Tuesday 28 April 2015

औरत जब नींद से जागती हैं

मेरे लिए
या शहर के लिए या घर के लिए
सूर्योदय तभी होता हैं
जब गांव या शहर की आखिरी महिला नींद से जागती हैं
एक स्त्री का नींद से जागना इतिहास की एक बड़ी घटना हैं
लेकिन सबसे अधिक शर्मनाक बात यह हैं की
इस घटना का जिक्र हमारे इतिहास के पन्नो में कहीं नहीं हैं
आखिरी स्त्री जब नींद  जागती हैं
तभी आसमान से साफ होता हैं धूल
तभी हवाओं में सुनाई देती हैं
अपनी हर आवाज
जब आखिरी औरत जागकर हसंती
तभी रंगरेज घोलता हैं
शब्दों में रंग
और रंग में शब्द
आखिरी औरत का नींद से जागना
सूचित करता हैं
अभी भी हम कुएं में ही हैं ॥
औरत जब नींद से जागती हैं
और बैठ जाती हैं रंगने
चूल्हे को
पुराने बर्तनो को जो अक्सर खो देते हैं अपना अर्थ
औरत जब नींद से जागती हैं
और सोचती हैं रोटी के बारे में
और बनाती हैं तवा पर रोटी
और सोचती हैं उस किसान के बारे में
जिसका चेहरा रोटी में दिखता हैं। ।

नीतीश  मिश्र

Wednesday 22 April 2015

दंगे के बाद की सुबह


दंगे के बाद की सुबह
बहुत बदबुद्दार थी
आज सुबह -सुबह ही पता चला
आदमी सबसे ख़तरनाक होता हैं
क्योकि वह उठा लेता हैं एक समय के बाद
अपनो के खिलाफ हथियार .....
ऐसा नहीं की इस शहर मे
मेरा पहली बार आना हो रहा हैं
इसके पहले मैं जब यहाँ आया
हर बार यही लगा की
इस शहर की सबसे अधिक खूबसूरत होने की वजह एक ही हैं
क्योकि इस शहर मे बचे हुए हैं
प्रेमी -प्रेमिका !
इस शहर के पास हैं
बहुत सारी कहानियाँ हैं
लेकिन आज सुबह यही लग रहा था की
मर गया शहर और जिंदा हो गई मंदिर
और जिंदा हो गई एक मस्जिद
अब शहर मे जब कभी आउँगा
तो नहीं दिखाई देगी
चाय की कोई दुकान
जहाँ से मैं देख सकूँ
की तुम्हारा ईश्वर कैसा हैं ||

नीतीश मिश्र

अब खबर नहीं आती

सूरज के जागने से पहले
मुर्गा के होंश संभालने से पहले
नदी के सुंदर होने से पहले
हम लोगो के पास खबर होती थी
त्रिलोकी की!
और त्रिलोकी के पास खबर होती थी दुनियाँ जहाँ की
त्रिलोकी ने एक दिन
पूरे गाँव के सामने डंके की चोट पर कहा था -
कि इस दुनिया का सबसे कायर आदमी पढ़ा -लिखा व्यक्ति ही होगा !
उस दिन पूरे गाँव ने कहा था की
त्रिलोकिया पागल हो गया हैं ....
लेकिन ! मैने त्रिलोकी की आँखो मे देखा था
इतिहास को घूमते हुए ....
धरती को रोते हुए ....
पेड़ो को इंतजार करते हुए ....
बाँसुरी को मौन होते हुए ||
त्रिलोकी आख़िरी बार बोला था मुझसे
जब यह दुनिया बन रही थी
तब मैं बनती हुई दुनिया का साक्षी था
और अब ये दुनिया मर रही हैं
और तुम मरती हुई दुनिया के अवशेष हो ||
त्रिलोकी और मेरे बीच का यही संवाद आख़िरी था
शायद यह हम लोगो के बीच का एक सेतु था
जो अब टूट गया हैं या बिखर गया हैं
लेकिन इतना तो तय हैं
मेरे पास अब वैसी ख़बरे नहीं आती हैं
जैसी ख़बरे त्रिलोकी मुझे सुनाया करता था
त्रिलोकी के चलते ही मैं यह बात जान सका
की दिल्ली देवताओ का कबाड़खाना हैं ||

नीतीश मिश्र

मैं डरता हूँ

अब मैं डरने लगा हूँ
सपने मे भी ....
क्योकि मैं जान गया हूँ
कभी भी मेरा चूल्हा
मेरी सायकिल
मुझे छोड़कर जा सकते हैं
अब मैं सपने मे देखता हूँ
मेरी कुर्सी टूट रही हैं
मेरी कितबे फटनी शुरू हो गई हैं
मेरी विचारधारा को दीमक चाटना शुरू कर दिया हैं
अब मैं डरने लगा हूँ
जिस लड़की के लिए कल तक मैं सपने देखता था
वह कहीं और मूर्त हो रही हैं
शायद ! अब अंत की शुरूवात हो गई हैं ||

नीतीश मिश्र

किताबों की दुनिया

जब एक बार सब कुछ खत्म हो गया था
यहां तक की एक मुलायम संभावना भी
और मैं नहीं देख पा रहा था
आसमान के दरिया में कोई अपने लिए कोई हरा रंग
इसके बावजूद भी मैं चल रहा था......
और मेरे पास बची थी सिर्फ एक किताब.....
जिसमें न तो मेरा कोई इतिहास था और न ही मेरे नाम का कोई उल्लेख
इसके बावजूद भी मैं अपने साथ किताब को ढो रहा था
कभी- कभी हवा के झोंकों के बीच मैं और मेरी किताब अदृश्य भी हो जाती थी
लेकिन! दूसरे ही पल हम दोनों की मौजूदगी ऐसे होती थी
जैसे हम रेल की पटरियां है जो शुरू से लेकर अंत तक साथ चलते रहेंगे
भले ! से मंजिल का रास्ता बदलता ही क्यों न हो?
मुझे लगता है
समय के अंतिम छोर पर सब कुछ खत्म होने के कगार पर होगा
उस समय भी एक किताब बची रहेगी
जिसके माध्यम से मनु लिखेंगे
समय चक्र का इतिहास।
मुझे लगता है जब किताबे बची रहेगी
तो सब कुछ बचा रहेगा
मसलन इन किताबों तक आऐंगे दीमक
और जहां दीमक आते है
वहां संगीत का हस्तक्षेप खद -प खुद बढ़ जाता है
जब संगीत होगी
तब किताबों में उतरेगा नीला सा आसमान
और बहुत सारे रंग।
जब ये किताबे बची रहेंगी तो
आऐंगे पेड़ और खोजेगें इसमें अपना पुराना अस्त्वि का विरल सा कोई राग
किताबों का बचना समय के बचने का एक सच है।।
नीतीश मिश्र

ये दुनिया कहीं तुम्हारी तो नहीं है


जिस तरह से मेरे सामने
तुम मेरी दुनिया को बदल रहे हो
उससे लगने लगा है कि
अब ये दुनिया पूरी तरह से तुम्हारी हो चुकी है
तुम कुरूक्षेत्र में भी इस बात पर जोर देते थे
जिस दिन मैं लोकतंत्र में युद्व जीतना शुरू करूंगा
उसी दिन से दुनिया को अपने रंग में रंगना शुरू कर दूंगा
तुम्हारे ईश्वर का जितनी बार अवतार नहीं हुआ
उससे ज्यादा तुम उनका विस्तार कर दिए
शायद! इसी के चलते अब नहीं होता तुम्हारे यहां किसी देवता या देवी का अवतार
तुमसे बेहतर भला कौन जानता है?
देश में जितनी बड़ी संसद है
उससे कहीं बड़ा तुम्हारे देवताओं का मंदिर है
और तो और अब हर रोज एक नया मंदिर बन रहा है
तुम खुद सोचों
जब थोक के भाव इस तरह से मंदिर और देवता बनेंगे
तो मस्जिद और गिरजाघर में रहने वाले लोग तो तुमसे डरने लगेंगे।
अब तो आलम यह है कि
आसमान में उड़ता हुआ परिंदा भी सांस लेने के लिए
किसी साख पर नहीं बैठता
वह तब तक उड़ता है जब तक उड़ते हुए वह मर न जाए।
गिरजाघर और मस्जिदों में चलने वाली सांसे
इस कदर सहम गई है कि वह जिंदा रहने के लिए
अब तुमसे भीख मांगती है।
कहीं ऐसा तो नहीं है कि ये दुनिया अब तुम्हारी हो गई है
इसलिए तुम लोगोंको घर वापसी करने में लगे हुए हो।
चारों ओर जिस तेजी से तुम्हारा लाल रंग फैल रहा है
उससे अन्य रंगों का आयतन और घनत्व दोनों कम होता जा रहा है
यह तुम्हारा समय है और रंगो के खत्म होने का भी यही समय है।।

नीतीश मिश्र

वे मेरे रंग की हत्या कर रहे है


मैं बहुत खुश था
जितना आसमान अपने नीले रंग के साथ
उतना ही खुश मैं अपने हरे रंग के साथ था,
मैंने, कभी आसमान से उसका हरा रंग नहीं मांगा
और न ही कभी ललक हुई कि
अरसमान से मैं कुछ रंग चुरा लूं
क्योंकि मुझे यह सिखाया गया था
हर व्यक्ति अपने- अपने रंग के साथ खुश रहता है
और अपने रंग में ही खोज लेता है
अपनी मुक्ति
लेकिन मेरा विश्वास टूट गया
जब उन्होंने मेरे सामने खड़ी हरे रंग की इमारत को
लाल रंग से रंग दिए
यह कहते हुए कि तुम अभी देश का इतिहास नहीं जानते हो
उसी दिन से मैं अपने रंग के साथ आसमान से दूर
और धरती के किसी कोने में सिमटा हुआ हूं
क्योंकि मेरे चारो ओर एक ही हवा बहती है
जिसमें सुनता रहता हूं
कि वे लोग कभी भी मेरे जिस्म के हरे रंग को
लाल रंग से रंग देंगे।
क्योंकि उनके पास लाखों हाथ है
और रंग बनाने वाली कई सारी मशीन है
जबकि मेरे पास एक ही रंग है हरा
वह भी तबका जब मैं पैदा हुआ था।
मुझे डर लग रहा है कि वे कभी भी मुझये मेरा हरा रंग छीन लेंगे
और घोषित कर देंगे
देखों मैंने हरे रंग को डर में मिलाकर गाढ़ा लाल रंग तैयार किया है।
क्योंकि अब धरती और पानी भी लाल रंग का होता जा रहा है।
मै अपने जिस्म पर पड़े हरे रंग से हर रोज माफी मांगता हूं
क्योंकि मैं इस रंग को अब बचा नहीं पा रहा हूं
क्योंकि आज की दिल्ली रंगों को बदलने वाली हो चुकी है।।

नीतीश मिश्र

कविता में नहीं रचता हूँ ईश्वर

अब मैं कविता में
नहीं रचता हूँ
कोई ईसा ईश्वर
जो कभी कविता मे सखा बना हो
अब मैं नहीं सोचता हूँ किसी ऐसे ईश्वर को
जिसके नाम से एक विशेष युग रहा हो
अब मैं जब भी ईश्वर के बारे मे
सोचता हूँ
वह मेरे सामने गुनहगारो की तरह खड़ा हो जाता हैं
अब मैं नहीं सोचता हूँ उस ईश्वर के बारे मे
जिसकी दया पर लोग कविता लिखना सिख लिए ||

नीतीश मिश्र

हमे सोचना होगा

अब हमे सोचना होगा
गाँव के बुडे बरगद के बारे में
आमो के पेड़ो के बारे में
घर में खाली चारपाइयो के बारे में
बगीचो के बीच बनती हुई दरार के बारे में
हमे सोचना होगा
अब गाँव मे कोई ऐसा बुजुर्ग नहीं बचा हैं जिसे
बच्चे दादा कह सके
हमे सोचना होगा
गाँव के धूप के बारे मे
घर के आँगन के बारे में
अब हमे सोचना होगा
नहीं तो ख़त्म हो जाएगा गाँव
हमे सोचना होगा
की अब क्यों नहीं कोई गौरेया हमारे घर मे
अब क्यों नहीं आता कोई भिखमंगा घर पर
अब हमे सोचना होगा
गाँव मे ऐसी कोई जगह नहीं हैं
जहाँ भूत रहते हो
अब हमे सोचना होगा गाँव की लड़कियो के उदासी के बारे मे ||

नीतीश मिश्र

रात अब चुप -चाप आती हैं

रात अब चुप -चाप आती हैं
और सिरहाने बैठ जाती हैं
और सुनने लगती हैं मेरे जिस्म से निकलती हुई आवाज़ को
चाँद पूरी रात
अपनी रोशनी पर पहरेदारी करता हैं
और मेरी आँखो से सपने निकलकर
दूधिया रोशनी मे जुगनू की तरह आँखमिचोली करने लगते हैं
ऐसे मे सुनाई देती हैं
बकरियो की मिमियाती हुई आवाज़
जो बताती हैं
दिन भर की दास्तां की किस झाड़ी में कब किस बच्चे की पतंग फँस गई थी
तभी नीले गुंबद से आसमान को देता हैं कोई आवाज़
मानो धरती से कोई बुला रहा हैं
बादलो मे छुपे हुए चेहरो को
ऐसे में कब आँगन मे एक हल्की सी धूप उतर जाती हैं
और मैं आसमान से लेकर एक ख्वाब चल पड़ता हूँ मैदान की और ||

नीतीश मिश्र

समय क्या तुम बता सकते हो

समय क्या तुम बता सकते हो
आज मेरे जूते पहले की तरह क्यो नहीं सुंदर हैं?
जबकि जूता लेते वक्त समय ही साक्षी था
समय क्या तुम बता सकते हो
आज नदियाँ क्यो नहीं सुंदर हैं
जबकि मैं नदी से जब पहली बार मिला था
तब नदी ने ही कहा था
मैं तुम्हारे अंत से के बाद ही मरूँगी
जबकि आज मैं जिंदा हूँ
और नदी बीमार ....
समय क्या तुम बता सकते हो
एक घर समय रहते ही खंडहर मे बदल जाता हैं जबकि एक मूर्ति समय के बाद भी जिंदा रहती हैं ||

समय अब तुम्हे बताना होगा
मेरे जूते आज क्यो नहीं सुंदर हैं ||
नीतीश मिश्र

बचे हुए दिनो में देखने को मिल सकता हैं प्यार

क्या इन बचे हुए दिनो में
देखने को मिल सकता हैं
एक भिखमंगे को मिल गई अपनी मंज़िल
या एक बौने ने
धरती के किसी कोने मे लिख दिया हैं अपना प्यार
क्या बचे हुए दिनो मे सुना जा सकता हैं
दादी की वह आवाज़
जिसे घर के दरवाजे भी सुनकर डरते थे
क्या बचे हुए दिनो में कभी लौटकर आएगा डाकिया
और सुनाएगा बाबूजी का अब वेतन बढ़ गया हैं
क्या बचे हुए दिनो मे देखने को मिलेगा
गाँव मे कोई नया बगीचा तैयार हो रहा हैं
क्या बचे हुए दिनो में हम केवल अयोध्या की डरावनी कहानी सुनेंगे ||
क्या हमने इसलिए अपने दिन हिफ़ाज़त से बचाकर रखे हुए थे ||

नीतीश मिश्र

आज शहर बहुत उदास हैं


आज शहर बहुत उदास हैं
शहर की गलियों में फैल चुकी हैं गंदगी
मकानों पर बन रहा हैं गुंबद जालो का
शहर खो रहा हैं
धीरे धीरे अपना स्वाद ....
और मैला हो रहा हैं
शहर का इतिहास ....
शहर की आत्मा धीरे धीरे फटने लगी हैं कई जगह से ...
शहर के होशियार लोग हो रहे हैं नपुंसक....
बच्चे बनते जा रहे हैं बहुरुपिया
धीरे -धीरे शहर के उपर का चमकता हुआ सूरज डूब रहा हैं
शहर के देवता मंदिरों से कर रहे हैं पलायन ....
लड़कियो ने बंद कर दिया हैं जाना स्कूल
नदियो मे नहीं उतरती हैं अब नाँव
आसमान मे कोई नहीं देख रहा हैं इंद्रधनुष
शहर से जा रहे हैं एक एक करके सब फ़क़ीर ....
शहर से ख़त्म होती जा रही हैं प्रेम कहानियाँ ....
अब दूसरे शहर से नहीं आते हैं यहाँ पर जानवर
अब शहर के देह पर नहीं उतरता हैं कोई अंधेरा ....
क्योकि शहर मे रो रही हैं लड़कियाँ ....
लड़कियाँ बंद हैं सदियो से हुकूमत के रंग में
शहर उदास हैं ....
क्योकि शहर मे रहने वाली लड़कियाँ
वर्षो से उदास हैं
इसलिए शहर अब मर रहा हैं
क्या किसी को मालूम हैं
यह शहर अब बीमार हो चुका हैं ||

नीतीश मिश्र

सड़्क पर आदमी सोया हैं

सड़्क पर एक आदमी ऐसे सोया हैं
जैसे वह सोते _सोते आकाश में कुछ खोज रहा हैं
वह खोज सकता हैं कुछ चिल्लर पैसे
या पतंग
या घायलो का पता
सड़्क पर सोया आदमी घंटो से करवट नहीं लिया हैं
वह आकाश को बताना चाहता हैं
इंसानो के फिदरत मे नहीं होता हैं करवट बदलना
वह सोए -सोए एक दिन ऐसे गुम हो जाएगा
जैसे गुम हो जाते हैं
हमारे जेहन मे रखे हुए शब्द
सड़्क पर सोए हुए आदमी को नहीं चिंता हैं
कि उसे ऐसे मे देखकर लोग क्या सोचेंगे
या हवा या धूप क्या सोचेगी
सड़्क पर सोया हुआ आदमी कभी -कभी आँखे उठाकर देखता ज़रूर हैं
पर उसकी आँखो मे नहीं बनती किसी की तस्वीर
गोया आदमी के साथ -साथ आदमी की आँखे भी अब विश्वास करना छोड़ दी हैं
सड़्क पर सोया आदमी एक दिन खो जाएगा
और वहाँ पर रहेगी कुछ रिक्तता जिसे
समय भी नहीं भर पाएगा
बहुत होगा तो कभी एक बच्चा इस जगह से गुजरेगा
और उसे सुनाई देगी सोए हुए आदमी की आवाज़
और बच्चा एक बार फिर खड़ा होगा सोए हुए आदमी को खोजने के लिए
बच्चा जब खोजकर थक जाएगा
और नहीं पाएगा कहीं सोए हुए आदमी को
तब बच्चा लिखेगा एक कविता ||

नीतीश मिश्र

वह बना रही है अपने लिए जगह


उसे मालूम है
भले से वह खिड़कियों के बीच से
देख रही रंगों को
उसे मिलना है एक बार कम से कम एक बार
धूले हुए आकाश से
रंगी हुई हवा से
आस्था से युक्त मंदिरों की मूर्तियों से
इसलिए वह बना रही है अपने लिए एक जगह
और साफ कर रही है आसमान को
हवा को
फूलों को
दरिया को
वह उड़ना चाहती है
और फर्क महशूस करना चाहती है
खुली हवाओं और कमरों के बीच बंद हवाओं के बीच
वह फर्क महशूस करना चाहती है
घर के पानी और नदी के पानी के बीच
वह देखना चाहती है
अयोध्या और गुजरात की मिट्टियों को
वह देखना चाहती है अलीगढ़ और बनारस की रात में भला क्या फ र्क होता है।
वह देखना चाहती है
क्या सचमुच में रात को दिल्ली का रंग डाइनों की तरह हो जाती है
वह देखना चाहती है
खादी के भीतर आत्मा रहती है या किसी का शरीर
इसलिए वह जगह बना रही है
जिससे वह उड़ सके
और बता सके
कि सागर के किनारे जो धरती खाली है वह भी सागर के विरूद्ध जेहाद करना चाहती है।।
नीतीश मिश्र

अभी बचा हुआ हैं शहर


अभी बचा हुआ हैं शहर
और आगे भी बचा रहेगा ....
क्योंकि अभी -अभी
मैंने शहर मे देखा हैं
छत पर एक लड़की को हँसते हुए ...
एक लड़की का हँसना बहुत ही शगुन भरा होता हैं
वह भी उस समय जब शहर की दीवारो पर अंधेरे का कब्जा हो
और शिकारी निकल पड़े हैं शिकार करने
ऐसे मे जब शहर मे तमाम कवि
अपनी कायरता को ओढकर लिख रहे हैं कविता
पंडित भविष्य के नाम पर लूट रहे हैं
डॉक्टर बीमारी का बहाना बनाकर
कर रहा हैं आत्मा की हत्या ....
ऐसे मे जब एक लड़की हँसती हैं
तो यही लगता हैं की अभी शहर मे फिरसे जलेगा एक चूल्हा
और
तैयार होगा एक मोची
और बनाएगा आदमी के पाँव के नाप का जूता ||

नीतीश मिश्र