Tuesday 29 April 2014

चिड़िया चली गई पत्थरों की दूनियाँ से

पत्थर की बनती दुनियां को देखकर
चिड़ियाँ बेजुबान हो गई ..........
सहम गई ..........
और स्वीकार कर ली
अब पत्थरों की दुनियां मे रहकर
नहीं देखा जा सकता हैं
कोई सपना !
पत्थर बनाने वाले दिमाग को
गलियां देती हुई
यहाँ से चली गई
पत्थरों की दुनियां मे नहीं जगह बना पा रहे हैं प्रेमी -प्रेमिका !
पत्थर नहीं समझते
नहीं देख पाते हैं
किसी की छोटी - मोटी खुशियां
पत्थरों ने इस दुनियां में आने से पहले ही कह दिया था कि
हमारी दुनियां मे सपना देखना सबसे बड़ा गुनाह हैं ।
पत्थरों ने कह दिया था भूख से मर जाना
पर सपना देखने की इच्छा कभी जाहिर मत करना । ।

Monday 28 April 2014

हम कब तक चुप्पी के साथ रहेंगे

वे
डरा कर .......
धमकाकर .......
गालियां देकर
अपमानित करके
हमें सदियों के लिये चुप करा दिए !
वे
हमसे हमारी आँखों की रोशनी छीन लिए
उदासी छिन लिए .......
 हँसी छिन लिए .......
हमसे हमारी आदते छीन लिए
शब्द छिन लिए .......
दिमाग के धार को भोथरा कर दिए
वे , खुश हुये
जब उन्हें विश्वास हो गया की
हम केवल भूखे हैं
और भूख से लड़ना ही हमारी प्राथमिकता हैं
तब वे खुश हुए !
दिल्ली की दीवारो से तभी एक आवाज आई
चलो ! देश की अधिकांश आबादी लाचार तो हुईं
वे , खुश हैं
यह सोचकर की
चुप आदमी कभी बोल नहीं सकता
वे निश्चिन्त हैं क्योंकि
सभ्य आदमी सड़क पर अब मूतना छोड़ दिया हैं
उन्हें समझ मे आ गया हैं
उनके विचार का
उनके उत्पाद का
उनके हथियार का बाज़ार शब्दों से गर्म हैं ।

Sunday 27 April 2014

मैं सुन सकता हूँ तुम्हारी हर बात

मैं सुन सकता हूँ
तुम्हारी हर
वह आवाज !
जो शामिल रहती हैं
तुम्हारी प्रार्थनाओं मे। ……
तुम्हारे सपनों मे ……
मैं सुन सकता हूँ
तुम्हारी हर वह बात
जो मेरी अनुपस्थिति मे तुमने कहा था
दीवारों से ……
खिड़कियों से  ……
किताबों से ……
पानी से ……
बर्तनो से ……
मैं सुन सकता हूँ
तुम्हारी वह बात
जिसे सोचकर तुम कुछ देर के लिये रोते हो
या उस बात को जिसे तुम सोचकर चीनी जैसे मीठे होने की कोशिश करते हो
मैं सुनता हूँ तुम्हारी हर बात
 और स्वीकारता हूँ
तुम मेरे रूह की कोई रंग हो !


 

 

Saturday 26 April 2014

कुत्ते भोंकते रहेगें

आँगन  में
एक आदमी
अपनी भूख से प्यार करना अभी सीख रहा था
और आसमान मे बैठा सूरज
जोर -जोर से हँस रहा था
दरवाजे पर बैठा हुआ
कुत्ता भोंक -भोंक कर
सूरज को तमीज सीखा रहा था
कुत्तों के भोंकने का मतलब
हर जगह एक सा नहीं होता !
कुत्तों के भोंकने के अर्थ मे
स्तुति कभी नहीं होती हैं ।
एक स्त्री जब -तक जी भरकर सपना नहीं देख लेती
और एक प्रेमिका जब -तक प्यार नहीं कर लेती
और आदमी जब -तक सोते हुये मुस्कुराना न सीख़ ले
तब -तक धरती पर कुत्तों का भोंकना ज़ारी रहेगा ॥

Sunday 20 April 2014

मैं आखिरी रात प्रेमपत्र लिखता हूँ

जिंदगी की आखिरी रात में
मैं कुछ भी कर सकता हूँ
देवताओं से मिलकर
पूछ सकता हूँ उनका चरित्र
या मृत्यु के बाद जीवन का मूल्यांकन का सकता हूँ
या लम्बी -लम्बी कविताएँ लिख सकता हूँ
चाँद को हथेलियों से छूकर बता सकता हूँ
चाँद का स्वाद वर्फी जैसा होता हैं
या अपने को सबसे पवित्र घोषित कर सकता हूँ
या कई ऐसे लोगो से मिल सकता हूँ
जो मुझे एक विचार दे सकते हैं
या अपने सारे सपनों के साथ रात भर खेल सकता हूँ
बहुत सा धन कमा सकता हूँ
अपने विरोधियों को परास्त कर सकता हूँ ………
मैं देश को राजनीति का एक नया विकल्प दे सकता हूँ
या अपने शहर की बीमारी को खत्म कर सकता हूँ
लेकिन ! मैं ऐसा कुछ भी नहीं करता
अपने मन पसंद का खाना खाता हूँ
और देर तक अँधेरे में चक्कर लगाता हूँ
और अँधेरे के एक छोर को पकड़कर
प्रेयसी के मुस्कुराते हुए चेहरे को थामता हूँ
और उसे एक प्रेमपत्र लिखता हूँ
इस उम्मीद से की प्रेमपत्र में शामिल हो जाए उसके लिए वह तमाम खुशियां
जिनके बगैर वह खुद को बार - बार कमजोर समझती हैं । ।

बाजार से लौटता हूँ तो मायूस होता हूँ

बाजार से लौटते हुए
मायूसी को अपने ऊपर ओढ़कर
अंदर ही अंदर रोता हूँ
अब बाज़ार से नहीं खरीद पाता हूँ
जीने के लिए थोड़ी - बहुत खुशियाँ
बाज़ार अब ऐसी डाइन हो गयी
जिससे मैं इस कदर डर जाता हूँ
घर से बाहर नहीं निकलता हूँ ।
जब मैं बाजार से घर आता हूँ
झोले को देखकर
माँ मेरी जिंदगी के लिए दुआ करने लगती हैं
माँ अब चूल्हे के पास बहुत अधिक समय नहीं गुजारती
बाजार ने छीन लिया मुझसे वह तमाम खुशियां
जिन्हे देखकर मैं खुश हो जाता था
बाजार से आज तक नहीं खरीद पाया
उसके लिए कोई भी सामान
इसके बावजूद भी वह खुश हैं
की उसके जिंदगी में बाजार का कोई हस्तक्षेप नहीं हैं ॥

तुम्हारा होना अनिवार्य हो जाता हैं

जब तुम साथ में होती हो
मैं भूल जाता हूँ
आसमान में एक पहरेदार ऐसा भी हैं
जिसका मुंह टेड़ा हैं………
जब तुम साथ में
या तुम्हारी यादे साथ में होती हैं
तब नहीं दिखाई देता हैं
मुझे बगल से कौन छूकर गुजर गया
हमें कुछ अगर दिखाई देता हैं
एक दूसरे का स्पर्श और एक दूसरे का एकांत ।
जब तुम साथ में होती हो
नहीं दिखाई देता हैं अंगुली का दर्द जो हथोड़े से लगी थी
जब तुम साथ में होती हो
नहीं दिखाई देता हैं मुझे वह चेहरा
जिनसे मैं कर्ज लेकर भागे फिर रहा हूँ
जब तुम साथ में हो जाती हो तो
नहीं आती हैं शर्म
मेरी कमीज़ गन्दी हैं या मेरा पेंट खराब हैं !
जब तुम साथ में होती हो तो याद आता हैं
मैं, तुम्हें पाने के लिए
खुदा  से कैसे - कैसे मिन्नते की थी । ।
तुम्हारा होना जरूरी हैं
जैसे फूलो में एक रंग का होना जरूरी होता है।

Saturday 19 April 2014

तुम्हारे नाम का भी एक शहर होना चाहिए

काश ! की इस कायनात में
एक शहर तुम्हारे नाम का भी होता
और मैं पहाड़ियों से उतरता हुआ
मस्जिद से आती नमाज़ की आवाज में
खोजता तुम्हारे आड़े / तिरछे नाम को
और हवा में मुठ्ठी भांजते हुए
सड़क किनारे खेल रहे बच्चो को देखकर
मैं भी हँसते हुए कहता की
यह शहर मेरा हैं ।
लेकिन ! शहर के नाम रखने वाले उस्ताद नहीं रखे किसी भी शहर या गाँव का नाम
तुम्हारे नाम पर
तुम्हारा स्पर्श ! मुझे पत्थरों के बीच होता हैं
तुम्हें शायद पता था
नहीं रखा जायेगा मेरे & तेरे नाम का कोई भी शहर
इसलिए तुम एक पत्थर हो गए और मैं एक रंग ।
और पत्थर भी ऐसा की जहाँ
कायनात सज़दे में कुछ देर के लिए झुक जाता
काश मैं ढूंढ लेता तुम्हारे नाम का कोई मोहल्ला
और बनाता अपना रेन बसेरा
लेकिन अफ़सोस ! तेरे नाम का मिलता हैं मुझे
एक जनरल स्टोर
और एक चाय की दुकान
मैं यह नाम देखकर ही रुक जाता हूँ
और तुम्हारे वजूद को अपनी नमाज़ में भरकर फिर लौट जाता हूँ
पहाड़ियों पर 
अगर मैं शंहशाह बनता हूँ कभी
तो पहले बनाऊंगा तुम्हारे नाम का एक शहर । ।


Friday 18 April 2014

मैं तुम्हारे बारे में सोचते हुए मरता हूँ

मैं जब कभी तुम्हारे बारे में सोचता हूँ
थोड़ी देर गुदगुदी होती हैं
और शर्म के साथ एक हंसी आती हैं
और मैं फूल की तरह एक रंग में ढलकर
अपने अंदर कुछ देर तक साँस भरता हूँ तुम्हारे नाम का
और कुछ देर के लिए सागर बन जाता हूँ ।
मैं अँधेरे में बैठकर
तुम्हारा एक चित्र बनाता हूँ
और तुम्हारे बारे में कुछ सोचता हूँ
एक दिन रिपोर्ट आएगी
मैं तुम्हारे बारे में सोचता हुआ
मर गया
किसी के बारे में सोचते हुए मरना
जीवन का एक अध्याय सरीखे होता हैं । ।

Thursday 17 April 2014

मैं भूल चूका हूँ जरूरी शिष्टाचार

मैं भूल जाता हूँ
जरूरी शिष्टाचार
अब मैं नहीं बोल पाता हूँ
अपने पांवो / चप्पलो को
धन्यवाद !
जो मेरे सुरक्षा में
अक्सर घायल हो जाते हैं
और उफ़ तक नहीं करते ।
मैं इस कदर अपनी उस्तादी में खो गया हूँ
अपने पैंट / शर्ट को भी नहीं बोल पाता हूँ
धन्यवाद !
जिसके चलते लोगो में मेरी पहचान बनी रहती हैं
मैं इस कदर आलसी हो गया हूँ
अपने दिमाग को भी धन्यवाद कहना छोड़ दिया हूँ
जिसके आसरे रह कर मैं दो जून की रोटी पाता हूँ
और अपने प्यार पर एक विश्वास का एक गहरा रंग चढ़ाता हूँ ।
मैं नहीं बोल पाता हूँ
अपनी कलाई की घड़ी को धन्यवाद
जो समय के साथ मुझे चलना सिखाई
मैं नहीं बोल पाता हूँ
धन्यवाद !
अपने टेबल पर रखी हुई पेन को
जो मेरे इशारे पर नाचने के लिए तैयार रहती हैं
मैं नहीं बोल पाता हूँ
धन्यवाद कमरे में लगे हुए बल्ब को या कमरे में रखे हुए झाड़ू को
जिससे मैं अपना अँधेरा साफ करता हूँ ।

Wednesday 16 April 2014

अब मुझे खबर नहीं रहती

अब मुझे खबर नहीं रहती
मेरे पड़ोस में कौन रह रहा हैं
मुझे अपने कमरे से आदमी कम
कपड़े / कूलर और एसी ज्यादा दिखाई देता हैं
ऐसे मैं मुझे यकीन नहीं होता कि मेरे देश की जनसंख्या कैसे अरबो तक पहुँच गई ।
अब मुझे जानकारी नहीं रहती की मेरे पड़ोस की कौन सी लड़की को बाजार में छेड़ा गया था
अब मैं नहीं जान पाता हूँ
मेरे आस -पास रहने वाले बच्चे कहाँ विलुप्त हो गए
अब मैं केवल इतना जानता हूँ
सुबह उठकर मुझे दफ्तर भागना हैं
और शाम की थकान अपनी जुबां के साथ बांटना हैं
अब मैं केवल इतना जानता हूँ की कौन सी सड़क पकड़कर मैं दफ्तर आराम से जा सकता हूँ
अब मैं जानता हूँ
मेरे शरीर में कोई बीमारी नहीं हैं
लेकिन मंहगाई नामक बीमारी से जकड़ा जरूर हूँ
अब मुझे खबर नहीं रहती हैं की कौन सा शहर जल रहा हैं
और कौन मर रहा हैं ।

Tuesday 15 April 2014

अब मैं कुछ भी नहीं सोच पाता हूँ

अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
अपने मोहल्ले के सबसे ईमानदार आदमी के बारे में
किसी भी शख्स को रोते हुए देखकर अब
मैं कुछ भी नहीं सोच पाता हूँ.……
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
कि  कल सूरज उगेगा की नहीं
अगर उगेगा भी तो कैसा लगेगा
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
की बिना मौसम के बारिश होने से किसी को तक़लीफ़ होती हैं की नहीं
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
गरीब आदमी के प्यार के बारे में
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
देश आगे बढ़ेगा तभी तो हमारा कुनबा आगे बढ़ेगा
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
शहर में हजारों भिखारी कैसे सोते होंगे
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ अपने गाँव के सुख्खू के बारे में
जो बच्चो को सपना बुनना सिखाते थे ।
अब मैं नहीं सोच पाता एक बच्चा कैसे अकेले अपनी तक़दीर बनाता हैं
अब मैं नहीं सोच पाता सिगरा पर अब लवंगलत्ता कैसा बनता होगा
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
मेरी प्रेयसी मुझसे कितना प्यार करती हैं ।
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
जब मेरे सपनों की हत्या हुई थी तब मैं कैसे चिल्लाकर रोया था
अब मैं नहीं सोच पाता
अपनी गली की सबसे सुन्दर लड़की के बारे में
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ की
लड़कियां घर छोड़कर क्या भाग रही हैं ।
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
अपने पड़ोसी के बारे में
जो अपनों को ही बेवकूफ बनाता हैं
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
मेरे मोहल्ले का कौन सा लड़का छोटी जाति की लड़की से शादी किया था
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ अपने दोस्त के बारे में जिसने कभी स्कूल का मुंह नहीं देख पाया
अब मैं नहीं सोच पाता जिला अस्पताल किसी जेल के सरीखे जैसे क्यों हैं
अब मैं कुछ भी नहीं सोच पाता हूँ
क्योकि रात में मेरे कानो में
जारा की आवाज गूंजती हैं
जो बनारस में दिन रात मेरे लिए और अपने लिए आतताई से लड़ रही हैं
वह रात भर मेरे कानो में चिल्लाती हैं
और कहती हैं तुम देश का संविधान पकड़कर बैठो
मैं तो आतताई से लड़ती रहूंगी ।
अब मैं कुछ भी नहीं सोच पाता हूँ
क्योकि मेरा सपना च्रकव्यूह में चारो और से अब घिर चूका हैं । ।

Monday 14 April 2014

अँधेरे ने मुझसे छीन लिया मेरा वजूद

अँधेरे  में
बहुत देर - तक संघर्ष करने के बाद
अपनी माँ के चेहरे को  पाता हूँ
वह भी एक उदास चेहरा !
मैंने कभी माँ को उदास होते हुए ऐसे नहीं देखा था
लेकिन ! अँधेरे के पास जो माँ का चेहरा था
माँ ! अपने चेहरे में ऐसे उदास लग रही थी
जैसे - उसने वर्षों से कभी खाना न खाया हो
सिर्फ ! मेरे बारे में सोच कर अँधेरे में कहीं खो गई हो
तभी मैं सोचता हूँ
आदमी अँधेरे से इतना क्यों डरता हैं ?
अँधेरा ! आदमी से सब कुछ छीन लेता हैं
और आदमी एक दिन इतना ख़ाली हो जाता हैं
अँधेरे के सामने खुद को नंगा पाता हैं ।
अन्धेरें ने मुझसे छीन लिया मेरी सारी स्मृतियाँ
जो मेरे दिमाग की एक रोशनी थी
आज ! मैं अँधेरे के सामने बहुत देर -तक चिल्लाकर रोता हूँ
और अँधेरे से कहता हूँ दे - दे
मुझे वे सारे सपने
जिनके साथ मैं खेलते हुए बड़ा हुआ हूँ
आज हम भूल चुके हैं अपने साथ जिए हुए तमाम चेहरे
हमें अँधेरे का करना होगा उत्खनन
और तभी हम पाएंगे अपना चेहरा
और तभी हम लिखेंगे उम्मीद की एक कविता
और प्यार की एक कहानी ।

Saturday 12 April 2014

औरते आतताई को रात भर गलियां देती हैं

बनारस में आतताई के आने से
औरते रात भर गालियां देती हैं
डर के रंग में खुद को रंगी हुई अपने बच्चों के लिए
लगातार दुवाएं कर रही हैं ……
प्रेमिकाओं ने तय कर लिया हैं
अबकी बार वो वोट नहीं करेगी
आतताई ने आकर लूट लिया हैं
बनारस की फिजाओं की महकती खुशबू  को
गंगा भी अब अपवित्र हो चुकी हैं
मंदिरो / मस्जिदो से अब नहीं आती हैं कोई आवाज
बच्चे डर के मारे अँधेरे में बना रहे हैं अँगुलियों से खिलौने
सदियों से बोलता हुआ बनारस शहर आज खामोश हैं
और बनारस की ख़ामोशी बयां करती हैं कि
हिंदुस्तान का भविष्य अब खतरे में हैं
लेकिन ! इन सबके बीच सबसे बड़ी बात यह हैं की
बनारसी आतताई का चेहरा भी नहीं पहचानते
लेकिन आतताई के विचारो को बहुत पहले वे नंगा देख चुके हैं ।

Friday 11 April 2014

बनारस के लोगो से क्या गुनाह हो गया था

बनारस के लोगो से क्या गुनाह हो गया था ?
क्या यही की वो सुबह उठकर
सूर्य की रोशनी और गंगा की लहरो पर
अपनी दीवानगी भरा हस्तक्षेप करते थे
या सुबह उठकर पूरी दुनियां का कुशल क्षेम जानने के लिए
अपने घरो से उठकर मिलो तक का सफर कर लेते थे
या अपना गुरु वो किसी को नहीं मानते थे
आखिरकार ! बनारस वासियों ने ऐसा क्या कर दिया
पुरे बनारस को सजा देने के लिए एक आतताई को भेज दिया
जिसका नाम भर सुनकर बच्चा पेंट में मूत देता हैं
क्या बनारसी ज्यादा पान में जर्दा खाने लगे थे
या बिना भांग खाए वो अपनी प्रेमिकाओं से मिलने नहीं जाते थे
या दूध -दही खाकर सबसे अधिक देश में स्वस्थ होने का दावा करते थे
या देह पर कपड़ा न होने के गुमान में
कबीरा गाकर अपना पेट भर लेते थे
या अपने से मस्त वो किसी को नहीं समझते थे
बनारस में आतताई को क्यों भेजा गया ?
जारा के ऐसे हजारो सवाल हैं मुझसे जिसका जबाब मैं दे नहीं पाता हूँ
जारा अक्सर मुझसे कहती हैं
तुम आतताई को क्यों नहीं भगा देतो हो बनारस से
मैं उससे बस यही कहता हूँ की मैं क्या
अब देश का कोई भी माई का लाल उसे यहाँ से नहीं भगा सकता हैं
क्योकि देश का संविधान से लेकर और नागरिक सब कायर हो गए हैं
मैं अब रात भर जागता हूँ
बनारस को टूटते हुए देखकर

आतताई के आने की संभावना से बनारस खत्म हो रहा हैं

बनारस में आतताई के आने की खबर से
हर माँ की आँखे नम सी हो गई हैं
बच्चो को कलेजे में समेटकर रात भर करवटे बदल रही हैं
आतताई के आने की संभावना से
साँप / बिच्छु / छंछुन्दर अपने बिलो से बाहर आना बंद कर चुके हैं
पंक्षियों ने पेड़ो पर घोसला बनाना छोड़ दिया हैं
हिंदू लड़कियां बंद कर दी हैं
मुसलमान लड़को को खत लिखना
और हिन्दू लड़के भी नहीं लिख रहे हैं
मुसलमान लड़कियों को खत………
आतताई के आने की खबर से बिगड़ गया हैं
बनारस का हाथी जैसा मस्त चाल
बनारस जलने की और ख़त्म होने की उम्मीद में मरघट पर सियारो की तरह ऊंघ रहा हैं भर
अब - तक लोग यही जानते थे
देवताओं की अवतार होता हैं
लेकिन हमारी सभ्यता में यह पहली बार होने जा रहा हैं
की एक आतताई आकर लोगो की नींदों में जगाते हुए मार रहा हैं........
उसके आने मात्र की सूचना से
बनारस की वैश्याएँ अपना कारोबार समेटकर दूर किसी और शहर की और कुच कर रही हैं
सब्जी वाले / आटों वाले / चाय वाले
सब भागकर कहीं और चले गए हैं
आतताई के आने से लोगो को यही लग रहा हैं
बनारस के लोगो के सीने पर चढ़कर जब तक होली नहीं खेली जाएगी
तब -तक आतताई लाल किले पर नहीं चढ़ पायेगा
बनारस भूल चूका हैं की कभी यहाँ कबीर भी हुआ करते थे
बनारस जानता हैं की आतताई को अपने आगे किसी की बात नहीं जमती
हमें अपने कंधे मजबूत करना चाहिए
क्योकि इस बार हम अपने कंधे पर आदमी का शव लेकर नहीं
घूमेंगे बल्कि शिव का शव हमारे कंधो पर होगा
क्योकि बनारस का हर आदमी या तो शिव हैं या अल्लाह ।

Thursday 10 April 2014

मेरा गाँव असभ्य होने की राह पर चल पड़ा हैं

मेरे गाँव के बच्चे धीरे -धीरे असभ्य हो रहे हैं
बच्चे अब नहीं चुराते हैं तपसी के बगीचो का आम
बच्चो को अब नहीं मालूम रहता हैं
दूसरी गलियों में रहने वाले बच्चो का नाम

बच्चे अब नहीं भागते हैं
रात में घरो से...
बच्चे अब नहीं लूटते पतंग
बच्चे गालिया देना तक भूल चुके हैं
बच्चे अब नहीं दौड़ते बिल्लियों / चूहो के पीछे -पीछे
बच्चो को अब नहीं मालूम हैं की
सुग्गा का बच्चा भी राम का मतलब कभी समझता था
कोई कहता हैं
गाँव अब सभ्य होने की राह पर कदम रख दिया हैं
जबकि मैं दावे के साथ कहता हूँ
यह मेरे गाँव की हत्या करने की एक साजिश बुनी जा रही हैं
बच्चे गाँव के सबसे अनमोल जेवर होते हैं
ऐसे में उनकी ख़ामोशी किसी बड़े तबाही की सूचक हैं । ।

Wednesday 9 April 2014

आतताई आ रहा हैं लूटने के लिए लोगों का नींद

उसके आने की खबर से
देश के सारे योद्धा या तो हिन्दू हो गए हैं
या नर्त्तकीयो  की आरती उतार  रहे हैं
इस बार वह आएगा और
शिव की तपस्या को भी भंग करेगा
इसलिए देश के सारे पंडित बन गए हैं
फिरसे एक बार तुलसीदास। ।
उसके आने की भनक से
सारे बुद्धिजीवी कायरों की तरह
सांपों के बिलो में घुसे पड़े हुए हैं
और जो लोग सामने आने की हसरत रखते थे
उन्हें अपाहिज बना दिया गया या देशद्रोही
और जो युवा हैं
सो रहे हैं अपनी माशूका के साथ कुंभकरण की नींद में
ऐसे में इस दुनिया में क्या बचा रह गया हैं अब
हिन्दू भाइयो ! जो चाहो वह करो दुनिया का बलात्कार करो या दुनिया को सजाओं
या बनारस को अयोध्या बनाओ
जाओ करो अपनी मनमानी
मिट जायेगा बनारस अब दुनिया के नक़्शे से
लेकिन ! याद रखना मत लूटना किसी का बचपन
मत लूटना किसी का प्रेम पत्र ।


Sunday 6 April 2014

सबसे खूबसूरत लड़की कहीं खो गई है

मेरे गांव की सबसे खूबसूरत लड़की
जो एक पक्के घर में जवान हो रही थी
उसने अपने लिए अपने पक्के घर की तरह
कई पक्के सपने बुन रही थी
खूबसूरत लड़की
अपनी हर अभिव्यक्ति
कभी अपने सपने तो कभी अपनी हँसी में छुपाकर
अभी -अभी जीना सीख  रही थी
वह भी ऐसे समय में.. .
जब देश में संविधान संशोधन के सारे काम बंद हो गए थे
लड़की के बदन से महकते हुए सपने
से पूरा गाँव पागल होने की राह पर निकल पड़ा था
गाँव वाले अपनी अभिव्यक्ति की चमक कुछ तेज करने के लिए खूबसूरत लड़की का नाम ;आवारा ' रख दिया
गाँव के ही कुछ और सभ्य लोग लड़की को माल कहना शुरू कर दिया
जितने मुंह लड़की के उतने नाम
कहते हैं आज भी लोग उससे ज्यादा नाम आज तक किसी को नहीं मिला हैं ।

लड़की को नहीं मालूम था
उसकी उपस्थिति सिर्फ उसके घर तक ही नहीं रह गई थी
बल्कि लड़की अक्सर पायी जाती  सभी के सपनो में
लड़की की याद में कई लोग गीत गाना सीख चुके थे
कई लोग सीगरेट पीना शुरू कर दिए
कई लोगों को रात में भी देखना शुरू कर दिए
कई लोग तो चोर तक बन गए
और चुराने लगे लड़की के एक -एक कपडे
कई लोग सभ्यता की मूर्ति ओढ़कर जवानी बचाने का अनोखा नुस्खा खोजने में लग गए
मसलन खूबसूरत लड़की जैसे - जैसे जवान हो रही थी
वैसे -वैसे लोग अपना कारोबार भी बढ़ाने में लगे हुए थे ।
कभी - कभी यह चर्चा जब लड़की के कानो तक पहुंचती तो वह बहुत खुश होती
और आकाश से कहती मेरे ही बहाने
कम से कम गाँव वाले खुश तो रहते हैं ।
खूबसूरत लड़की को पाने के लिए
पंडितो ने अपनी पंडिताई छोड़ दी
मुल्लाओं ने मुल्लाई  तक छोड़ दी
पंडित / मुल्ला / बुजुर्ग / बच्चे देर रात तक अपने बिस्तर पर जागने लगे
और सभी यही दावा करते की
वह लड़की के सबसे ज्यादा करीब आ चुके हैं

खूबसूरत लड़की के बदन की गंध शराब की तरह महकने लगी
तब लोगों की दिलचस्पी पत्नियों में कम होने लगी
औरते खूबसूरत लड़की को डायन कहना शुरू कर दी
गाँव के सारे बुजुर्ग इस बात से सबसे अधिक खुश थे
खूबसूरत लड़की कहीं और की नहीं बल्कि उन्हीं के गांव की हैं
गांव की अन्य लड़कियां खुश थी
क्योकि अब वो डरना छोड़ दी थी
क्योकि अब उनकी और कोई नहीं देखता था
एक दिन वह भी आया जब
खूबसूरत लड़की एक वोट बन गई
ऐसे में लड़की का कोई काम नहीं रुकता था
ऐसे में लड़की को लगता था की दुनियां बहुत सभ्य हैं
लड़की को नहीं खड़ा होना पड़ता था
बस में या ट्रेन में
उसे सभी स्कूल में दाखिला मिल जाता था
जहाँ पढ़ने के लिए लोग सपना देखते थे
शहर हो या गांव सभी जगह उसे कम दाम में अच्छा सामान मिल जाता था
ऐसे में खूबसूरत लड़की को अपराधबोध नहीं होता था लड़की होने पर
खूबसूरत लड़की जब बीमार होती
शहर का सबसे अच्छा डॉक्टर अपनी सबसे अच्छी दवाई देकर चला जाता था
लड़की स्कूल नहीं भी आती थी
उसके बावजूद भी हाजिरी लगी रहती थी
जैसे ही देश में चुनाव आया
और जो अपना उम्मीदवार था वह अपनी पार्टी का प्रधानमंत्री का दावेदार था
यह अलग बात थी कि वह इस क्षेत्र का निवासी नहीं था
लेकिन यहाँ के लोग उसे अवतारी पुरुष बताते थे
और लोग कहते थे जैसे राम ने अयोध्या में अवतार लिए
ठीक उसी तरह उनका उम्मीदवार भी अवतार लेकर यहाँ आया हुआ हैं
प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार से लड़की
मन्त्र सुनकर राजनीति में थोड़ी बहुत दिलचस्पी लेने लगी
कुछ दिन बाद एक खबर आई कि
लड़की ने जिस प्रत्याशी को अपना वोट दिया हैं
वह देश का प्रधानमंत्री बनने जा रहा हैं ।
प्रधानमन्त्री को भी ख़ुशी हुई
यह जानकर की खूबसूरत लड़की ने उन्हें वोट किया हैं
ऐसे में वे फरमान जारी किये
कि खूबसूरत लड़की को दिल्ली बुलाया जाये
प्रधानमंत्री जैसे ही दिल्ली में लड़की से मिले
उन्होंने लड़की के सामने कई प्रस्ताव रखे
वह चाहे तो पार्टी में आ जाये
उसके लिए वह सब कुछ करने को तैयार हैं
जिससे लड़की का नाम अमर हो जाये ।
लेकिन ! लड़की सारे प्रस्ताव को दिल्ली में छोड़कर गाँव चली आई
और अपने डायरी में एक जगह लिखी
यह दुनियां भेड़ियों से भी ज्यादा गंदी हैं
और इस देश के प्रधानमंत्री का दिमाग टमाटर से भी ज्यादा लाल हैं
और ऐसे में इस देश में रहना कायरता हैं ।
उसके बाद खूबसूरत लड़की कहाँ गई
किसी को भी नहीं पता चल पाया
कोई यह भी नहीं कहता कि वह मर गई ।
लेकिन गाँव वाले आज भी दबी जुबान में कहते हैं
खूबसूरत लड़की कहीं नहीं गायब हुई
बल्कि प्रधानमंत्री ने उसका अपरहण करवा कर अपने साथ रखता हैं
इसीलिए हमारे देश का प्रधानमंत्री कभी बुढ्ढा नहीं हुआ
और हर बार प्रधानमंत्री बंनने का दावा करता हैं ।

Wednesday 2 April 2014

मैं भूल रहा हूँ

मैं अँधेरे से ऊब  चुका हूँ
मैं भूल चुका  हूँ
हरेक आदमी के दूसरे नाम को
मैं भूल रहा हूँ
अपने साहस को
मैं पहली बार अपने साहस का परिचय
चोरी करने में दिया था
या किसी लड़की को चिट्ठी थमाते वक्त ।
मैं भूल रहा हूँ
उन तमाम चेहरों को जिनसे
मैंने किस्सा कहने का ढंग सीखा था
मैं भूल गया हूँ
जिसे मैंने पहली बार गाली दी थी
मैं भूल रहा हूँ
मुझे बाबूजी अधिक मारा करते थे या माँ
मैं धीरे - धीरे भूल चुका हूँ अपने दोस्तों के घर के पते ।

खुन्नू बाबू का दिमाग जाग गया हैं

कहते हैं  जब सारी  दुनियां सो रही थी
तब मेरे गाँव के खुन्नू बाबू
अपने बाहर / भीतर जागने  का अभ्यास कर रहे थे
उनकी इस कला को देखकर
कुत्ते भी सोना छोड़ दिए
और तभी से लोग कहते हैं कि
कुत्ते भी उसी समय से गांव में रात  को भोंकना शुरू कर दिए
और आज -तक भोंकते आ रहे हैं ।
जब सारी  दुनिया सोती थी
तब खुन्नू बाबू  सपने की जाल  बिछाकर
दावा  करते थे की वे बहुत ही होशियार हैं
इसी क्रम में वे कभी - कभी अपनी आंत निकालकर धो लिया करते थे
एक दिन खुन्नू बाबू
जब पूरा गांव किसी ऊब में डूबा हुआ था
तब खुन्नू बाबू मौके का फायदा उठाते हुए अपना दिमाग भी ठन्डे पानी से धो दिए
उसी दिन से उनके दिमाग की तुलना
लोग - बाग  पीपल के पत्ते से करने लगे ।

गनीमत हैं की हमारे यहाँ लोकतंत्र हैं
नहीं तो खुन्नू बाबू  किसी राजा के सलाहकार होते
लेकिन ! खुन्नू बाबू अपनी टूटती हुई हवेली को देखकर
अपने  भीतर स्वीकार कर लेते हैं कि
क्या हुआ आज उनकी कोई पूछ नहीं हैं
लेकिन किसी ज़माने में उनके पूर्वजो की  तो पूछ थी

खुन्नू बाबू का दिमाग इतना तेज था कि
कब्रिस्तान में सोये हुए मुर्दे भी घबराते थे
खुन्नू बाबू कई बार सोये हुए मुर्दो को जगाकर उन्हें दूसरी जगह भी शिफ्ट कराए  थे
उनके  दिमाग की  देन हैं कि
कचहरी में वकीलो का कारोबार इस बीच काफी तेजी से चल रहा हैं ।

खुन्नू बाबू  ने एक नया प्रयोग किया
एक कपड़े  को वे तीन  दिन सीधा पहनते हैं और तीन- दिन  उल्टा
और अब अपनी आत्मा को वे सीधा और उल्टा करने में लगे  हुए हैं
उनका  मानना  हैं कि अगर वे इस कला में माहिर हो गए तो वे एक दिन राजा जरूर बन जायेंगे ।
गांव के लोग परेशान हैं
अगर खुन्नू बाबू अपने प्रयोग में सफल हो गए तो
गांव के सारे मुर्दे अपना घर छोड़कर भाग जायेंगे । ।