Friday 21 October 2016

प्रश्न दीवारों में जीवित हैं .

सारे प्रश्न 
अभी भी दीवारों में 
जीवित हैं ......
रात भर मैं 
अपनी आत्मा से प्रश्नो की केंचुल उतारकर 
दीवारों पर सजाता रहता हूँ
मेरी दीवारें
मेरी आत्मकथा हैं

मैं दिन भर धरती पर 
उत्तर की खोज में साईकिल से भटकता रहता हूँ ...... 
इस क्रम में आँखों में कई बार इतिहास  चुभता हैं 
तो कई बार जख़्म  आईने में दिखाई देने लगते हैं ... 
सारी रात 
मैं अपने आत्मा के खाते में 
भागी हुई लड़कियों का रिपोर्ट दर्ज करता हूँ 
सारी रात टूटे हुए खिलौनों में एक रंग भरता रहता हूँ 
इसी बीच पता चलता हैं 
एक सांप मर गया 
जिसने पिछले साल रामअवतार  को मुक्ति का मार्ग दिखाया 
मैं सांप की मरी हुई आँखों में अपनी तस्वीर देखता हूँ 
और सोचता  मैं  इसकी आँखों से कैसे बच जाता था 
गेहुंअन सांप असंख्य बार मेरे कमरे में आता था 
और घंटो मेरी तरह गंभीर होकर 
मेरे प्रश्नों को पढता था 
फिर कुछ देर तक हँसता था 
मैं रात भर सांप के देह को देखता रहा 
और वह रात भर मुझे देखता रहा 


Friday 7 October 2016

एक बार गहरी नींद सोना चाहता हूँ

मैं युद्ध पर जाने से पहले 
एक बार गहरी नींद सोना चाहता हूँ 
और नांव के एकांत को 
अपने भीतर भरना चाहता हूँ 
मैं युद्ध पर जाने से पहले एक बार 
अपने घर की नीव में उतरना चाहता हूँ 
और वहां माँ की रखी हुई आस्था को 
एक नया अर्थ देना चाहता हूँ
मैं युद्ध पर जाने से पहले 
नींद में एक प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ 
मैं एक बार गंगा की रेत से मिलना चाहता हूँ .... 
मैं युद्ध पर जाने से पहले एक बार 
पीपल की पत्तियो पर जमी स्मृतियों को 
अपने भीतर भरना चाहता हूँ 
दीवारों पर निर्मित इतिहास को भाषा से रंगना चाहता हूँ 
मुझे मालूम हैं अगर 
मैं युद्ध से वापस नहीं लौटा 
तो कोई नहीं पूछेगा 
मेरे टूटे हुए खिलौनों का क्या अर्थ हैं