मैं बहुत खुश था
जितना आसमान अपने नीले रंग के साथ
उतना ही खुश मैं अपने हरे रंग के साथ था,
मैंने, कभी आसमान से उसका हरा रंग नहीं मांगा
और न ही कभी ललक हुई कि
अरसमान से मैं कुछ रंग चुरा लूं
क्योंकि मुझे यह सिखाया गया था
हर व्यक्ति अपने- अपने रंग के साथ खुश रहता है
और अपने रंग में ही खोज लेता है
अपनी मुक्ति
लेकिन मेरा विश्वास टूट गया
जब उन्होंने मेरे सामने खड़ी हरे रंग की इमारत को
लाल रंग से रंग दिए
यह कहते हुए कि तुम अभी देश का इतिहास नहीं जानते हो
उसी दिन से मैं अपने रंग के साथ आसमान से दूर
और धरती के किसी कोने में सिमटा हुआ हूं
क्योंकि मेरे चारो ओर एक ही हवा बहती है
जिसमें सुनता रहता हूं
कि वे लोग कभी भी मेरे जिस्म के हरे रंग को
लाल रंग से रंग देंगे।
क्योंकि उनके पास लाखों हाथ है
और रंग बनाने वाली कई सारी मशीन है
जबकि मेरे पास एक ही रंग है हरा
वह भी तबका जब मैं पैदा हुआ था।
मुझे डर लग रहा है कि वे कभी भी मुझये मेरा हरा रंग छीन लेंगे
और घोषित कर देंगे
देखों मैंने हरे रंग को डर में मिलाकर गाढ़ा लाल रंग तैयार किया है।
क्योंकि अब धरती और पानी भी लाल रंग का होता जा रहा है।
मै अपने जिस्म पर पड़े हरे रंग से हर रोज माफी मांगता हूं
क्योंकि मैं इस रंग को अब बचा नहीं पा रहा हूं
क्योंकि आज की दिल्ली रंगों को बदलने वाली हो चुकी है।।
नीतीश मिश्र
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