Thursday 17 April 2014

मैं भूल चूका हूँ जरूरी शिष्टाचार

मैं भूल जाता हूँ
जरूरी शिष्टाचार
अब मैं नहीं बोल पाता हूँ
अपने पांवो / चप्पलो को
धन्यवाद !
जो मेरे सुरक्षा में
अक्सर घायल हो जाते हैं
और उफ़ तक नहीं करते ।
मैं इस कदर अपनी उस्तादी में खो गया हूँ
अपने पैंट / शर्ट को भी नहीं बोल पाता हूँ
धन्यवाद !
जिसके चलते लोगो में मेरी पहचान बनी रहती हैं
मैं इस कदर आलसी हो गया हूँ
अपने दिमाग को भी धन्यवाद कहना छोड़ दिया हूँ
जिसके आसरे रह कर मैं दो जून की रोटी पाता हूँ
और अपने प्यार पर एक विश्वास का एक गहरा रंग चढ़ाता हूँ ।
मैं नहीं बोल पाता हूँ
अपनी कलाई की घड़ी को धन्यवाद
जो समय के साथ मुझे चलना सिखाई
मैं नहीं बोल पाता हूँ
धन्यवाद !
अपने टेबल पर रखी हुई पेन को
जो मेरे इशारे पर नाचने के लिए तैयार रहती हैं
मैं नहीं बोल पाता हूँ
धन्यवाद कमरे में लगे हुए बल्ब को या कमरे में रखे हुए झाड़ू को
जिससे मैं अपना अँधेरा साफ करता हूँ ।

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