नैनीताल के पहाड़ो से
नीचे उतरते हुए
बस्तियां ऐसी लग रही थी
जैसे --जमीन पर खुदा ने
जलेबी छान कर रख दी हो ।
कुछ नीचे उतरते हुए
देखा ,एक पागल हवा में
अपना आईना बना रहा हैं
कभी अपनी हँसी का रंग -बिरंगा फूल
आसमान में गुँथ रहा हैं ।
और अपनी आँखों में
दुनिया की तकलीफ़ लेकर
फरिस्तों से तकरीर कर रहा हैं
उसे ऐसे में देखकर लगा कि
मैं रात में इसलिए ख्वाब देख पाता हूँ
क्योकि कोई मेरा दर्द
लेकर दिन -रात चलता हैं
अब धरती पर एक पागल ही बचा हैं
जो अपने सूरज को कभी डूबने नहीं देता हैं ।।
नीतीश मिश्र
नीचे उतरते हुए
बस्तियां ऐसी लग रही थी
जैसे --जमीन पर खुदा ने
जलेबी छान कर रख दी हो ।
कुछ नीचे उतरते हुए
देखा ,एक पागल हवा में
अपना आईना बना रहा हैं
कभी अपनी हँसी का रंग -बिरंगा फूल
आसमान में गुँथ रहा हैं ।
और अपनी आँखों में
दुनिया की तकलीफ़ लेकर
फरिस्तों से तकरीर कर रहा हैं
उसे ऐसे में देखकर लगा कि
मैं रात में इसलिए ख्वाब देख पाता हूँ
क्योकि कोई मेरा दर्द
लेकर दिन -रात चलता हैं
अब धरती पर एक पागल ही बचा हैं
जो अपने सूरज को कभी डूबने नहीं देता हैं ।।
नीतीश मिश्र
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