Wednesday 22 April 2015

कविता में नहीं रचता हूँ ईश्वर

अब मैं कविता में
नहीं रचता हूँ
कोई ईसा ईश्वर
जो कभी कविता मे सखा बना हो
अब मैं नहीं सोचता हूँ किसी ऐसे ईश्वर को
जिसके नाम से एक विशेष युग रहा हो
अब मैं जब भी ईश्वर के बारे मे
सोचता हूँ
वह मेरे सामने गुनहगारो की तरह खड़ा हो जाता हैं
अब मैं नहीं सोचता हूँ उस ईश्वर के बारे मे
जिसकी दया पर लोग कविता लिखना सिख लिए ||

नीतीश मिश्र

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