Friday 15 March 2013

चारों और मेरें एक घुटन हैं

चारों और मेरें 
एक घुटन हैं 
हवाएं भी 
रह -रह कर 
मेरे विरुद्ध 
एक साजिश 
बुन रही हैं .....
और मैं 
बार -बार अन्धेरें में 
अपने कदमों की 
आहट से
अपने मौत का
निमंत्रण सुन रहा हूँ
क्या साथी तुम
मेरी मौत पर
गमगीन होगे
जब मैं अपनी
मृत्यु से लड़ता हुआ
अपने जीवन को
अपने होनेपन को
एक रंग दूंगा
एक अर्थ दूंगा

......नीतीश मिश्र ....................

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