Wednesday 24 February 2016

चोर नहीं चुराता हैं कायरता

अगर कहीं सिद्धांत बचा हैं
अगर कहीं मूल्य फूल की तरह महक रहा हैं
अगर कहीं आत्मा में रोशनी बची हैं
तो वह कोई धर्म की किताब नहीं हैं
वह कोई देवता भी नहीं हैं
वह कोई स्कूल  भी नहीं हैं
वह कोई मंदिर भी नहीं हैं
बल्कि वह चोर की आत्मा हैं !
जहाँ बची हुई हैं खिड़की
जहाँ बची हुई हैं समय की सभ्यता हैं
चोर कभी हिन्दू नहीं होते
चोर कभी मुसलमान भी नहीं होते
चोर कभी राजनीतिज्ञ भी नहीं होते
चोर केवल भूख से उबरने के लिए रास्ता बनाते हैं
चोर घर में रखा हुआ सारा सामान चुरा लेता हैं
लेकिन नहीं चुराता हैं आपकी कायरता
चुराता हैं आपकी क्षमता
नहीं चुराता हैं आपकी ईमानदारी
नहीं चुराता हैं घर में पसरा हुआ अँधेरा
नहीं चुराता हैं आपका धर्म
चोर केवल भूख के बचत खाते पर डालता हैं हाथ
सबसे प्यारी आत्मा के साथ चोर चोरी करता हैं
और अपने अँधेरे से रास्ता बनाता हुआ पार निकल जाता हैं
अगर चोर घरो का अँधेरा भी चुराने लगते तो
ख़त्म  जाती दुनियां ॥

Sunday 7 February 2016

तुम बोलती हो
तब मेरा अँधेरा भी बोलता है
और मेरे देह का आयतन भी बढ़ जाता
तुम बोलती हो
तब मेरी दीवार भी बोलती
और मेरे दिमाग का क्षेत्रफल भी बढ़ जाता
जब तुम खामोश होती हो
तब मेरा रंग धूसर हो जाता है
तुम्हारी आवाज मेडिकल स्टोर के मानिंद है
जहाँ मेरी जरूरतमन्द सभी दवाइयाँ मौजूद रहती है।।

Friday 5 February 2016

एकांत के रंग से
अपने वृत्त का
एकांतर आकाश रंगता हूँ
और खोजता हूँ
धरती पर सोये हुए रंगो को
क्योंकि मैं रंगो का सेतु बनाना चाहता हूँ।।
नीतीश मिश्र
धरती के पास खून नहीं नमक हैं
इसलिए कभी वह तुमसे
सौतेला व्यवहार नहीं करती
धरती के पास अपना कोई सपना नहीं हैं
इसलिए वह अपनी हत्या का तुमसे बदला नहीं लेती ||
धरती के पास आँख हैं
इसलिए अभी तक तुम बचे हुए हो||
नीतीश मिश्र

Thursday 4 February 2016

सबसे बड़ी कविता पागल लेकर घूमते है

 अपने समय की
सबसे बड़ी कविता पागल लेकर घूमते है
अतीत / भविष्य को दफनाकर
चांद को बाजरे की रोटी जैसी संज्ञा देते है
एक दुर्लभ भूख लिए
भाषा को मुस्कान में बदलने का जोखिम उठाते है
रद्दी कागजों को एक अर्थ देते है।
पागलों के पास नहीं होती अपनी परछाइयां
बल्कि टूटती हुई शहर की शक्ले
खत्म होती हुई नदी की यादों को लेकर
ईश्वर को देता है दिन- रात चुनौती
अपने समय का देवता भी
पागलों से डरता है
इसलिए  देवता हर रोज रचता है अपनी बहादुरी की कहानी
जबकि पागलों के पास कोई कहानी नहीं होती है
शहर के सभी पागल एक साथ
अंधेरे में बनाते है घर
और इतिहास को नकारते हुए घोषित करते है
हम अपने समय के सबसे सुंदर कृति रचते है।।
जब शहर डूब जाता है अपनी रोशनाई में
तब एक पागल जागता है
और रेलवे लाइन की पटरियों पर लिखता है
मैं अपने समय का सबसे कुरूप आदमी हूं
लेकिन अपने समय के सबसे खूबसूरत पौधे कपास से मैं प्यार करता हूं।।
एक पागल से होकर गुजरना
गोया अपनी त्वचा से होकर गुजरने जैसा होता है।।