औरत;एक तालाब हैं
पुरुष जब चाहता हैं
जैसे चाहता हैं ....
उसमे पत्थर फेंकता हैं
और तालाब में जैसे चाहता हैं
वैसे ही तैरता हैं,
अपने समय के अर्थ को पाकर
तालाब का रास्ता भूल जाता हैं।
औरत एक नदी हैं
जो बहती रहती हैं
पुरुष उसकी धारा को
जब चाहता हैं
अपने अहंकार के मैदान की
ओर मोड़ देता हैं
और एक दिन नदी को
सूखने के लिए छोड़ देता हैं।
औरत:एक पेड़ का पत्ती हैं
जिसे टूट कर गिरना ही हैं
औरत पहाड़ की टूटी हुई चट्टान हैं
जिस पर हमने अपने मंजिल का
एक अन्धुरा पता लिख रखा हैं।
या औरत पत्थर की एक चाकी हैं
जो घर में सबसे बेकार जगह में
अपने अर्थ को खोज रही हैं
या औरत किसी पोखरे की कोई
मिटटी हैं जिस पर हाथ रखते ही
वह कोई और सूरत बदल लेती हैं।
एक औरत कब से नींद में जाग रही हैं
एक बच्चे को जनने से लेकर
पति के सो जाने तक।
या औरत एक आइना हैं
जिसे हमने केवल दीवार पर
टांग दिया हैं
या औरत वह गिलास हैं
जिसमे हम केवल अपनी
प्यास बुझाते हैं।
या औरत वह कपड़ा हैं
जो एक तय समय के बाद
बदन पर से,अपना वजूद खो देती हैं
या औरत घड़ी की कोई सुई हैं
जो सिर्फ समय बताती हैं
और कुछ नहीं कहती ....।[नीतीश मिश्र ]
पुरुष जब चाहता हैं
जैसे चाहता हैं ....
उसमे पत्थर फेंकता हैं
और तालाब में जैसे चाहता हैं
वैसे ही तैरता हैं,
अपने समय के अर्थ को पाकर
तालाब का रास्ता भूल जाता हैं।
औरत एक नदी हैं
जो बहती रहती हैं
पुरुष उसकी धारा को
जब चाहता हैं
अपने अहंकार के मैदान की
ओर मोड़ देता हैं
और एक दिन नदी को
सूखने के लिए छोड़ देता हैं।
औरत:एक पेड़ का पत्ती हैं
जिसे टूट कर गिरना ही हैं
औरत पहाड़ की टूटी हुई चट्टान हैं
जिस पर हमने अपने मंजिल का
एक अन्धुरा पता लिख रखा हैं।
या औरत पत्थर की एक चाकी हैं
जो घर में सबसे बेकार जगह में
अपने अर्थ को खोज रही हैं
या औरत किसी पोखरे की कोई
मिटटी हैं जिस पर हाथ रखते ही
वह कोई और सूरत बदल लेती हैं।
एक औरत कब से नींद में जाग रही हैं
एक बच्चे को जनने से लेकर
पति के सो जाने तक।
या औरत एक आइना हैं
जिसे हमने केवल दीवार पर
टांग दिया हैं
या औरत वह गिलास हैं
जिसमे हम केवल अपनी
प्यास बुझाते हैं।
या औरत वह कपड़ा हैं
जो एक तय समय के बाद
बदन पर से,अपना वजूद खो देती हैं
या औरत घड़ी की कोई सुई हैं
जो सिर्फ समय बताती हैं
और कुछ नहीं कहती ....।[नीतीश मिश्र ]
No comments:
Post a Comment