चारों और मेरें
एक घुटन हैं
हवाएं भी
रह -रह कर
मेरे विरुद्ध
एक साजिश
बुन रही हैं .....
और मैं
बार -बार अन्धेरें में
अपने कदमों की
आहट से
अपने मौत का
निमंत्रण सुन रहा हूँ
क्या साथी तुम
मेरी मौत पर
गमगीन होगे
जब मैं अपनी
मृत्यु से लड़ता हुआ
अपने जीवन को
अपने होनेपन को
एक रंग दूंगा
एक अर्थ दूंगा
......नीतीश मिश्र ....................
एक घुटन हैं
हवाएं भी
रह -रह कर
मेरे विरुद्ध
एक साजिश
बुन रही हैं .....
और मैं
बार -बार अन्धेरें में
अपने कदमों की
आहट से
अपने मौत का
निमंत्रण सुन रहा हूँ
क्या साथी तुम
मेरी मौत पर
गमगीन होगे
जब मैं अपनी
मृत्यु से लड़ता हुआ
अपने जीवन को
अपने होनेपन को
एक रंग दूंगा
एक अर्थ दूंगा
......नीतीश मिश्र ....................
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