Saturday 2 March 2013

आरिफ

जबसे बाबरी मस्जिद गिरी हैं
तभी से कायनात की धरती सुखी पड़ी हैं
 और तभी से हमारे यहाँ ध्वनि प्रदुषण बढ़ा  हैं
और तभी से आसमान के बादल सहम कर चलते हैं
हवाएं भी अब ठहर -ठहर कर बहती हैं
और तभी से मेरा दोस्त आरिफ क्रब में सो रहा हैं,
सभी इस बात को जानते हैं और मानते भी हैं
कि आरिफ अब मर चुका हैं,
लेकिन सिर्फ मैं ही इस बात को स्वीकारता हूँ
वह अब भी सो रहा हैं ।

क्योकि जब मस्जिद गिरी थी
और लोग खून से धरती के जिस्म को सींच रहे थे
तब हम और आरिफ
धरती पर लगे हुए धब्बों को धो रहे थे
और सोये हुए लोगों को जगा रहे थे
यह सोचकर कि
किसी तरह भी बच जाये उनके सपने
लेकिन इस अजायब दुनियां में
आदमी को छोड़कर
सभी को जिन्दा रहने का अधिकार हैं,
आरिफ,भी एक आदमी का चेहरा लिए
अपने सपनों के महक को सूंघ रहा था
लेकिन साम्प्रदायिकों की नज़रों ने
उसके देह के साथ बलात्कार कर बैठी 
उस दिन पूरे गाँव की आँख ने मान लिया
और अपने बहुत अन्दर से
उसके वजूद को बाहर निकालकर
घोषित कर दिया कि
आरिफ अब मर चुका हैं
लेकिन उस दिन भी जब हवा में नमाज़ गूंज रही थी
मैंने अपने बहुत भीतर सुना था कि आरिफ अब भी सो रहा हैं,
दुनियां में रोज लोग सोते हैं रोज लोग जागते हैं
ऐसे लोगों का सोना और जागना
बिल्कुल एक जैसा होता हैं ।
आरिफ,क्रब में सोते वक्त मुझसे कहा था कि
"तुम मेरी क्रब पर रोज आना
और अपनी प्रेम कहानी सुनाना
और एक पेड़ लगा देना"
वादे के मुताबिक मैंने एक पेड़ लगा दिया
और रोज शाम को जाकर
प्रेम पत्र पढ़कर सुना देता था
मेरी प्रेम कहानी सुनकर
वह कुछ देर के लिए जाग जाता था
और देर तक हँसता था
उसकी हँसी की रोशनी में
मेरे दुःख कम हो जाते थे
और मेरी आत्मा को एक नया विजन मिल जाता था,
लेकिन आरिफ रोज मुझसे एक ही बात कहता था
क्या मस्जिद के गिर जाने से
हिन्दुओं की दरिद्रता दूर हो गयी ?
या मुसलमान पहले की अपेक्षा और गरीब हो गये
या हिन्दू नेता लोग और विकसित हो गये
क्या मुसलमान नेताओं का पहले की तरह रोना अभी भी जारी हैं ॥
उसके किसी भी प्रश्न का जबाब मैं सही से नहीं दे पाता हूँ
क्योकि नब्बे के बाद जो दुनियां बन रही हैं
उसकी नीवं में आदमी ही दबाये गए हैं
और जिस दुनिया में आदमी की कोई कीमत नहीं होती
वह दुनियां एक दिन आदमखोर हो जाती हैं
और नब्बे के बाद की दुनियां
आदमी को मारने के साथ -साथ
पहाड़ /जंगल और नदी को भी मार रही हैं
मेरे चारों और कितनी दुसह हवा बह रही हैं
और मेरा दोस्त सो रहा हैं
जबकि मैं जागते हुए मर रहा हूँ ।
मुसलमान कुरान की आयतों से बाहर निकलकर
विस्फोटक सामग्री बन रहे हैं,
और हिंदू इमारतों को महाभारत की शक्ल देने में आमादा हैं,
जबकि आदमी बने रहने की
मैं सारी सीमाएं लाँघ चुका हूँ
आज मेरा हर ख्वाबं मुझ पर हँस रहा हैं
जबकि मेरे विरुद्ध साजिशों का फतवा जारी हैं ।

मेरे गाँव और शहर में
कोई नया अस्पताल या नया स्कूल नहीं बना
हाँ !लेकिन मस्जिद और मंदिर जरूर बन गए
आदमी अब स्त्री से प्रेम न करके
अपनी भूख से कर रहा हैं
और अपने जिस्म पर लाचारी को पहनकर
सूरज के खिलाफ चल रहा हैं,
और ऐसे में लालकिले से सुबह -शाम एक आवाज आती हैं
कि हिंदुस्तान आजाद हैं,
अब मैं, जब भी आरिफ की क्रब जाता हूँ
वह सोते हुए रोता रहता हैं
और मुझसे पूछता रहता हैं कि
इस दुनियां में तुम कब -तक ऐसे मरते रहोगे
और कब तक अपना पुराना प्रेम पत्र पढ़कर सुनाते रहोगे,
जबकि तुम्हे पता हैं कि
ये दुनियां तुम्हें तुम्हारा इश्क नहीं देगीं
ये दुनियां अगर कुछ देगीं तो सिर्फ मौत।

क्या यह सही नहीं हैं कि
आरिफ का क्रब में सोना
और मेरा जागते हुए मरना
दोनों घटनाओं का एक ही अर्थ हो
जबकि यह मुझे भी पता हैं कि हम इतिहास को नहीं बदल सकते हैं,
हम केवल इतना ही कर सकते हैं कि
वर्तमान के आईने पर इतिहास को थोप नहीं सकते
लेकिन यह आदमखोर दुनियां इतिहास क्या भूगोल को भी बदल सकती हैं,
अब आरिफ क्रब से
चिल्ला --चिल्ला कर मुझे बुलाता हैं
जब भी देश में कोई विस्फोट होता हैं,
वह मुझसे पूछता हैं ----
क्या अब दुनियां में ऐसे ही लोग रहेंगे
जो केवल दूसरों को मारकर अपने होने का प्रमाण देंगे,
फिर क्या अर्थ रह जाता हैं मेरा मुसलमान होने का और तुम्हारा हिन्दू होने का?.
आज स्थिति और भी भयंकर हो गयी
जब मैंने,अख़बार में यह खबर पढ़ी की
कलैक्टर ने कब्रिस्तान की जमीन किसी भूमाफिया को बेच दी,
अब आरिफ क्रब से बाहर आकर मेरी परछायी में समा गया हैं
मैं भी अब बहुत खुश हूँ
क्योकि मेरी मृत्यु का संस्कार अब हिन्दू रीति -रिवाज से नहीं होगा
मैं अब तो ना हिन्दू ना मुसलमान की जमात में शामिल हो गया ॥


नीतीश मिश्र  



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