Friday 15 March 2013

अयोध्या का पता और अर्थ

हामिद:
मुझसे रह -रह कर 
अयोध्या:का पता पूछता हैं,
मैं हर बार टालकर 
एक नए खिलौने का लालच देकर 
उसके प्रश्न से हाथ झाड़ लेता हूँ।
हामिद कभी महीने में 
अपने प्रश्न के साथ उपस्थित होता था,
पर जबसे भारत/तालिबान का अर्थ 
समझने लगा हैं,
अब अपने प्रश्न की आंच में
दिन -रात जलता हैं।
हामिद:का इस दुनिया में
कोई नहीं हैं,
सिवाय उसके अपने खोये हुए इतिहास के,
वह जानना चाहता हैं
अयोध्या के हाथ इतने लम्बे कैसे हो गए?
उसके माँ -बाप रेगिस्तान में भी
नहीं बच पाए
जबकि उसके यहाँ कोई नमाज़ी नहीं था।
अब हामिद मेरी बातों में नहीं फंसता
वह इतिहास पर पत्थर फेकता हैं
और बाबर/गोरी को गाली देता हैं
और जब इतिहास के कब्रिस्तान से जागकर
दिल्ली से टकराता हैं
और बेहोश होकर मेरी आँखों में गिर जाता हैं
मौन सी उसकी आँखे
मुझसे बराबर अयोध्या का अर्थ पूछती हैं।

हामिद अब बहुत समझदार हो गया हैं
न कुरान से लगाव रखता हैं न ही मस्जिद से
पर वह अपने इतिहास/वर्तमान को बदलने
की खातिर
लोकतंत्र की दीवार पर मूतता जरूर हैं।
और अपनी सुनी आँखों से
जब राम को देखता हैं
तब उसे यकीन नहीं होता हैं की
इतना पवित्र चेहरा वाला
कभी भारत को रौदतें हुए
श्रीलंका में जाकर विश्राम किया होगा
तब उसे अपना चेहरा
श्रीलंका वासियों जैसा लगने लगता हैं
तब जाकर थोड़ी सी राहत मिलती हैं
और फिर कहता हैं कि
इस दुनिया में वह कोई
अकेला क्षतिग्रस्त नहीं हैं।

[नीतीश मिश्र } अयोध्या का पता और अर्थ 

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