Sunday 20 April 2014

बाजार से लौटता हूँ तो मायूस होता हूँ

बाजार से लौटते हुए
मायूसी को अपने ऊपर ओढ़कर
अंदर ही अंदर रोता हूँ
अब बाज़ार से नहीं खरीद पाता हूँ
जीने के लिए थोड़ी - बहुत खुशियाँ
बाज़ार अब ऐसी डाइन हो गयी
जिससे मैं इस कदर डर जाता हूँ
घर से बाहर नहीं निकलता हूँ ।
जब मैं बाजार से घर आता हूँ
झोले को देखकर
माँ मेरी जिंदगी के लिए दुआ करने लगती हैं
माँ अब चूल्हे के पास बहुत अधिक समय नहीं गुजारती
बाजार ने छीन लिया मुझसे वह तमाम खुशियां
जिन्हे देखकर मैं खुश हो जाता था
बाजार से आज तक नहीं खरीद पाया
उसके लिए कोई भी सामान
इसके बावजूद भी वह खुश हैं
की उसके जिंदगी में बाजार का कोई हस्तक्षेप नहीं हैं ॥

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