Wednesday 22 April 2015

किताबों की दुनिया

जब एक बार सब कुछ खत्म हो गया था
यहां तक की एक मुलायम संभावना भी
और मैं नहीं देख पा रहा था
आसमान के दरिया में कोई अपने लिए कोई हरा रंग
इसके बावजूद भी मैं चल रहा था......
और मेरे पास बची थी सिर्फ एक किताब.....
जिसमें न तो मेरा कोई इतिहास था और न ही मेरे नाम का कोई उल्लेख
इसके बावजूद भी मैं अपने साथ किताब को ढो रहा था
कभी- कभी हवा के झोंकों के बीच मैं और मेरी किताब अदृश्य भी हो जाती थी
लेकिन! दूसरे ही पल हम दोनों की मौजूदगी ऐसे होती थी
जैसे हम रेल की पटरियां है जो शुरू से लेकर अंत तक साथ चलते रहेंगे
भले ! से मंजिल का रास्ता बदलता ही क्यों न हो?
मुझे लगता है
समय के अंतिम छोर पर सब कुछ खत्म होने के कगार पर होगा
उस समय भी एक किताब बची रहेगी
जिसके माध्यम से मनु लिखेंगे
समय चक्र का इतिहास।
मुझे लगता है जब किताबे बची रहेगी
तो सब कुछ बचा रहेगा
मसलन इन किताबों तक आऐंगे दीमक
और जहां दीमक आते है
वहां संगीत का हस्तक्षेप खद -प खुद बढ़ जाता है
जब संगीत होगी
तब किताबों में उतरेगा नीला सा आसमान
और बहुत सारे रंग।
जब ये किताबे बची रहेंगी तो
आऐंगे पेड़ और खोजेगें इसमें अपना पुराना अस्त्वि का विरल सा कोई राग
किताबों का बचना समय के बचने का एक सच है।।
नीतीश मिश्र

No comments:

Post a Comment