जिंदगी के कई हिस्से
मैंने किराये के कमरों में
बिताया हैं,
जीवन का कई सच ....
दीवारों पर आज तक सुरक्षित हैं
जैसे --जैसे मेरी उम्र बदलती गयी
ठीक उसी तरह कमरों का भी
अपना अर्थ बदलता गया।
जैसे मेरे प्यार में,
अनुभव में,
एक गहराती आती गयी
वैसे ही कमरों का भी अनुभव संसार बड़ता गया
यदि कभी मुझे कोई अपनी आत्मकथा लिखनी पड़े
तब दीवारों का ही मुझे सहारा लेना पड़ेगा,
सबसे अधिक हंसी तब आती हैं
यह बताने में कि मेरा जन्म भी
हास्पिटल के एक किराये के कमरे में हुआ था,
अपने पहले और आखिरी प्यार के बारे में
मैं सबसे पहले दीवारों से ही कहा था।
एक बात कहूँ .........
जीतनी बातें मैं अपनी प्रेमिका से करता था
पहले दीवारों के सामने अभ्यास कर लेता था
बहुत सी कहानियां जो कागज पर नहीं लीख पाया
उसे अपनी आँखों से दीवारों पर लिख देता था,
वेदना की अंतहीन पीड़ा में
मेरा धैर्य,जब चाय की तरह उबलने लगता था
विस्वास के अंसख्य पत्तों में जब रोग लग जाते थे
उस क्षण भी कमरे की दीवारे ही मुझे साहस देती
मैं,इन दीवारों के सामने ऐसे झुकता था
जैसे कोई भक्त भगवान के सामने झुकता हो,
जब भी मैं खुद से लड़ते हुए कमजोर हुआ
दीवारे एक आईने की तरह मुझे मेरे सपने को
दिखाती थी,
ये दीवारे और किराये के ये कमरे
मेरी मृत्यु की भी साक्षी बनी रहें ...........
नीतीश मिश्र
मैंने किराये के कमरों में
बिताया हैं,
जीवन का कई सच ....
दीवारों पर आज तक सुरक्षित हैं
जैसे --जैसे मेरी उम्र बदलती गयी
ठीक उसी तरह कमरों का भी
अपना अर्थ बदलता गया।
जैसे मेरे प्यार में,
अनुभव में,
एक गहराती आती गयी
वैसे ही कमरों का भी अनुभव संसार बड़ता गया
यदि कभी मुझे कोई अपनी आत्मकथा लिखनी पड़े
तब दीवारों का ही मुझे सहारा लेना पड़ेगा,
सबसे अधिक हंसी तब आती हैं
यह बताने में कि मेरा जन्म भी
हास्पिटल के एक किराये के कमरे में हुआ था,
अपने पहले और आखिरी प्यार के बारे में
मैं सबसे पहले दीवारों से ही कहा था।
एक बात कहूँ .........
जीतनी बातें मैं अपनी प्रेमिका से करता था
पहले दीवारों के सामने अभ्यास कर लेता था
बहुत सी कहानियां जो कागज पर नहीं लीख पाया
उसे अपनी आँखों से दीवारों पर लिख देता था,
वेदना की अंतहीन पीड़ा में
मेरा धैर्य,जब चाय की तरह उबलने लगता था
विस्वास के अंसख्य पत्तों में जब रोग लग जाते थे
उस क्षण भी कमरे की दीवारे ही मुझे साहस देती
मैं,इन दीवारों के सामने ऐसे झुकता था
जैसे कोई भक्त भगवान के सामने झुकता हो,
जब भी मैं खुद से लड़ते हुए कमजोर हुआ
दीवारे एक आईने की तरह मुझे मेरे सपने को
दिखाती थी,
ये दीवारे और किराये के ये कमरे
मेरी मृत्यु की भी साक्षी बनी रहें ...........
नीतीश मिश्र
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