Wednesday 20 March 2013

एक पागल की कथा

" एक पागल की कथा "
मुझे कुछ दिन से लोगों ने
पागल घोषित कर दिया
क्योकि मैं लीक पर चलने के
सरे व्याकरण को चुल्हें में झोंक दिया,
घर वालों के /जाति -धर्म वालों के
सबके अपने -अपने कायदे होते हैं
जैसे -बाजार के अपने कायदे होते हैं
बाजार में टिके रहने के लिए
बनिया बनना पड़ता हैं
ठीक वैसे ही घर में अपनी
जगह बनाने के लिए घर घुसना बनना पड़ता हैं ।
घर के लिए आप एक .....
ताखा /आलमारी बने रहिये
और बिना चेहरे के काजल की कोठरी में जमे रहिये
तब मिल जाती हैं लायक बेटें की उपाधि
ठीक वैसे ही ----
जैसे आजकल नपुंसकता भी
सभ्य होने की स्थायी गारण्टी हैं ।।
मेरा गुनाह सिर्फ इतना हैं
मेरा पाँव कुछ ज्यादा बड़ा हैं
और बाबूजी का जूता अब ठीक से नहीं बैठता
और बाबूजी के दिमाग का कोई सूत्र
मेरे घिताने से ऊपर नहीं चढ़ता
मैं घर वालों की निगाह में एक घुन हूँ
क्योकि मैं सरकार का कोई कुत्ता नहीं बन पाया
पर मुझे इस बात का रत्ती भर भी पछतावा नहीं हैं
मेरे लिए किसी सरकारी दफ्तर का आवारा
कुत्ता बनने से बेहतर हैं कि मैं हल्कू का झबरा कुत्ता बनकर
खेतों में दिन रात दौड़ता रहूँ ।
जब बाबूजी की हथौड़ी /छेनी नहीं सुधार पायी
तब वे घोषित कर दिये कि मैं पागल हूँ
मुझे नहीं चाहिए अपने भाईयों जैसा चरित्र
मैं खुश हूँ अपने पागलपन पर
क्योकि पागल होने पर मर जाती हैं अन्दर की कायरता
और बहार /भीतर का व्यक्तित्व बरगद की तरह
विशाल हो जाता हैं
अब यही मेरा आधार हैं जिस पर खड़ा होकर
मुझे लोकतंत्र की बघिया उघेडनी हैं
क्या इतना करने का साहस हैं आप में
मैं खुश हूँ अपने पागलपन पर
क्योकि अब मुझे घृणा नहीं होती हैं
कोड़ियों /अपाहिजों से .........
मैंने सरलता से तोड़ दिया रामचरितमानस के बंधन को
मैं पागल होकर अब खुश हूँ
क्योकि अब मैं किसी भी थाली में खा सकता हूँ
मेरे पास अब कोई शर्म नाम की कोई दिया नहीं हैं
मैं अब चिल्लाकर कह सकता हूँ की
हाँ !मैं उस लड़की से प्यार करता हूँ
शायद !अपना प्यार पाने के लिए और दूसरे के दर्द को
अपना मानने के लिए पागलपन से बेहतर
और कोई रास्ता शेष नहीं हैं
यही हैं मेरे जीवन का सत्य
मुझे ख़ुशी इस बात की हैं कि सत्य खोजने की राह में
मुझे कोई देवता नहीं मिला
बल्कि मुझे एक विचारधारा मिली कि चुप रहना
बहुत ही खतरनाक बीमारी हैं ।
मैं आज पागल होकर खुश हूँ
क्योकि अब मेरे पास जाति नाम की कोई सुविधा नहीं हैं
और मौसम भी अब मेरे विरुद्ध नहीं हैं
पहले --पहल जब सभ्य था
अपनी प्रेमिका की गली में एक बार चक्कर लगता था
और जबसे पागल हुआ हूँ
उसकी गली में ही डेरा डाल दिया हूँ .।।।

नीतीश मिश्र

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