Tuesday 15 December 2015

स्त्रियां खुश हैं कि घर में नमक हैं

स्त्रियां खुश हैं यह सोचकर कि घर में अभी नमक हैं
रसोई में चुटकी भर नमक का होना
इस चुटकी भर उम्मीद से वे खोज लेती हैं
आसमान में थोड़ा सा लाल  रंग
और पेट भरकर हँसती हैं
यह सोचकर कि अब वे धरती पर फैले हुए पानी में घोल
सकती हैं अपने हिस्से का लाल रंग !
इस उम्मीद को जेवर की तरह कहीं कान में बांध लेती हैं
 और निकल पड़ती हैं किसी जंगल की और या सागर के पास
स्त्रियां जंगल के एकांत में भरती हैं
एक सिंदूरी लाल रंग
और सागर की जड़ में रोपती हैं अपना स्वर !!
और धीरे से कहती हैं
हम नहीं डरते दुनिया के किसी भी शोर से
जब तक घर में नमक हैं
स्त्रियां गाती रहेंगी ...
स्त्रियां खुश हैं यह सोचकर
अभी बचा हुआ हैं घर में चूल्हे जैसा एक सहचर
जो बचाकर रखा हुआ हैं
स्त्रियों के लिए एक संगीत
एक स्त्री के लिए एक देवता जितना ऐतिहासिक हैं
उससे कहीं ज्यादा प्राचीन एक चूल्हा हैं
एक चूल्हे के अंदर स्वर तभी फूटता हैं
जब उसे स्त्री स्पर्श करती हैं
स्त्रियां खुश हैं जबसे वे हवा के खिलाफ
आग जलाना  सीख ली हैं ....
स्त्रियां उस दिन ठहाका लगाकर हँसती हैं
जब बिना धूप के गीले कपड़ो को
सुखाने की विधि खोज लेती हैं ...
भले से ! तुम्हारे रक्त में नमक कम हो जाये
लेकिन स्त्री के रसोई ने नमक बचा रहता हैं
जैसे बची रहती हैं धरती में कहीं डुब ॥
नीतीश  मिश्र

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