Monday 24 August 2015

पंद्रह अगस्त वर्ष 2015

जब कभी रुनझुन सी हवा
आकर बैठती हैं माथे पर
उसकी यादों के रंग बिरंगे फूल
अन्न की तरह लगने लगता हैं
कभी कभी उसका ऐसे आना
जैसे सूखे पौधे पर एक नई कोपल का चढ़ने जैसा लगता हैं
ऐसे में अंधेरे में कई आईने टूटते हैं
लेकिन आईने टूटकर भी आईने ही रहते हैं
और मैं बिखर जाता हूँ
पंद्रह अगस्त की तरह जैसे उस दिन हमारी धरती बिखरी थी
पंद्रह अगस्त 1947  को हिंदुस्तान की धरती खूब रोई थी
क्योकि इस दिन कुछ गधहों ने एक माँ के व्यक्तित्व को दो भागों में बाँट दिया था
वर्ष 2015  के पंद्रह अगस्त को
मेरा भी व्यक्तित्व विभाजित हो गया
उस दिन दिल्ली बहुत हंस रही थी
क्योकि कुरुक्षेत्र में इस बार फिर अभिमन्यु जब निहत्था था तभी उसपर हमला बोला गया
लेकिन शुक्र हैं
इस बार के कुरुक्षेत्र के युद्ध में अभिमन्यु मरा नहीं बल्कि घायल हुआ हैं
यह कुरुक्षेत्र का संस्कार हैं
निहत्थों पर हमला बोलना
मै पराजित होकर अपने आईने  पास हूँ
और वही से देखता हूँ
पश्चिम में लहरा रहा हैं मेरा हरा रंग
जब व्यक्तित्व घायल होता हैं
तब इतिहास भी बदलता हैं
मौसम भी बदल जाता
ईश्वर भी
आज भी जब अँधेरे में देखता हूँ अपना शव
जिसे कुत्ते लिए जा रहे हैं
श्मशान में
और एक करुणा के साथ
अपने मद्धिम स्वर में लिख रहे हैं मिटटी में मेरी तमाम अंधूरी कहानियां
 अब जबकि मैं घायल हूँ
उजाले को यह बात मालूम हैं
मैं फिर कुरुक्षेत्र में लौटकर आऊंगा
और उजाला शुरू कर दिया हैं हथियार बनाना
जबकि मैं कोई  युद्ध हथियार से नहीं   विस्वास से लड़ा हूँ
आज जब जूतो से पूछता हूँ
क्योकिं यह मेरे सफर के सबसे विश्वसनीय साथी रहे हैं
क्या मैं फिर युद्ध लड़ सकता हूँ
जूते बड़े ही विश्वास के साथ कहते
हां
और चाँद छुप  जाता हैं
मेरे अँधेरे का जासूस कोई और नहीं बल्कि यह चाँद हैं
जो अक्सर मेरे साथ विश्वासघात करता आया हैं ॥


Saturday 15 August 2015

आईना ही बताएगा आगे का रास्ता

 जब हम नहीं होंगे
कहीं नहीं होंगे …
न तो कविताओं में और न ही कहानियों में
जब कहीं कुछ नहीं बचा होगा
तब धरती पर जीवाश्म की तरह
आईने बचे होंगे
तब हमारे समय का सबसे बड़ा ग्रन्थ
आईना  होगा
और लोग आईनों से पूछ कर
हरेक जख्मों का इतिहास लिखेंगें
उस समय का सबसे बड़ा धर्म आईना होगा
आईना जो बोलेगा
लोग वही लिखेंगे
आईना: बोलेगा इंसान और देवता में कोई फासला नहीं होता
आईना बताएगा उजाले और अँधेरे में कोई अंतर नहीं होता
आईना बताएगा गरीब के पेट की सुंदरता कैसी होती हैं
आईना बताएगा एक औरत की आँख में कितना आंसू हैं
आईना बताएगा दिल्ली में यमराज रहता हैं
आईना  ही तय करेगा की
इस सदी में कौन ताजमहल बनवायेगा
आईना  ही बताएगा की किन लोगों ने भ्रूणों की हत्या की हैं
आईना यह भी बताएगा की रात में चीटियाँ कैसे गाती हैं
आईना  ही बताएगा
नदी कितनी भूखी  कर्जदार हैं
तुम क्या सोचते हो
हमेशा तुम ही रहोगे
नहीं धरती पर दो ही लोग जीवित रहेंगे
एक आईना
दूसरा पेड़
दोनों तुम्हारे साथ चलते नहीं हैं
इसलिए हम उन्हें कमजोर मानकर दरकिनार कर देते हैं
लेकिन यह चलते तो नहीं हैं पर इनकी नजर बहुत दूर तक रहती हैं
यह बैठे -बैठे ही देख लेते हैं
कब किसकी हत्या होने वाली हैं
कब किसका रंग बदलने वाला हैं
आईनो को यह भी मालूम रहता हैं
चन्द्रमा आज कितना उदास हैं
आईना ही इस सदी का संत हैं
जो सब जानता हैं मगर चुप रहता हैं ॥
अब आईना ही बताएगा आगे का क्या रास्ता हैं

Monday 10 August 2015

पेड़ नहीं देवता हैं

कल जब अँधेरा इतना घना हो जायेगा
और तुम्हें नहीं दिखाई देगी अपनी स्मृतियाँ
तुम्हें नजर नहीं आएगा कोई ऐसा अभिलेख
जहाँ से तुम देख सको अपने गौरव का स्रोत
तो समझ लेना
आने वाली सदी में
इतिहास यदि किसी का लिखा जायेगा तो
वह मात्र पेड़ होगा !
क्योकि धरती पर यदि किसी ने अपनी ईमानदारी बचा कर रखा हैं तो
वह हैं केवल पेड़ !!
ऐसे में अब तुम्हे स्वीकारना होगा
की तुम्हारे समय का सबसे न्यायप्रिय शासक कोई और नहीं बल्कि वह पेड़ हैं
जिसकी जड़े आज भी माँ के गर्भ में ही जीवित हैं
पेड़ सिर्फ पेड़ नहीं हैं
वह तुम्हारे समय का सबसे बुढ्ढा देवता हैं
देवता तो तुम्हारी प्रार्थना सुनकर कभी कभी हँसता भी हैं
लेकिन पेड़ो ने कभी भी नहीं हंसा
बल्कि तुम्हारे दुःख में वे सदियों से रोते आये हैं
पेड़ो ने तुम्हें उस वक्त भी समझाया जब तुम उनकी बाँहो में झूलकर मरते थे
तुम तो मर गए लेकिन पेड़ पर एक दाग लग गया
जिसे वह आज भी धो रहा हैं
पेड़ अपने समय का सबसे खूबसूरत देवता हैं
अँधेरे से अंतिम समय तक वही लड़ता हैं ॥
जब तुम नहीं रहते हो अपनी किला में
उसके बाद भी वह तुम्हारे किला को संभालकर आज तक रखा हुआ हैं
आने वाली सदी में जब धर्म की किताबे लिखी जाएगी तो
उसमे मनुष्य का कहीं नाम नहीं होगा
आने वाली सदी को पेड़ ही रास्ते बताएँगे ॥

नीतीश मिश्र

Saturday 8 August 2015

मैं अंधेरे में बनाता हूं अपना अक्स

 शाम आती है
आहिस्ते- आहिस्ते एक उदासी देकर चली जाती है
मैं अंधेरे का एक टुकड़ा लेकर बनाने लगता हूं
एक पंतग.... 
जो अंधेरे में उड़ सके
और मैं सुनता रहूं भीतर ही भीतर एक बच्चे की हंसी
जो दिन भर खुली हवा में
किताबों से दूर रहा
दौड़ता रहा अपनी हथेलियां उठाए
कभी इस गली में कभी उस गली में
और भूल गया खेलना...
मैं अंधेरे का एक टुकड़ा लेकर बनाता हूं
एक लट्टू
जिसे एक बच्चा धरती पर कहीं भी नचा सके
और उम्मीद भर सके अपने हाथों में
कि उसमें अभी भी वह हुनर है
जिसके दम पर वह आगे दुनिया को नचा सकता है
मैं अंधेरे के एक टुकड़े से बनाता हूं
एक चित्र
जिसे एक बच्चा अपनी मां समझ सके
और लड़ सके
अंधेरे से!
 मैं अंधेरे का एक टुकड़ा लेकर
बनाता हूं एक इमारत
जहां एक बच्चा आए और सो सके
और एक ख्वाब बुन सके
मैं रात भर लड़ता हूं अंधेरे से
जिससे एक बच्चा अपने अंदर
महसूस कर सके उसे कुरूक्षेत्र में जाना है
मैं अंधेरे में बनाता हूं अपना अक्स
जिससे मैं रह सकू अपनी दीवारों के साथ।।
नीतीश मिश्र


Friday 7 August 2015

रात भर दीवारे जागती है

एक रात मैं देखता हूं
खुदा सोते हुए ख्वाब देख रहा है
और अंधेरा हिंसा करता जा रहा है
दीवारे सिमटती जा रही है
कमरे का आइना सदियों से मौन होकर
छत के रंग को घूरे जा रहा है
ऐसा लगता है जैसे अंधेरा अब किसी की हत्या करने वाला है
लेकिन कमरे में मेरे अलावा दीवारे है/ जूते है/ झाड़ू है/ किताबे है/ कुछ गंदे कपड़े
सभी खामोश है
सभी की आंखों में कभी अतीत का सम्मोहन
कभी नीला सा भय
कभी आंखों में एक मद्धिम सी रोशनी के बीच
विज्ञान के भरोसे खोजती है जिंदगी में सुराख
और अंधेरा फैलाता रहता है अपना सीना इस कदर की
दीवारे चादरों में सिमटने लगती है
आइना टूटने लगता है
जिंदगी अपने ख्वाब जूते में रखने लगती है
और घना होता है अंधेरा
कमरे में रखी कुछ पाषाण मूर्तियां बोलने लगती है
यह अपने समय की हिंसा है
किताबे बोलती है यह अपने समय की राजनीति है
जूतो बोलता है
यह अपने समय का हत्यारा है
आईना बोलता है
यह देश का सौदागर है
दिवारे बोलती है
यह अपने समय का उस्ताद है
क्या ये सब अपने- अपने समय के हथियार से ही मारे जाएंगे?
यह एक दिन की बात नहीं है
जबसे वह सत्तासीन हुए है
तभी से कमरे में अंधेरा बढ़ता जा रहा है
दीवारे जाग रही है
जूते आखिरी सांस ले रहे है
कहीं अगर थोड़ी सी उम्मीद बची है तो वह रेगिस्तान में छिपी हुई है।

नीतीश मिश्र