Monday 21 December 2015

धूल भी दवा है

जबसे सूर्योदय हो रहा है
तभी से वह सपने पहनकर
दीवार पर लिख रहा है स्मृतियों का लेखा- जोखा
इस क्रम में कई बार वह लिख देता है अपनी हत्या की खबर
और पूरी रात शब्दों को पांव से रगड़ते हुए
आंखों से काटता रहता है अंधेरा...
सूर्योदय से ठीक पहले जब गायब हो जाते है दीवारों पर बने असंख्य चेहरे
तब अंधेरा उसके व्यक्तित्व का एक अनिवार्य हिस्सा हो जाता है
जिससे वह पहचान जाता है भाषा के मानचित्र में बने वे तमाम चेहरे
जो अखबारों और धार्मिक आयोजनों में दिखते - रहते है
ऐसे में यकीन नहीं होता है जो इतिहास है वह क्या  सही है?
इतिहास के मूल्यांकन में
रात की अदालत में सारे शब्द गवाही के लिए उतर जाते है
और एक झटके में वह सूखी रोटी की तरह अकड़ कर कहीं भीतर इस कदर सूख जाता है
उसकी हड्डियों पर उभर आती है अपने समय की रेखाएं जो ब्रशों से नहीं बल्कि अविश्वास से तैयार हुई है
यह एक समय की हत्या है या किसी के व्यक्तित्व की
इसका निर्धारण न तो भाषा के पास है और न ही रंग के पास
ऐसे में वह लिखता है परंपरा के विरूद्ध जाकर हारे हुए और खोये हुए व्यक्तित्व का इतिहास
जहां ऐसे चेहरे है जो कभी कहानी में या किसी कविता में नहीं आए थे
लेकिन वह थे इस धरती पर ही कहीं ...
क्योंकि रात की खुदाई में कुंओं के पास से/  तालाबों के पास से
और तुम्हारी महल की नींव से मिले है उनके कदमों के साक्ष्य
फिर भी तुम्हारी धरती पर उनकी हंसी की आवाज कहीं न सुनाई देती
जबकि बांसों के पोरों में आज भी बचा हुआ है उनका स्पर्श
धरती के भूगोल से गायब हो गई कई सारी नदियां
कई सारे पहाड़
और बन गए कई सारे मंदिर
वह भी ऐसे- ऐसे देवताओं के जो उनसे कहीं बहुत कमजोर थे
इसके बाद भी कहीं नहीं सुनाई देती उनकी प्रार्थनाएं
ऐसा नहीं है उनके होंठ कभी कांपे नहीं होंगे
जबकि देवताओं की मूर्तियों पर उनकी कला आज भी बची हुई है
कभी - कभी धूल भी दवा होती है
अब यह धूल उड़ रही है और दिखाई दे रहा है मुझे
असंख्य ऐसे चेहरे जो अवतारित चरित्र से कहीं ज्यादा सुंदर है
कई बार धूल का जमना भी सही होता है
अगर धरती पर धूल नहीं होती तो आज मैं  नहीं लिख पाता
खोये हुए चेहरों के बारे में
जबकि कई बार आंधियां आई लेकिन चेहरे दबे रहे
यह सोचकर कि अभी आएगी और जोर की आंधी और नदी के पानी को उड़ा ले जाएगी।
इस सदी का इतिहास अब रेत लिखेंगे
और तुम पत्थरों के बीच आइना देखते रह जाओगे ॥

Thursday 17 December 2015

लड़कियों का पहला प्यार हैं स्कूल

 स्कूल जिंदा है क्योंकि वहां लड़कियों की हंसी के गुच्छे के फूल है
धरती के किसी स्कूल के  पास कोई इतिहास नहीं है सिवाए लड़कियों की स्मृतियों के...
स्कूल तभी तक बचे रहेंगे जब- तक लड़कियों की यादे बची रहेंगी
धरती के किसी स्कूल को उसके मास्टरों से नहीं
बल्कि वहां की लड़कियों से जाना जाता है
लड़कियां स्कूल की भाषा है
जिस स्कूल में लड़किया नहीं है
वह स्कूलों का श्मशान है
वहां हर कमरे में दूर - दूर की लड़कियों की स्मृतियां जलती रहती है
देवता भी रात में पश्चाताप करते है
आखिरकार वे क्यों नहीं गए कभी स्कूल
लड़कियां स्कूल आती रहेगी
स्कूल का इतिहास और विज्ञान बचा रहेगा
बची रहेगी मास्टरों की विद्या
जिस दिन लड़किया स्कूल नहीं आती
उस दिन स्कूल की भाषा मर जाती है
दीवारे उदास होकर आसमान निहारती है
इतिहास इसीलिए जिंदा है
क्योंकि उसके पास लड़कियों की बहुत सारी मुस्कान है
स्कूल की इमारते गिर जाती है
फिर भी बची रहती है उसमें एक खुशबू जो फूलों में नहीं होती है
लड़किया खाली वक्त स्कूलों की दीवारों में भरती रहती है अपने अजीबों- गरीब सपने
शहर का स्कूल हो या कस्बे का
लड़कियां यही आकर मुक्त होती है
लड़कियों का पहला और आखिरी प्यार है स्कूल है
एक लड़की स्कूल जाते वक्त सबसे अधिक सुंदर लगती है
भले से उसके पांव में हवाई चप्पल हो और धूल की मोटी परत
लड़कियां स्कूल में सीख लेती है लड़कों के भूगोल का विस्फोट
लड़किया स्कूल में सीख लेती है अंधेरे में एक रास्ता बनाना
लड़कियां सीख लेती है अंगुलियों से हवा को मोड़ना
लड़कियां स्कूल जाते वक्त जान जाती है
उनके समय का देवता कौन है।।

Wednesday 16 December 2015

स्त्रियां धरती की वसंत हैं

स्त्रियां धरती पर दूब की तरह हैं
हम उनकी जड़े जितनी बार काटेंगे
हम जितनी बार उन्हें धमाको से डराएंगे
वह उतनी ही बार आयेगी ....
तुम धरती पर स्त्रियों को आने से नहीं रोक सकते हो
स्त्रियां धरती की वसंत हैं
स्त्रियों को मारकर तुम जीतते नहीं हो कोई युद्ध
उन्हें तुम जीतनी बार मारते हो
उतनी बार तुम इतिहास के पन्नो पर अपनी पराजय लिखते हो
स्त्रियां धरती पर चलती रहेंगी दौड़ती रहेंगी
क्योकि वे धरती की केंद्र हैं और तुम मात्र एक त्रिज्या हो ....
 स्त्रियां आएँगी
उस वक्त भी जब एक मनुष्य केवल एक मनुष्य बचा रहेगा
और सभ्यता की अंतिम सीढ़ी पर खड़ा होकर जीवन मांगेगा
स्त्रियां आएगी उस वक्त भी
जब धरती पर मनुष्य नहीं रहेगा
और रचेंगी अपनी हँसी से
सूखी दीवारों में एक गीत
और बनाएंगी कुएं को एक आइना
और दूब की तरह पूरी धरती पर लिखेंगी एक भाषा ॥

Tuesday 15 December 2015

स्त्रियां खुश हैं कि घर में नमक हैं

स्त्रियां खुश हैं यह सोचकर कि घर में अभी नमक हैं
रसोई में चुटकी भर नमक का होना
इस चुटकी भर उम्मीद से वे खोज लेती हैं
आसमान में थोड़ा सा लाल  रंग
और पेट भरकर हँसती हैं
यह सोचकर कि अब वे धरती पर फैले हुए पानी में घोल
सकती हैं अपने हिस्से का लाल रंग !
इस उम्मीद को जेवर की तरह कहीं कान में बांध लेती हैं
 और निकल पड़ती हैं किसी जंगल की और या सागर के पास
स्त्रियां जंगल के एकांत में भरती हैं
एक सिंदूरी लाल रंग
और सागर की जड़ में रोपती हैं अपना स्वर !!
और धीरे से कहती हैं
हम नहीं डरते दुनिया के किसी भी शोर से
जब तक घर में नमक हैं
स्त्रियां गाती रहेंगी ...
स्त्रियां खुश हैं यह सोचकर
अभी बचा हुआ हैं घर में चूल्हे जैसा एक सहचर
जो बचाकर रखा हुआ हैं
स्त्रियों के लिए एक संगीत
एक स्त्री के लिए एक देवता जितना ऐतिहासिक हैं
उससे कहीं ज्यादा प्राचीन एक चूल्हा हैं
एक चूल्हे के अंदर स्वर तभी फूटता हैं
जब उसे स्त्री स्पर्श करती हैं
स्त्रियां खुश हैं जबसे वे हवा के खिलाफ
आग जलाना  सीख ली हैं ....
स्त्रियां उस दिन ठहाका लगाकर हँसती हैं
जब बिना धूप के गीले कपड़ो को
सुखाने की विधि खोज लेती हैं ...
भले से ! तुम्हारे रक्त में नमक कम हो जाये
लेकिन स्त्री के रसोई ने नमक बचा रहता हैं
जैसे बची रहती हैं धरती में कहीं डुब ॥
नीतीश  मिश्र

Sunday 6 December 2015

जूते जागते रहते हैं

मैं कभी-कभी  अपने शरीर के भीतर
खोजता रहता हूँ अपनी आत्मा को
और देखना चाहता हूँ मेरा खून किस कदर आत्मा पर अपनी निशान छोड़ा हैं
बहुत भीतर उतरने के बाद भी हाथ कुछ नहीं लगता
और मैं अपनी धमनियों में बहते हुए रक्त की रफ़्तार सुनता
और विश्वास करता हूँ
मेरा रक्त मेरी आत्मा को वैसे ही उड़ाता होगा जैसे
मैं पतंग उडाता हूँ ....
कभी -कभी मैं
अपने जूतो में अपनी आत्मा को महसूस करता हूँ
और यकीन के साथ कह सकता हूँ
अगर मेरे पांव में आज जूते नहीं होते
तो मेरे शरीर के भीतर मेरी आत्मा सुरक्षित नहीं रहती
कभी -कभी मैं जूतो के सामने झूक जाता हूँ
इस उम्मीद से कि यही मेरे जीवन के मार्गदर्शक रहे हैं जो मुझे सूरज के खिलाफ खड़ा किये
जब भी मैं कुरुक्षेत्र में खुद को कमजोर पाया
ये जूते मुझे सूरज की तरह ऊष्मा से दीप्त करते रहे ...
या जब कभी मैं रास्ता भटकता हुआ कहीं बहुत दूर निकल गया हूँ
उस वक्त भी इन्हीं जूतो ने मुझे सही रास्ते पर चलने के लिए संकेत देते रहे
मैं रात के घोर अँधेरे में
बहुत ही गौर से जब जूते को देखता हूँ
उसमे मेरे पांव के निशान दिखाई देते हैं
जो बहुत ही खूबसूरत लगते हैं
कभी -कभी जब मैं निराश हो जाता हूँ
उस वक्त मैं पानी के नीचे उतरना चाहता हूँ
और देखना चाहता हूँ
पानी के निशान शहर में कहाँ -कहाँ फैले हुए हैं ....
कभी -कभी मैं जब अकेला रहता हूँ
इतना अकेला की
उम्मीद भी गले में जहर सी लगती है
उस वक्त जूता बोलता हैं चलो इस दुनिया से कहीं दूर
और मैं चला जाता हूँ जूतो की दुनिया में
जहाँ जूते संघर्ष करते हुए या हारे हुए लोगों का इतिहास बचाने की कोशिश में जुटे हुए हैं
जरुरी नहीं की हर बार जूते जीत का ही इतिहास लिखे
कई बार जूते पांव का सहचर बनकर सूरज डूबने तक या डूबने के बाद भी जगे रहते हैं
जूते कभी नहीं सोते .....
जूते जागते रहते हैं
क्योकि सही मायने में जूते ही शरीर की आत्मा जैसे होते हैं ...
मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ
जिस दिन समूची दुनिया के जूते सो जायेंगे
दुनिया एक गेंद की तरह हवा के साथ उड़ जाएगी....
इस दुनिया में कभी -कभी एक आदमी से कहीं अधिक जरुरी हैं
एक जोड़ी जूते की ॥

सड़के शहर के नदियां होती हैं

सड़के शहर के नदियां होती हैं
और आदमी का पांव शहर के लिए नांव ..... 
आदमी की आँखे मछुआरे की तरह
दिन भर सड़को पर भटकती रहती हैं
शहर में जो तालाब हैं
वह एक औरत की डबडबाई हुई आँख हैं
और शहर का जो सबसे पुराना मुहल्ला हैं
वह एक बंदरगाह हैं.....
शहर में जो चौराहा  हैं वह अपने समय का ताजमहल हैं
शहर इतने सारे किस्सों को लेकर खड़ा हैं हमारे बीच
एक शहर के पास वह सब कुछ हैं
जो एक पूरी दुनिया के पास हैं
शायद एक शहर इसीलिए नहीं जाता हैं कभी दूसरे शहर में
हम रहे या न रहे यह शहर जरूर रहेगा अपनी जगह
पहाड़ से निकलने वाली नदी मुक्ति की चाह में बहती हैं
पर शहर के नदी शहर को बनाती हैं कभी बिगाड़ती भी हैं
लेकिन कभी मुक्त नहीं होना चाहती
एक शहर में जब तक तक एक सड़क रहेगी
शहर भी दुनिया के नक्शे में चमकता रहेगा ॥

Saturday 5 December 2015

सड़को पर अपनी नींद खोजता हूँ

हर सुबह एक बीमार ख़्वाब लिए
नंगी सड़को पर दौड़ता हूँ
जहाँ हर रोज मौते पनाह लेती हैं
कभी -कभी लगता हैं
जो सड़के मुझे मंजिल का पता बताती हैं
उन्हीं सड़को पर एक दिन मैं आखिरी नींद सो जाऊंगा
कभी -कभी मैं उन सड़को पर अपनी नींद खोजता हूँ
नींद तो नहीं मिलती हैं
लेकिन मेरे जूते के साक्ष्य जरूर मिल जाते हैं और कुछ अठन्नी भी
जो किसी भिखारी के गिरे हुए होंगे
मैं उस अठन्नी में अपनी किस्मत खोजता हूँ
और सड़क के एक किनारे सुरक्षित अठन्नी को रख देता हूँ
और कुछ देर तक मैं सड़को को प्यार की नजर से देखता हूँ
क्योकि सड़के ही मेरे समय की सभ्यता की एक साक्ष्य हैं
शहर की हर सड़क शहर की एक कुंजी होती हैं
जो बंद और खुले शहरों का पता बताती हैं
शाम को लौटते वक्त ख्वाब मर चूका होता हैं मेरी बाँहो में
कमरे का दरवाजा खोलते ही मैं दूसरा ख्वाब उठा लेता हूँ
कभी कभी मौत के बीच खुद को बचाने के लिए जरुरी होता हैं
ख्वाबों का चुराना
रात जब खामोश होकर उतरने लगाती हैं कुएं में
मैं एक बार फिर सड़क पर आता हूँ
उस समय सड़क घायल होकर कराहती रहती हैं
और सभी सरकारी फरमानों पर हंसती रहती हैं
सड़क आहिस्ते से कहती हैं
श्मशान का रास्ता भी मेरे ही सीने से होकर जाता हैं
उसके बाद भी इस सरकार को मेरा रत्ती भर भी ख्याल नहीं हैं ॥
 

Thursday 3 December 2015

आँखों में नीद की जगह एक आवाज

आँखों में सेमर की फूल की मानिंद नींद आती हैं
एक पहर के बाद राख की तरह दीवारो पर बिखर जाती हैं
मैं कई बार नींद के पार जाना चाहता हूँ
ठीक वैसे ही जैसे अँधेरा जाता हैं जंगलो में
और जाते ही जंगल के देह पर पसर जाता हैं
अँधेरा जंगल का रोशनी हैं .....
आँखों में कभी नींद कपूर की तरह आती हैं
नींद की गंध को मैं थामना चाहता हूँ
तभी हवाओं में कोई शोर तैरता हुआ आता हैं
एक बारूदी विस्फोट की तरह आवाज में तब्दील होकर अपनी कब्र मे खो जाता हैं
मैं सूर्यास्त के बाद के आसमान में रखता हूँ एक दिया
जो कुछ देर चमकने बाद बूझ जाती हैं
ठीक वैसे ही जैसे मेरे सीने में हर शाम एक उम्मीद मर जाती हैं
और मैं रात भर अपनी उम्मीद को दफ़नाने के लिए बुनता हूँ सतरंगी चादर.....
नींद के अलग -अलग रास्ते होते होंगे
मैं उन रास्तो को वर्षो से खोज रहा हूँ
जैसे वर्षो से खोज रही माँ मेरी स्मृतियों को ....
नींद के माने मुझे आज तक समझ में नहीं आया
औरो को समझ में आया होगा
तभी तो ववे लोग एक ही चाल में धरती पर चलते रहते हैं
और एक ही भाषा बोलते हैं
मानों वे आदमी नहीं कोई पेड़ हो जो सिर्फ महकते हैं
जबकि हम जैसे लोग हर रोज एक शव की शक्ल में तब्दील हो जाते हैं
दुनिया समझती हैं
अपने आसमान के निचे ही कुचलकर मर गए हैं
लेकिन अगले क्षण हम लोग अपनी धरती पर जड़ो के साथ जिन्दा हो जाते हैं
और अपनी नांव लेकर निकल पड़ते हैं
पानी की गहराई में अपने अपने सूर्य को ढूंढने
और इस खोज में भले से हमें कोई सूरज कभी न मिला हो
लेकिन हर रोज एक नया आसमान जरूर मिलता हैं
जहाँ हम खड़ा कर सकते हैं
अपनी नींद का हरा -भरा जंगल ....
अभी हम रात पर पहरा ही देने के लिए सोचते हैं
तभी आसमान से अचानक एक तारे के गायब होने की सूचना मिलती हैं
और हम निकल पड़ते हैं
सूचनाओं की दिशा में
सूचनाये की दिशाए कई बार सहीं नहीं होती हैं
इसके बाद भी हमें चलना पड़ता हैं तब -तक जब तक कोई सही दिशा न मिल जाये
जरुरी नहीं होता हैं की जो दिशा बताई जाती हैं दुबारा वह भी सही हो
कई बार मंजिल के पास जाकर हमें सिद्ध करना पड़ता हैं
सूचना भी गलत थी और दिशा सही थ.....
कई बार रात में जब हमारी दुनिया गुजरती हैं तब पूरी दुनिया
सपने को खाकर सोयी हुई दिखाई देती हैं
तभी फ़ुटपाथ से एक आवाज आती हैं
जो सपने न पहने की सजा भोगते रहते हैं ....
रात में दुनिया के देवता सो जाते हैं
दिन भर की नौकरी से शायद ऊबकर
देवता भी कभी हमारे जैसे ही लगते हैं भटके हुए जैसे
इन्हे देखकर लगता हैं
यह भी किसी सर्कस में बंद हो गए हैं
और एक तमाशा की तरह शहर में शोर किये जा रहे हैं
या अपनी मुक्ति संग्राम का क कोई गीत गए जा रहे हैं
लेकिन अजीब हैं देवताओं की कोई भाषा यहाँ समझने को तैयार नहीं
कभी कभी देवताओं को ऐसे में देखकर लगता हैं
शायद यह भी बचपन में अपने घर से अकारण गायब हो गए हैं
और गायब व्यक्ति को गायब होने की सजा भोगनी पड़ती हैं
अब मेरी आँखों में नीद की जगह एक आवाज समाई रहती हैं ॥
नीतीश मिश्र