आज शहर बहुत उदास हैं
शहर की गलियों में फैल चुकी हैं गंदगी
मकानों पर बन रहा हैं गुंबद जालो का
शहर खो रहा हैं
धीरे धीरे अपना स्वाद ....
और मैला हो रहा हैं
शहर का इतिहास ....
शहर की आत्मा धीरे धीरे फटने लगी हैं कई जगह से ...
शहर के होशियार लोग हो रहे हैं नपुंसक....
बच्चे बनते जा रहे हैं बहुरुपिया
धीरे -धीरे शहर के उपर का चमकता हुआ सूरज डूब रहा हैं
शहर के देवता मंदिरों से कर रहे हैं पलायन ....
लड़कियो ने बंद कर दिया हैं जाना स्कूल
नदियो मे नहीं उतरती हैं अब नाँव
आसमान मे कोई नहीं देख रहा हैं इंद्रधनुष
शहर से जा रहे हैं एक एक करके सब फ़क़ीर ....
शहर से ख़त्म होती जा रही हैं प्रेम कहानियाँ ....
अब दूसरे शहर से नहीं आते हैं यहाँ पर जानवर
अब शहर के देह पर नहीं उतरता हैं कोई अंधेरा ....
क्योकि शहर मे रो रही हैं लड़कियाँ ....
लड़कियाँ बंद हैं सदियो से हुकूमत के रंग में
शहर उदास हैं ....
क्योकि शहर मे रहने वाली लड़कियाँ
वर्षो से उदास हैं
इसलिए शहर अब मर रहा हैं
क्या किसी को मालूम हैं
यह शहर अब बीमार हो चुका हैं ||
नीतीश मिश्र
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