अपने दर्द:को
अब खुद से छिपाकर
जीना ही .....
मेरे लिए यही एक
विकल्प हैं .....
आसमान में रखे
हुए सितारे टूट चुके हैं|
वह अब ऐसे रंग में
रंग गयी हैं
जिसे मेरी आँखे
अब पकड़ पाती नहीं,
मेरे पास इतना समय
शेष नहीं हैं
मैं अब खुद से पर्दा
करना शुरू करू|
अब अपने कलेजे को
यादों के लिफाफे में,
बंद कर के
पागलों की तरह
निर्विकार ...
निशेष होकर
गंध की तरह
शब्दों का आसरा लिए
हवाओं में अपनी
राग सुनता हूँ ....|[नीतीश मिश्र ]
अब खुद से छिपाकर
जीना ही .....
मेरे लिए यही एक
विकल्प हैं .....
आसमान में रखे
हुए सितारे टूट चुके हैं|
वह अब ऐसे रंग में
रंग गयी हैं
जिसे मेरी आँखे
अब पकड़ पाती नहीं,
मेरे पास इतना समय
शेष नहीं हैं
मैं अब खुद से पर्दा
करना शुरू करू|
अब अपने कलेजे को
यादों के लिफाफे में,
बंद कर के
पागलों की तरह
निर्विकार ...
निशेष होकर
गंध की तरह
शब्दों का आसरा लिए
हवाओं में अपनी
राग सुनता हूँ ....|[नीतीश मिश्र ]
No comments:
Post a Comment