकान कैसा हैं ।
ऐसे ही हम भूल जायेंगे एक दिन
अपने शहर की हवा को
और धूप को ॥

Sunday 18 May 2014

आज मैं बनारस में था

आज मैं बनारस में था
गोदौलिया में पप्पू के दुकान पर चाय पी रहा था
फिर चल दिया सारनाथ
देखने लगा बुद्ध को और उनके शिष्यों को
जिन्हे सावन में पूरा बनारस हरा -भरा दिखाई देता हैं
फिर चला गया पीली कोठी / अलईपुर
जहाँ बादलो को सहमा हुआ पाया
रात गोलगड्डा में रहमान की छत पर बैठकर
क्या देखता हूँ
मूसा रो रहे हैं
कबीर चिल्ला रहे हैं
और कह रहे हैं
सारे बाभन हो गए भाजपाई
कबीर कहने लगे कुछ नहीं हो सकता हैं इस देश का
मैं भी लड़ा था
तुम क्या लड़ोगे
तुम मुठ्ठी भर हो और इनके पास अक्षैणी सेना हैं
तुम्हारे पास विचार हैं
इनके पास पुलिस हैं/ राजनीति हैं/ धर्म हैं ।
मैं रात भर कबीर के सामने रोता रहा
सुबह उठकर चल दिया कोयला बाजार
और जैतपुरा / बजरडीहा
पूरी गलियों में कांपते हुए लोगों के पांव के निशान दिखाई दिए
दीवारो में बच्चे छिपा रहे थे अपने कंचे
शाम को उठकर चल दिया लोहता / चांदपुर
मुझे लग रहा था मैं आदमियों को नहीं लाशों को देख रहा हूँ
और अपने को वहां सबसे बड़ा गुनहगार के रूप में पा रहा हूँ
रबीना पूछती हैं
क्या देखने आये हो ?
कि हम लोग मरने से पहले डर कर जीते हैं
 उसकी बात सुनकर मुझे यकीन नहीं हो रहा था
की कबीर भी या कभी प्रेमचंद्र भी बनारस में रहे थे इनके बीच ।
मैं रोता रहा और सुलगता रहा
तभी दालमंडी में कबीर फिरसे मिल गए
और हम दोनों नई सड़क पर साथ चलने लगे
दोनों मौन थे
तभी कबीर बोले ये नए ज़माने का बनारस हैं
मैं तुम्हारे साथ हूँ
मैं तो अब -तक देख रहा था
तुम्हारे अंदर इन लोगों को लेकर कितना दुःख हैं । ।

Saturday 17 May 2014

मैं हार गया ज़ारा

मुझे माफ़ करना ज़ारा !
मैं हार गया
या मुझे पराजित कर दिया गया
ज़ारा मैं हार गया
मेरे पास शब्द थे.……
विचार थे ………
और उनके पास धर्म था
हथियार था ।
मैं हार गया जारा
क्योंकि वे रथ पर थे
और मैं घास पर बैठा हुआ था ।
ज़ारा मैं हार गया
क्योंकि मेरे कंधे पर
भुन्नू / सुख्खू / तपसी
हीराबाई / कबीर / परवीन का दर्द था
मैं हार गया ज़ारा
मैं अपने सपनो के साथ
फुटपाथ पर था ।
मैं हार गया ज़ारा
क्योकि मैं जंगलो की / धरती की ह्त्या नहीं करना जानता । ।

Thursday 15 May 2014

ज़ारा तुम पुरानी तस्वीरों में सपनों की मानिंद लगती हो

ज़ारा जब कभी तुम्हारी
पुरानी तस्वीरों को देखता हूँ
दिखाई देता हैं मुझे
अपना स्पर्श ………
तुम तस्वीरों में सपनों की मानिंद सुन्दर लगती हो
तस्वीरों में दिखाई देती हैं
सहजता ।
और जब कभी तुम्हारी नई तस्वीर उठाता हूँ
और झांकता हूँ तुम्हारे देह में
मांस के बड़े - बड़े लोथड़ों से बदबू आती हैं
अपने समय के हिंसा की
और मैं डर जाता हूँ
विज्ञानं और बाजार से ।
जो एक गुड़ियाँ को शहर की
सबसे प्रदूषित नदी बना दिए
अब मैं नहीं देखना चाहता हूँ कुछ भी नया ऐसा
जो सपनों को और जीवन को मारकर अपने समय का आईना बनाते हैं । ।

Wednesday 14 May 2014

सोचता हूँ लिखूं एक चिठ्ठी

सोचता हूँ
लिखूं एक चिठ्ठी
उजरका आम को
और पुछू कहाँ से भरकर लाते थे
अपने अन्दर मिठास
जबकि तुम कभी मन्दिर भी नहीँ जाते थे ।
सोचता हूँ लिखू एक चिठ्ठी
अपनी पाठशाला के मास्टरों को
जो अक्सर मार -मार कर बताते थे
देवताओं से अधिक ताकत क़िताबों मे होतीं हैं ।
सोचता हूँ लिखू एक चिठ्ठी
अपने बगीचे को
जहाँ मैने पहली बार
एक लड़की का नाम लिखा था
अंगूठे से ।
सोचता हूँ लिखू उस लड़की को चिठ्ठी
जो दोपहर मे घर से भागकर आती थी
और अपनी गुड़िया और गुड्डे की शादी रचाती थीं ।
सोचता हूँ लिखूं एक चिठ्ठी
लट्टू को जिसको मै नचाता था
और आज मैं खुद एक लट्टू की तरह नाचता हूँ । ।
सोचता हूँ लिखू एक चिठ्ठी अपने
घर को जहाँ से माँ ने मुझे आसमान दिखाया था । ।

जो मेरे पास हैं वह किसी और के पास नहीं हैं

मेरे पास जो प्रेम था
वह अब किसी और के आँगन से
आसमान के टुकड़े को
मुंह में थामकर
मेरे उबड़ - खाबड़ धरातल के खिलाफ
मोर्चा खोलकर
मेरी दीवारों पर लगातार हँस रहा हैं ।
मेरे पास अब नहीं हैं इतनें सपने की
कह सकूँ कि अभी कुछ दिन और जिन्दा रहूंगा ।
अब मैं सपनों के बारे में कुछ सोचकर
नहीं चल पाता हूँ अपनी ही जमीन पर
जो हवाएँ हैं और जो रोशनी है
उसमे नहीं तराश पाता हूँ
अब कोई अपना चेहरा
अब मेरे पास नहीं हैं कोई ऐसा रास्ता
जिस पर चलकर सुन सकूँ कुछ अपनी आवाजे
और कुछ उसकी हंसी ।
अब जो मेरे पास हैं
वह उसके पास नहीं हैं ……
उसकी हँसी का रंग
उसका पत्र
उसकी कुछ कविताएँ ॥

माँ रखी हुई हैं गुल्लक मे सिक्के क़ी जगह मेरी आत्मा

जब तक हमारे पास
गुल्लक था
हमारे सपने
और जीवन दोनों सुरक्षित थे
हम गुल्लक मे सिक्के और सपने
दोनों बचाकर रखते थे ।
कभी - कभी माँ भी
और बाबूजी
रखते थे
हमारे सपनो के बीच अपने सपनों को
और दोनों खूब हँसते थे ।
जब घर के चूल्हे
और हमारे कपड़े एक साथ रोते थे
या माँ -बाबूजी के बदन से कपड़े सरकने लगते थे
या घर कि खिड़कियां रोने लगती
ऐसे में माँ
गुल्लक तोड़ देती
माँ को मालूम था
जब कोई साथ नहीं देगा तब गुल्लक ही काम आएगा
और घर के टूटते सपनों को बचा लेगा ।
आज जब मै माँ से इतना दूर हूँ
उसके बावजूद भी
माँ रखी हुई हैं
गुल्लक
और रखती हैं
मेरे लिए सपने
और सुनती हैं गुल्लक मे
मेरे सपनों की आवाज
पर माँ
ने अब कसम खा लिया हैं
की अब नहीं तोड़ेगी वह क़भी गुल्लक
क्योंकि माँ
रखी हुई हैं गुल्लक मे सिक्के क़ी जगह मेरी आत्मा
क्योकि माँ जानती हैं
उसका बेटा अब गुल्लक मे हीं सुऱक्षित रहेगा ॥

Tuesday 13 May 2014

लड़कियां चुप हैं जबसे आँगन का आसमान नीला हैं

लड़कियां चुप हैं
उदास हैं .......
और रो रही हैं
दुनियां की पंक्ति में
सबसे पीछे खड़ी हैं
लड़कियां चुप हैं
जबसे तुम्हारे आँगन का आसमान नीला हैं ।
लड़कियां रो रही हैं
जबसे तुम घर मे बिस्तर लगाकर
संजय की तरह कुरुक्षेत्र की घटनाओं को
देखना शुरू कर दिए ।
लड़कियां चुप हैं
तुम्हारे देवताओं की तरह
लड़कियां चुप हैं सीता की तरह
द्रोपदी की तरह
लड़कियां बोलना शुरु करेगी तो
टूट जाएगी सैंधव सभ्यता की दीवारे ।
हम कैसे समय मे जी रहे हैं ?
जहाँ अन्धो को मिल जाती हैं कुर्सियां
लंगड़ों को मिल जाती हैं मंजिले
और कुत्तों को मिल जाती हैं पहचान
लड़कियां चुप हैं
जैसे चुप हैं घर का चौखट
जैसे चुप रेलवे लाइन की पटरियां
लड़कियां कब - तक चुप रहेंगी
जब तक पुरूषों के पास
हाथ / पांव और आँखे रहेंगी ॥

लड़की कहती हैं सब झूठा हैं

लड़की कहती हैं
तुम्हारे देवता कायर हैं
झूठे हैं.……
तुम्हारा इतिहास
तुम्हारा धर्म सब झूठा ।
लड़की कहती हैं
राजनीति को बना दिये
एक वैश्या !
लड़की कहती हैं
तुम सदियों से जीवित हो
क्योकि पिटारे मे तुमने छुपा रखे थे शब्द
और जब चाहते थे
खोज लेते थे
कोई हथियार
खोज लेते थे कोइ सुन्दर देवता
लड़की कहती हैं
अगर इतने होशियार थे तो क्यों
नहीं अकेले खोज लिये आग!
क्यों नहीं इतिहास मे लिखे की
आग की खोज एक लड़की या एक महिला ने किया था ।
लड़की कहती हैं
अगर इतने ईमानदार थे
अपनी आँखन देखी लिखे होते
लड़की कहती हैं
तुम्हरी आँखे झूठी
तुम्हारा अतीत / वर्तमान / भविष्य सब झूठा
लड़की कहती हैं हमे पैदा होते ही क्यो टॉँग देते हो हांशिये पर
और एक अभियोग लगाकर
बिलो मे बन्द करके बैठा देते हो
सदा के लिए एक पहरेदार ॥ ।
लड़की कहती हैं सब झूठा हैं

Sunday 11 May 2014

लड़की मेरी स्मृतियों से सपनो तक लगातार रो रही है

आज मेरे कानों में
लड़कियों के रोने की आवाज आई
जंगलों के रोने की आवाज
पहाड़ों के रोने की आवाज
और सागर के रोने की आवाज कानों में गूंजती रही ।
लड़की मेरी स्मृतियों से सपनो तक
लगातार रो रही थी
और बीच - बीच में कह रही थी
मैं पैदा होते ही रोई और मरने से पहले भी हजारों बार रोई
जब रामराज्य था
तब भी मैं कांपती थी
और जो नया रामराज्य आने वाला है
वहां पैदा होते ही मार दिया जाता हैं
और यदि किसी वजह से बच गई
तो दक्षिण टोला का अप्सरा घोषित कर दिया जाता हैं
और रामराज्य के ईमानदार सैनिक बन जाते हैं गिद्ध । ।

Saturday 10 May 2014

लड़कियां कायर नहीं होती हैं

लड़की पैदा होते ही
सुनी थी
बाप के मुँह से गाली !
लड़की पैदा होते ही डर गई थी
और भूल गई थी
अपना चेहरा ।
लड़की की जैसे -जैसे हरियाली बढ़ती
बाप की गालियां और भद्दी होने लगती
लड़की अक्सर घर से कहीं दूर भागना चाहतीं थीं
पर लड़की के पांव को नहीं दिखाई देते कोई रास्ते ।
लड़की जब अकेले में हंसती
या गाना गाती
या सपना देखती
लड़की के चरित्र पर उठते थे सवाल
लड़की वर्षो से बन्द थी
अपनी सांस की कोठरी मे
लड़की धूप की रस्सियो से
कभी हवाओं से पूछती
जो लड़कियां ख़ुश रहती हैं
वह देखने में कैसी लगती हैं ?
लड़कियां ईमानदार होती हैं
लेकिन ! इतनी डरी होती हैं कि
लोग उन्हें कायर समझते हैं
लड़कियां कायर नहीं होती हैं  । ।

Friday 9 May 2014

पुरुष को सिखाया जाता हैं

पैदा होते ही
स्कूली शिक्षा की तरह
पुरुषो को पढ़ाया जाता हैं
स्त्रियों पर कैसे नियंत्रण रखना चाहिए !!
भाषा से / लात से / पुचकार से
पुरुष को मन्त्र की तरह सिखाया जाता हैं
स्त्रियां भरोसे लायक नहीं होती हैं
पुरुष को भूगोल की तरह पढ़ाया जाता हैं
स्त्रियों के देह के बारे मे .......
पुरुष : को बताया जाता हैं
स्त्रियां सिर्फ़ देह होती हैँ
स्त्रियां डायन भी होती हैं
स्त्रियां वैश्याए भी होती हैं
पुरुष को बताया जाता हैं
वह सारा नुस्खा
जिससे स्त्रियों पर कभी भरोसा न हो सके !!

Thursday 8 May 2014

मेरे बारे में दीवारे बताएंगी

दीवारे !
हर अच्छे - बुरे वक्त मे
मेरे साथ रही
दीवारे भूलने की बीमारी से
मुझे सदा दूर रखती थी
माँ ! के न होने की
एक सीमा तक भरने का प्रयास करतीं
माँ ! के हाथो की महक
आज भी बचा के रखी हैं
दीवारे अपने पास ।
बाबूजी की बहुत सारी यादें बची हुई हैं दीवारों पर
दीवारे ढो रही हैं सदियों से
मेरे पूर्वजो की यादो को
अपने बदन पर !
मैंने ! भी दीवारो पर
लिख रखा हैं कई सारे सूत्र
कई सारे चित्र …
दीवारे बताएगी तुम्हें
मैं कविता लिखने से पहले
कैसे रोता था ?
दीवारे बताएंगी
मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूँ
दीवारे बताएंगी
मैं लोगो के लिये
क्या क्या सोचता हूँ ?
दीवारे बताएंगी
मैं कितनी रात सोया नहीं ?
मैं कितने दिन भूखा रहा
दीवारे बताएंगी मै
मैं काशी को बचाने के लिये
क्या क्या किया ? !!

Wednesday 7 May 2014

माँ के लिए दूरियों का कोई मायने नहीं होता हैं

माँ के लिए
कभी दूरियों का कोई  मायने नहीं
होता हैं …
माँ के लिए
देश / भाषा
समंदर / पहाड़
जंगल का कोई मायने नहीं होता हैं …
माँ जब चाहती हैं
जहाँ चाहती हैं
हवा की तरह आ जाती हैं
और पकड़ लेती हैं
मेरी सारी कमजोरियां
माँ ! के लिए जरूरी नहीं रहता हैं
मेरे बारे में किसी से कुछ जानने का ।
माँ ! ने
पंडित / औघड़ से पहले  ही बता दिया था
यह मुझसे दूर रहेगा …
मुझे जीवन भर रुलाता रहेगा
मेरे सपनो की हत्या करके
दार्शनिक बनेगा …
और एक औरत के प्यार मे पागलों की तरह
अपने को सबसे समझदार घोषित करेगा!
और देश के राजाओं का विरोध करता रहेगा
माँ ! के लिए मैं कभी कोई मायने नहीं रखता हूँ
आज भी
जब
मैं सही को सही और गलत को गलत कहता हूँ
इसके बाद भी वह कहती हैं
बंद करो अपना बरगलाना । ।

खुदा पूछता हैं प्रेम पत्र कैसे लिखा जाता हैं

आधी रात मे ……
देवता सो रहे थे ……
सारे भूत जाग रहे थे
और आसमान मे सारे तारे मजदूरी कर रहे थे
जानवर अपनी स्मृतियाँ गा रहे थे
और पेड़ अपने आस- पास के इतिहास को समेट रहे थे ……
और मैं लिख रहा था कविता ……
ऐसे में दरवाजे पर कोई  दस्तक देता हैँ
अरे ! ये तो वही हैं
जिसके बारे में मैं कुरानों मे सुनता आया हूँ
अरे ! ये तो वही हैं जिसके बारे मे मुल्ला कहां करता था
अरे ! ये तो खुदा हैं
मुझे समझते देर नहीं लगी कि
मेरा जीवन लेने आये होंगे खुदा
लेकिन ! अभी मैं यही सब सोच रहा था
तभी खुदा ने कहा
तुम कौन हो ……
मैंने जबाब दिया
मैं एक कवि हूँ ……
मैं एक प्रेमी हूँ ……
खुदा ने कहा ठीक हैं
मेरे चेहरे पर कुछ तसल्ली का भाव आया
इतने में खुदा ने कहा
मैं भी तुम्हारी प्रेमिका से प्यार करता हूँ ……
मैं भी उसे प्रेम पत्र लिखना चाहता हूँ
मैं भी उसकी याद में कविता लिखना चाहता हूँ
इतने ! में सपना टूट जााता है
और सारे देवता जाग जाते हैं
और सारे भूत सो जाते हैं
सुबह मैं क्या देखता हूँ
वह जा रही थी मस्जिद मे
मेरे कमरे कि दीवारे दरकने लगीं
और मेरे पाँव की रोशनी चली गईं थी !!
खुदा पूछता हैं प्रेम पत्र कैसे लिखा जाता हैं

Friday 2 May 2014

प्यार करती हुई औरत सबसे अधिक खुश हैं

प्यार करती हुई औरत
चीनी से ज्यादा मीठी हैं
प्यार करती हुई औरत को आता हैं
आग से बचना
जंगलो और पहाड़ों मे रास्ता खोजना
किसी को मिथक होने से रोकना
दुनियां को नज्मों से सजाना
प्यार करती हुई औरत
आईने के पास बैठकर चुरा लेतीं है अपने चेहरे के लिये थोड़ी सी हंसी
औरत बुनती रहती हैं
अपनी आँखों मे समय के ढेर सारे टुकड़े
प्यार करती हुई औरत को आता हैं
अपने शहर को सबसे सुन्दर बनाना
प्यार करती हुई औरत को देखकर
शहर की हवा
शहर की खिड़कियां
शहर की बारिश शहर की धूप
बदल लेती हैं अपने रास्ते ।
प्यार करती हुई औरत के समय मे
मुर्गा भी हस्तक्षेप नहीं करता
प्यार करती हुई औरत को खुश देखकर
शहर के सारे  देवी -देवता नाराज हैं
क्योकि शहर की औरते अब नहीं जाती क़िसी मन्दिर या सिनेमाघरों मे
या चाट की किसी दुकान मे
प्यार करती हुई औरत लिख रही हैं
अपना इतिहास !

Thursday 1 May 2014

मैं काशी का रक्षक हूँ

मैं काशी का भक्षक नहीं रक्षक हूँ
माँ ने यही पर
मेरी आत्मा को सुई धागे से सीया था
और शब्दों संघर्षों से मुझे सजाया था
काशी ! में मैंने माँ से सीखा था
छोटी -छोटी खुशियों को बटोरकर
चूल्हे की राख मे दबा कर रखना चाहिए
काशी ! मेरे जन्म से पहले
मेरी माँ की पाठशाला  हैं
काशी ! मेरी प्रेमिका की मन्दिर हैं
जिस काशी की मैन पहरेदारी करता हूँ
उसी काशी मे मेरी प्रेमिका को सबसे खूबसूरत औरत होने का ख़िताब मिला हैं ।
काशी ! कभी मेरे लिये बाबा हैं तो कभी मेरी दादी
काशी ! कभी मेरे लिये माँ हैं तो कभी मेरी प्रेमिका
काशी ! कभी मेरे लिये जन्नत हैं तो क़भी मृत्यु
काशी ! कभी मेरी जवानी हैं तो क़भी बुढ़ापा
मेरा घर भी काशी मे हैं तो मेरी यारी भी काशी मे है
काशी ! कभी मेरी कविता हैं तो कांशी कभी मेरी जुबाँ भी है
काशी में जितनी ज्योति हैं उतना ही अँधेरा ।