Sunday 2 November 2014

चलो कुछ बन जाते हैं

चलो तुम कुदाल बन जाओ
और मैं मिट्टी …
तुम खोदो मुझे परत दर परत
और छिपा के रख दो अपना संघर्ष .......
एक समय के बाद
तुम्हारा संघर्ष
अविराम विरोध की आवाज बन जायेगा आकाश के नीचे !
चलो मैं फूल बन जाता हूँ
और तुम रंग .......
ऐसे में हम एक हो जायेंगे
और कभी साख से टूटे तो एक दूसरे का साथ न छूटे
चलो तुम नदी बन जाओ
और मैं नाँव
और चलता रहे सूर्यास्त के बाद भी हमारा कारोबार !
चलो तुम अँधेरा बन जाओं
और मैं उजाला
जिससे मैं उत्तर सकूँ तुम्हारी अस्थियों में .......
चलो तुम सृष्टि बन जाओं
और मैं पहरेदार .......
चलो तुम पर्स बन जाओं  जेब
और बना ले अन्धेरें में अपना -अपना आयतन
या तुम मैदान बन जाओं
 धावक  .......
और मैं अंत तक दौड़ता रहूँ तुम्हारी शिराओं में
या तुम धुप बन जाओं और मैं हवा
जिससे सदी के अंत तक बना रहे हमारा स्पर्श .......
चाहे अयोध्या काबा रहे या न रहे
चलो मैं पतीली बन जाता हूँ  आंच .......

Sunday 24 August 2014

मैंने अपने चेहरे  की हत्या नहीं की हैं
___________________________

अक्सर लोग अपने चेहरे की हत्या करके
जीने का एक प्रमाण देते हैं
लेकिन ! मैंने अपने चेहरे  की हत्या कभी नहीं की
यह अलग बात हैं कि ज़माने के साथ रहते हुए
मैं भूल गया अपना ही चेहरा
कई बार दुनिया को जानने के लिए
जरूरी होता हैं अपना चेहरा भूलना
दुनिया के साथ रहते हुए कभी - कभी मुझे याद आता था
मेरा चेहरा कैसा हैं ?
लेकिन ! लोगो छोटी -छोटी खुशियों के आगे
मुझे ध्यान ही नहीं रहता था अपना चेहरा की
मैं देखने मैं काला  हूँ या गोरा ।
एक समय बाद हम अपने जीवन के फलसफों की हत्या करके
बना लेते हैं अपने ऊपर एक चेहरा
नहीं तो जब डोमा जी उस्ताद जब पैदा हुआ था तो उसका भी चेहरा ठीक मेरे ही जैसा था
एक समय के बाद लोग बदल लेते हैं अपनी हुलिया
जब भी कभी कोई मुझसे पूछता हैं
तुम्हारा चेहरा कैसा हैं ?
तो मैं यही बताता हूँ
चौराहे पर खड़े मजदुर जैसा
एक लाचार बच्चे जैसा
कभी -कभी मेरा चेहरा भूख जैसा भी हो जाता हैं
मुझे अब शर्मिंदा नहीं होती हैं
अपने चेहरे पर
क्योकि इस चेहरे पर
अभी भी वह लिखती हैं
अपना सपना ॥

Sunday 1 June 2014

सोनाडीह के मेले से लौटते हुए

सोनाडीह मेले में
नहीं दिखाई दी
गुड की जलेबी 
न ही सील -बट्टे की दुकान
इस बार में नहीं आई थी लड़कियां
महिलाएं/  बच्चे ।
जबकि इस बार मेले में पूरा बाजार आया हुआ था
लेकिन ! मेले में नहीं थी कोई ऐसी आँख
या नहीं था कोई ऐसा हाथ
जो मेला का इंतजार कर रहा था
सूरज का एक साल से रंग देखकर
मेले में नहीं दिखाई दिया जोकर
जिसके कहानी साल भर गांव में सुनाई देती थी
मैं मेले में धूल की दीवार पार करते हुए
काफी आगे तक गया
पर नहीं दिखाई दिया मेले में
मेरा अपना खोया हुआ बचपन
और न ही वह आम का पेड़
जो बारहो महीने
देता था सबको छाँव
मेले में था कोई तो
सिर्फ  भगवती की तीन मूर्तियां
और हजारो भक्त
पर नहीं था मेले में कोई ऐसा
जो पत्थर की मूर्तियों को माँ की नज़र से देख सके । ।

Saturday 31 May 2014

बनारस में एक कुत्ते का होना जरूरी हैं

बनारस में
अगर एक कुत्ता होता
अजनबियों की पहचान करना
सरल होता .......
कभी -कभी एक
कुत्ते का होना जरूरी हो जाता हैं
और बची रहती हैं
लोगों की अपनी भाषाएँ ।
एक कुत्ते का एक शहर में होना
इस बात को प्रमाणित करता है
यहाँ अभी भी लोग जिन्दा हैं
एक शहर में एक कुत्ते के होने से
सुरक्षित रहती हैं
लड़कियां ।
जब तक शहर में कुत्ते रहते हैं
चौराहे पर नहीं दिखाई देता हैं
कोई बाहरी व्यक्तित्व और विचार
कुत्ते पहचान लेते हैं
समय की हत्या करने वाले हाथों को
कुत्ते पहचान लेते हैं
हत्यारे की आँख में छुपे हुए सपनों को
एक कुत्ता भक्त से पहले पहचान लेता हैं भगवान को
यदि बनारस में एक कुत्ता होता
बनारस से कुरुक्षेत्र के लिए कोई रास्ता नहीं बनता
कुत्ते चले गए
चली गई गलियों की रौनक
कुत्ते होते तो बचा रहता
यहाँ पर विवेक
बचा रहता बसंत
और एक आदमी के साथ कुत्ते भी दिखाई देते
शव यात्रा में । ।



Sunday 25 May 2014

बनारस डूबने वाला हैं औरतों ने घोषित कर दिया हैं

बनारस की औरते
अब नहीं रोती हैं
पति रात को घर चाहे कितनी ही देर से क्यों न आये
या खाली हाथ शाम को आये
बनारस की औरते अब खुश नहीं रहती हैं
भाई को नौकरी मिल जाने पर
पिता को बीमारी से मुक्त हो जाने पर
छोटी बहन की शादी तय हो जाने पर
बच्चों के फर्स्ट डिवीजन पास हो जाने पर ।
बनारस की औरतों को अब दुःख भी नहीं होता
यह जानते हुए की
पति किसी और से रोमांस करता हैं
बनारस की औरते अब नहीं जाती हैं मंदिर में
न ही मज़ार पर
न ही दुकान में
औरते अब नहीं झगड़ती
माकन मालिक से
सब्जी वालों से ,
बनारस की औरते अब नहीं देखती टीवी पर कोई भी धारावाहिक
अब नहीं बैठती आईने के पास देर तक
अब नहीं इच्छा रखती नए कपड़ों की
अब औरतों को नहीं मालूम रहता हैं
पड़ोसी के घर खाने में क्या बना हैं ?
बनारस की औरतो को पता चल गया हैं
आँखों के सामने की दुनियां
कल इतिहास में बदल जाएगी
औरते पहचान लेती हैं
सृष्टा के काल चक्र को
बनारस की औरते अब नहीं जनना चाहती
दूसरा बच्चा !
बनारस डूबने वाला हैं
औरतों ने घोषित कर दिया हैं । ।

Saturday 24 May 2014

बनारस से अब नहीं कोई लिखता बुरहानपुर के लिए प्रेम पत्र

बनारस से अब नहीं कोई लिखता
बुरहानपुर के लिए  प्रेम पत्र
न ही हैदराबाद के लिए / अलीगढ के लिए
और दौलताबाद के लिए/ न ही अजमेर के लिए
न ही लखनऊ के लिए ……
भोपाल / आजमगढ़ / कश्मीर से नहीं जाता हैं
कोई प्रेमपत्र बनारस के लिए
जबकि बनारस के लड़के / लड़कियां
हैदराबाद / दौलताबाद के लड़के / लड़कियां
आज भी करते हैं
एक दूसरे से प्रेम
पर हवाओं की दिशा बदल गई
बनारस का रंग ढल गया
सो प्रेमपत्र का आना - जाना बंद हो गया ।
अब बनारस में दिखाई देता हैं
पुराना प्रेमपत्र
जैसे वे गंगा को साफ करने का इरादा बना लिए
वैसे ही उनके खौफ से लोगों ने छोड़ दिया
प्रेमपत्र लिखना
क्योकि लोगों को मालूम हैं
यदि प्रेमपत्र लिखना नहीं छोड़ेगें
तो उनके सैनिक अंगुलियां काट कर अपने साथ लेकर चले जायेंगे ।
बनारस से जाने वाली और बनारस आने वाली ट्रेनें बहुत उदास दिखाई देती हैं
बनारस के डाकिये के चेहरे पर नहीं दिखाई देती अब  कोई हंसी । ।

Monday 19 May 2014

गाँवो में आदमी के बजाय कहीं देवता तो नहीं आ गए

जब गाँवो में घर नहीं थे
पर आदमी बहुत थे
पेड़  भी ……
आदमी और पेड़ जब -तक थे
तब गांव में जो देवता थे
उनका कद बहुत छोटा था
जब आदमी के पास अन्न नहीं था
फिर भी लोगों के पास भाषा थी
और गांव के हर मोड़ पर
सुनाई देती थी
प्रेम कहानियां ।
अब गांवों की लंबाई / चौड़ाई दोनों बढ़ गई
घर भी बहुत सारे बन गए
और दुकाने मुर्गियों की तरह खुल गई
राजनैतिक पार्टियों की तरह
कई मंदिर खड़े हो गए
लड़के / लड़कियां बहुत खूबसूरत दिखाई देने लगे
और पेड़ एक -एक कर गिरते गए
पिछले बीस सालों से
नहीं सुनाई दी
कोई प्रेम कहानी
और न ही कोई पेड़ लगने की खबर आई
मैं सोच रहा हूँ
आदमी के बजाय कहीं देवता तो नहीं आ गए । ।

हम भूल जायेंगे एक दिन अपने शहर की हवा को

हम
अपने प्यार और बाज़ार के
विस्तार में
भूल गए हैं
शहर में रहने वाले दर्जियों के नाम
और उनके चेहरे को ।
जो हर रात सोचते  हैं
आदमियों को कैसे सभ्य बनाया जाए
हम भूल गए हैं
चौराहे पर बैठे हुए मोची को
जो सूरज के विरुद्ध मोर्चा खोलकर
आदमी को चलने का हुनर सिखाता हैं
हम भूल गए हैं
राजगीर की  कला को
जिसके ऊपर हम बैठकर
दूसरे शहर को बताते हैं
हमारा मकान कैसा हैं ।
ऐसे ही हम भूल जायेंगे एक दिन
अपने शहर की हवा को
और धूप को ॥

Sunday 18 May 2014

आज मैं बनारस में था

आज मैं बनारस में था
गोदौलिया में पप्पू के दुकान पर चाय पी रहा था
फिर चल दिया सारनाथ
देखने लगा बुद्ध को और उनके शिष्यों को
जिन्हे सावन में पूरा बनारस हरा -भरा दिखाई देता हैं
फिर चला गया पीली कोठी / अलईपुर
जहाँ बादलो को सहमा हुआ पाया
रात गोलगड्डा में रहमान की छत पर बैठकर
क्या देखता हूँ
मूसा रो रहे हैं
कबीर चिल्ला रहे हैं
और कह रहे हैं
सारे बाभन हो गए भाजपाई
कबीर कहने लगे कुछ नहीं हो सकता हैं इस देश का
मैं भी लड़ा था
तुम क्या लड़ोगे
तुम मुठ्ठी भर हो और इनके पास अक्षैणी सेना हैं
तुम्हारे पास विचार हैं
इनके पास पुलिस हैं/ राजनीति हैं/ धर्म हैं ।
मैं रात भर कबीर के सामने रोता रहा
सुबह उठकर चल दिया कोयला बाजार
और जैतपुरा / बजरडीहा
पूरी गलियों में कांपते हुए लोगों के पांव के निशान दिखाई दिए
दीवारो में बच्चे छिपा रहे थे अपने कंचे
शाम को उठकर चल दिया लोहता / चांदपुर
मुझे लग रहा था मैं आदमियों को नहीं लाशों को देख रहा हूँ
और अपने को वहां सबसे बड़ा गुनहगार के रूप में पा रहा हूँ
रबीना पूछती हैं
क्या देखने आये हो ?
कि हम लोग मरने से पहले डर कर जीते हैं
 उसकी बात सुनकर मुझे यकीन नहीं हो रहा था
की कबीर भी या कभी प्रेमचंद्र भी बनारस में रहे थे इनके बीच ।
मैं रोता रहा और सुलगता रहा
तभी दालमंडी में कबीर फिरसे मिल गए
और हम दोनों नई सड़क पर साथ चलने लगे
दोनों मौन थे
तभी कबीर बोले ये नए ज़माने का बनारस हैं
मैं तुम्हारे साथ हूँ
मैं तो अब -तक देख रहा था
तुम्हारे अंदर इन लोगों को लेकर कितना दुःख हैं । ।

Saturday 17 May 2014

मैं हार गया ज़ारा

मुझे माफ़ करना ज़ारा !
मैं हार गया
या मुझे पराजित कर दिया गया
ज़ारा मैं हार गया
मेरे पास शब्द थे.……
विचार थे ………
और उनके पास धर्म था
हथियार था ।
मैं हार गया जारा
क्योंकि वे रथ पर थे
और मैं घास पर बैठा हुआ था ।
ज़ारा मैं हार गया
क्योंकि मेरे कंधे पर
भुन्नू / सुख्खू / तपसी
हीराबाई / कबीर / परवीन का दर्द था
मैं हार गया ज़ारा
मैं अपने सपनो के साथ
फुटपाथ पर था ।
मैं हार गया ज़ारा
क्योकि मैं जंगलो की / धरती की ह्त्या नहीं करना जानता । ।

Thursday 15 May 2014

ज़ारा तुम पुरानी तस्वीरों में सपनों की मानिंद लगती हो

ज़ारा जब कभी तुम्हारी
पुरानी तस्वीरों को देखता हूँ
दिखाई देता हैं मुझे
अपना स्पर्श ………
तुम तस्वीरों में सपनों की मानिंद सुन्दर लगती हो
तस्वीरों में दिखाई देती हैं
सहजता ।
और जब कभी तुम्हारी नई तस्वीर उठाता हूँ
और झांकता हूँ तुम्हारे देह में
मांस के बड़े - बड़े लोथड़ों से बदबू आती हैं
अपने समय के हिंसा की
और मैं डर जाता हूँ
विज्ञानं और बाजार से ।
जो एक गुड़ियाँ को शहर की
सबसे प्रदूषित नदी बना दिए
अब मैं नहीं देखना चाहता हूँ कुछ भी नया ऐसा
जो सपनों को और जीवन को मारकर अपने समय का आईना बनाते हैं । ।

Wednesday 14 May 2014

सोचता हूँ लिखूं एक चिठ्ठी

सोचता हूँ
लिखूं एक चिठ्ठी
उजरका आम को
और पुछू कहाँ से भरकर लाते थे
अपने अन्दर मिठास
जबकि तुम कभी मन्दिर भी नहीँ जाते थे ।
सोचता हूँ लिखू एक चिठ्ठी
अपनी पाठशाला के मास्टरों को
जो अक्सर मार -मार कर बताते थे
देवताओं से अधिक ताकत क़िताबों मे होतीं हैं ।
सोचता हूँ लिखू एक चिठ्ठी
अपने बगीचे को
जहाँ मैने पहली बार
एक लड़की का नाम लिखा था
अंगूठे से ।
सोचता हूँ लिखू उस लड़की को चिठ्ठी
जो दोपहर मे घर से भागकर आती थी
और अपनी गुड़िया और गुड्डे की शादी रचाती थीं ।
सोचता हूँ लिखूं एक चिठ्ठी
लट्टू को जिसको मै नचाता था
और आज मैं खुद एक लट्टू की तरह नाचता हूँ । ।
सोचता हूँ लिखू एक चिठ्ठी अपने
घर को जहाँ से माँ ने मुझे आसमान दिखाया था । ।

जो मेरे पास हैं वह किसी और के पास नहीं हैं

मेरे पास जो प्रेम था
वह अब किसी और के आँगन से
आसमान के टुकड़े को
मुंह में थामकर
मेरे उबड़ - खाबड़ धरातल के खिलाफ
मोर्चा खोलकर
मेरी दीवारों पर लगातार हँस रहा हैं ।
मेरे पास अब नहीं हैं इतनें सपने की
कह सकूँ कि अभी कुछ दिन और जिन्दा रहूंगा ।
अब मैं सपनों के बारे में कुछ सोचकर
नहीं चल पाता हूँ अपनी ही जमीन पर
जो हवाएँ हैं और जो रोशनी है
उसमे नहीं तराश पाता हूँ
अब कोई अपना चेहरा
अब मेरे पास नहीं हैं कोई ऐसा रास्ता
जिस पर चलकर सुन सकूँ कुछ अपनी आवाजे
और कुछ उसकी हंसी ।
अब जो मेरे पास हैं
वह उसके पास नहीं हैं ……
उसकी हँसी का रंग
उसका पत्र
उसकी कुछ कविताएँ ॥

माँ रखी हुई हैं गुल्लक मे सिक्के क़ी जगह मेरी आत्मा

जब तक हमारे पास
गुल्लक था
हमारे सपने
और जीवन दोनों सुरक्षित थे
हम गुल्लक मे सिक्के और सपने
दोनों बचाकर रखते थे ।
कभी - कभी माँ भी
और बाबूजी
रखते थे
हमारे सपनो के बीच अपने सपनों को
और दोनों खूब हँसते थे ।
जब घर के चूल्हे
और हमारे कपड़े एक साथ रोते थे
या माँ -बाबूजी के बदन से कपड़े सरकने लगते थे
या घर कि खिड़कियां रोने लगती
ऐसे में माँ
गुल्लक तोड़ देती
माँ को मालूम था
जब कोई साथ नहीं देगा तब गुल्लक ही काम आएगा
और घर के टूटते सपनों को बचा लेगा ।
आज जब मै माँ से इतना दूर हूँ
उसके बावजूद भी
माँ रखी हुई हैं
गुल्लक
और रखती हैं
मेरे लिए सपने
और सुनती हैं गुल्लक मे
मेरे सपनों की आवाज
पर माँ
ने अब कसम खा लिया हैं
की अब नहीं तोड़ेगी वह क़भी गुल्लक
क्योंकि माँ
रखी हुई हैं गुल्लक मे सिक्के क़ी जगह मेरी आत्मा
क्योकि माँ जानती हैं
उसका बेटा अब गुल्लक मे हीं सुऱक्षित रहेगा ॥

Tuesday 13 May 2014

लड़कियां चुप हैं जबसे आँगन का आसमान नीला हैं

लड़कियां चुप हैं
उदास हैं .......
और रो रही हैं
दुनियां की पंक्ति में
सबसे पीछे खड़ी हैं
लड़कियां चुप हैं
जबसे तुम्हारे आँगन का आसमान नीला हैं ।
लड़कियां रो रही हैं
जबसे तुम घर मे बिस्तर लगाकर
संजय की तरह कुरुक्षेत्र की घटनाओं को
देखना शुरू कर दिए ।
लड़कियां चुप हैं
तुम्हारे देवताओं की तरह
लड़कियां चुप हैं सीता की तरह
द्रोपदी की तरह
लड़कियां बोलना शुरु करेगी तो
टूट जाएगी सैंधव सभ्यता की दीवारे ।
हम कैसे समय मे जी रहे हैं ?
जहाँ अन्धो को मिल जाती हैं कुर्सियां
लंगड़ों को मिल जाती हैं मंजिले
और कुत्तों को मिल जाती हैं पहचान
लड़कियां चुप हैं
जैसे चुप हैं घर का चौखट
जैसे चुप रेलवे लाइन की पटरियां
लड़कियां कब - तक चुप रहेंगी
जब तक पुरूषों के पास
हाथ / पांव और आँखे रहेंगी ॥

लड़की कहती हैं सब झूठा हैं

लड़की कहती हैं
तुम्हारे देवता कायर हैं
झूठे हैं.……
तुम्हारा इतिहास
तुम्हारा धर्म सब झूठा ।
लड़की कहती हैं
राजनीति को बना दिये
एक वैश्या !
लड़की कहती हैं
तुम सदियों से जीवित हो
क्योकि पिटारे मे तुमने छुपा रखे थे शब्द
और जब चाहते थे
खोज लेते थे
कोई हथियार
खोज लेते थे कोइ सुन्दर देवता
लड़की कहती हैं
अगर इतने होशियार थे तो क्यों
नहीं अकेले खोज लिये आग!
क्यों नहीं इतिहास मे लिखे की
आग की खोज एक लड़की या एक महिला ने किया था ।
लड़की कहती हैं
अगर इतने ईमानदार थे
अपनी आँखन देखी लिखे होते
लड़की कहती हैं
तुम्हरी आँखे झूठी
तुम्हारा अतीत / वर्तमान / भविष्य सब झूठा
लड़की कहती हैं हमे पैदा होते ही क्यो टॉँग देते हो हांशिये पर
और एक अभियोग लगाकर
बिलो मे बन्द करके बैठा देते हो
सदा के लिए एक पहरेदार ॥ ।
लड़की कहती हैं सब झूठा हैं

Sunday 11 May 2014

लड़की मेरी स्मृतियों से सपनो तक लगातार रो रही है

आज मेरे कानों में
लड़कियों के रोने की आवाज आई
जंगलों के रोने की आवाज
पहाड़ों के रोने की आवाज
और सागर के रोने की आवाज कानों में गूंजती रही ।
लड़की मेरी स्मृतियों से सपनो तक
लगातार रो रही थी
और बीच - बीच में कह रही थी
मैं पैदा होते ही रोई और मरने से पहले भी हजारों बार रोई
जब रामराज्य था
तब भी मैं कांपती थी
और जो नया रामराज्य आने वाला है
वहां पैदा होते ही मार दिया जाता हैं
और यदि किसी वजह से बच गई
तो दक्षिण टोला का अप्सरा घोषित कर दिया जाता हैं
और रामराज्य के ईमानदार सैनिक बन जाते हैं गिद्ध । ।

Saturday 10 May 2014

लड़कियां कायर नहीं होती हैं

लड़की पैदा होते ही
सुनी थी
बाप के मुँह से गाली !
लड़की पैदा होते ही डर गई थी
और भूल गई थी
अपना चेहरा ।
लड़की की जैसे -जैसे हरियाली बढ़ती
बाप की गालियां और भद्दी होने लगती
लड़की अक्सर घर से कहीं दूर भागना चाहतीं थीं
पर लड़की के पांव को नहीं दिखाई देते कोई रास्ते ।
लड़की जब अकेले में हंसती
या गाना गाती
या सपना देखती
लड़की के चरित्र पर उठते थे सवाल
लड़की वर्षो से बन्द थी
अपनी सांस की कोठरी मे
लड़की धूप की रस्सियो से
कभी हवाओं से पूछती
जो लड़कियां ख़ुश रहती हैं
वह देखने में कैसी लगती हैं ?
लड़कियां ईमानदार होती हैं
लेकिन ! इतनी डरी होती हैं कि
लोग उन्हें कायर समझते हैं
लड़कियां कायर नहीं होती हैं  । ।

Friday 9 May 2014

पुरुष को सिखाया जाता हैं

पैदा होते ही
स्कूली शिक्षा की तरह
पुरुषो को पढ़ाया जाता हैं
स्त्रियों पर कैसे नियंत्रण रखना चाहिए !!
भाषा से / लात से / पुचकार से
पुरुष को मन्त्र की तरह सिखाया जाता हैं
स्त्रियां भरोसे लायक नहीं होती हैं
पुरुष को भूगोल की तरह पढ़ाया जाता हैं
स्त्रियों के देह के बारे मे .......
पुरुष : को बताया जाता हैं
स्त्रियां सिर्फ़ देह होती हैँ
स्त्रियां डायन भी होती हैं
स्त्रियां वैश्याए भी होती हैं
पुरुष को बताया जाता हैं
वह सारा नुस्खा
जिससे स्त्रियों पर कभी भरोसा न हो सके !!

Thursday 8 May 2014

मेरे बारे में दीवारे बताएंगी

दीवारे !
हर अच्छे - बुरे वक्त मे
मेरे साथ रही
दीवारे भूलने की बीमारी से
मुझे सदा दूर रखती थी
माँ ! के न होने की
एक सीमा तक भरने का प्रयास करतीं
माँ ! के हाथो की महक
आज भी बचा के रखी हैं
दीवारे अपने पास ।
बाबूजी की बहुत सारी यादें बची हुई हैं दीवारों पर
दीवारे ढो रही हैं सदियों से
मेरे पूर्वजो की यादो को
अपने बदन पर !
मैंने ! भी दीवारो पर
लिख रखा हैं कई सारे सूत्र
कई सारे चित्र …
दीवारे बताएगी तुम्हें
मैं कविता लिखने से पहले
कैसे रोता था ?
दीवारे बताएंगी
मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूँ
दीवारे बताएंगी
मैं लोगो के लिये
क्या क्या सोचता हूँ ?
दीवारे बताएंगी
मैं कितनी रात सोया नहीं ?
मैं कितने दिन भूखा रहा
दीवारे बताएंगी मै
मैं काशी को बचाने के लिये
क्या क्या किया ? !!

Wednesday 7 May 2014

माँ के लिए दूरियों का कोई मायने नहीं होता हैं

माँ के लिए
कभी दूरियों का कोई  मायने नहीं
होता हैं …
माँ के लिए
देश / भाषा
समंदर / पहाड़
जंगल का कोई मायने नहीं होता हैं …
माँ जब चाहती हैं
जहाँ चाहती हैं
हवा की तरह आ जाती हैं
और पकड़ लेती हैं
मेरी सारी कमजोरियां
माँ ! के लिए जरूरी नहीं रहता हैं
मेरे बारे में किसी से कुछ जानने का ।
माँ ! ने
पंडित / औघड़ से पहले  ही बता दिया था
यह मुझसे दूर रहेगा …
मुझे जीवन भर रुलाता रहेगा
मेरे सपनो की हत्या करके
दार्शनिक बनेगा …
और एक औरत के प्यार मे पागलों की तरह
अपने को सबसे समझदार घोषित करेगा!
और देश के राजाओं का विरोध करता रहेगा
माँ ! के लिए मैं कभी कोई मायने नहीं रखता हूँ
आज भी
जब
मैं सही को सही और गलत को गलत कहता हूँ
इसके बाद भी वह कहती हैं
बंद करो अपना बरगलाना । ।

खुदा पूछता हैं प्रेम पत्र कैसे लिखा जाता हैं

आधी रात मे ……
देवता सो रहे थे ……
सारे भूत जाग रहे थे
और आसमान मे सारे तारे मजदूरी कर रहे थे
जानवर अपनी स्मृतियाँ गा रहे थे
और पेड़ अपने आस- पास के इतिहास को समेट रहे थे ……
और मैं लिख रहा था कविता ……
ऐसे में दरवाजे पर कोई  दस्तक देता हैँ
अरे ! ये तो वही हैं
जिसके बारे में मैं कुरानों मे सुनता आया हूँ
अरे ! ये तो वही हैं जिसके बारे मे मुल्ला कहां करता था
अरे ! ये तो खुदा हैं
मुझे समझते देर नहीं लगी कि
मेरा जीवन लेने आये होंगे खुदा
लेकिन ! अभी मैं यही सब सोच रहा था
तभी खुदा ने कहा
तुम कौन हो ……
मैंने जबाब दिया
मैं एक कवि हूँ ……
मैं एक प्रेमी हूँ ……
खुदा ने कहा ठीक हैं
मेरे चेहरे पर कुछ तसल्ली का भाव आया
इतने में खुदा ने कहा
मैं भी तुम्हारी प्रेमिका से प्यार करता हूँ ……
मैं भी उसे प्रेम पत्र लिखना चाहता हूँ
मैं भी उसकी याद में कविता लिखना चाहता हूँ
इतने ! में सपना टूट जााता है
और सारे देवता जाग जाते हैं
और सारे भूत सो जाते हैं
सुबह मैं क्या देखता हूँ
वह जा रही थी मस्जिद मे
मेरे कमरे कि दीवारे दरकने लगीं
और मेरे पाँव की रोशनी चली गईं थी !!
खुदा पूछता हैं प्रेम पत्र कैसे लिखा जाता हैं

Friday 2 May 2014

प्यार करती हुई औरत सबसे अधिक खुश हैं

प्यार करती हुई औरत
चीनी से ज्यादा मीठी हैं
प्यार करती हुई औरत को आता हैं
आग से बचना
जंगलो और पहाड़ों मे रास्ता खोजना
किसी को मिथक होने से रोकना
दुनियां को नज्मों से सजाना
प्यार करती हुई औरत
आईने के पास बैठकर चुरा लेतीं है अपने चेहरे के लिये थोड़ी सी हंसी
औरत बुनती रहती हैं
अपनी आँखों मे समय के ढेर सारे टुकड़े
प्यार करती हुई औरत को आता हैं
अपने शहर को सबसे सुन्दर बनाना
प्यार करती हुई औरत को देखकर
शहर की हवा
शहर की खिड़कियां
शहर की बारिश शहर की धूप
बदल लेती हैं अपने रास्ते ।
प्यार करती हुई औरत के समय मे
मुर्गा भी हस्तक्षेप नहीं करता
प्यार करती हुई औरत को खुश देखकर
शहर के सारे  देवी -देवता नाराज हैं
क्योकि शहर की औरते अब नहीं जाती क़िसी मन्दिर या सिनेमाघरों मे
या चाट की किसी दुकान मे
प्यार करती हुई औरत लिख रही हैं
अपना इतिहास !

Thursday 1 May 2014

मैं काशी का रक्षक हूँ

मैं काशी का भक्षक नहीं रक्षक हूँ
माँ ने यही पर
मेरी आत्मा को सुई धागे से सीया था
और शब्दों संघर्षों से मुझे सजाया था
काशी ! में मैंने माँ से सीखा था
छोटी -छोटी खुशियों को बटोरकर
चूल्हे की राख मे दबा कर रखना चाहिए
काशी ! मेरे जन्म से पहले
मेरी माँ की पाठशाला  हैं
काशी ! मेरी प्रेमिका की मन्दिर हैं
जिस काशी की मैन पहरेदारी करता हूँ
उसी काशी मे मेरी प्रेमिका को सबसे खूबसूरत औरत होने का ख़िताब मिला हैं ।
काशी ! कभी मेरे लिये बाबा हैं तो कभी मेरी दादी
काशी ! कभी मेरे लिये माँ हैं तो कभी मेरी प्रेमिका
काशी ! कभी मेरे लिये जन्नत हैं तो क़भी मृत्यु
काशी ! कभी मेरी जवानी हैं तो क़भी बुढ़ापा
मेरा घर भी काशी मे हैं तो मेरी यारी भी काशी मे है
काशी ! कभी मेरी कविता हैं तो कांशी कभी मेरी जुबाँ भी है
काशी में जितनी ज्योति हैं उतना ही अँधेरा ।

Tuesday 29 April 2014

चिड़िया चली गई पत्थरों की दूनियाँ से

पत्थर की बनती दुनियां को देखकर
चिड़ियाँ बेजुबान हो गई ..........
सहम गई ..........
और स्वीकार कर ली
अब पत्थरों की दुनियां मे रहकर
नहीं देखा जा सकता हैं
कोई सपना !
पत्थर बनाने वाले दिमाग को
गलियां देती हुई
यहाँ से चली गई
पत्थरों की दुनियां मे नहीं जगह बना पा रहे हैं प्रेमी -प्रेमिका !
पत्थर नहीं समझते
नहीं देख पाते हैं
किसी की छोटी - मोटी खुशियां
पत्थरों ने इस दुनियां में आने से पहले ही कह दिया था कि
हमारी दुनियां मे सपना देखना सबसे बड़ा गुनाह हैं ।
पत्थरों ने कह दिया था भूख से मर जाना
पर सपना देखने की इच्छा कभी जाहिर मत करना । ।

Monday 28 April 2014

हम कब तक चुप्पी के साथ रहेंगे

वे
डरा कर .......
धमकाकर .......
गालियां देकर
अपमानित करके
हमें सदियों के लिये चुप करा दिए !
वे
हमसे हमारी आँखों की रोशनी छीन लिए
उदासी छिन लिए .......
 हँसी छिन लिए .......
हमसे हमारी आदते छीन लिए
शब्द छिन लिए .......
दिमाग के धार को भोथरा कर दिए
वे , खुश हुये
जब उन्हें विश्वास हो गया की
हम केवल भूखे हैं
और भूख से लड़ना ही हमारी प्राथमिकता हैं
तब वे खुश हुए !
दिल्ली की दीवारो से तभी एक आवाज आई
चलो ! देश की अधिकांश आबादी लाचार तो हुईं
वे , खुश हैं
यह सोचकर की
चुप आदमी कभी बोल नहीं सकता
वे निश्चिन्त हैं क्योंकि
सभ्य आदमी सड़क पर अब मूतना छोड़ दिया हैं
उन्हें समझ मे आ गया हैं
उनके विचार का
उनके उत्पाद का
उनके हथियार का बाज़ार शब्दों से गर्म हैं ।

Sunday 27 April 2014

मैं सुन सकता हूँ तुम्हारी हर बात

मैं सुन सकता हूँ
तुम्हारी हर
वह आवाज !
जो शामिल रहती हैं
तुम्हारी प्रार्थनाओं मे। ……
तुम्हारे सपनों मे ……
मैं सुन सकता हूँ
तुम्हारी हर वह बात
जो मेरी अनुपस्थिति मे तुमने कहा था
दीवारों से ……
खिड़कियों से  ……
किताबों से ……
पानी से ……
बर्तनो से ……
मैं सुन सकता हूँ
तुम्हारी वह बात
जिसे सोचकर तुम कुछ देर के लिये रोते हो
या उस बात को जिसे तुम सोचकर चीनी जैसे मीठे होने की कोशिश करते हो
मैं सुनता हूँ तुम्हारी हर बात
 और स्वीकारता हूँ
तुम मेरे रूह की कोई रंग हो !


 

 

Saturday 26 April 2014

कुत्ते भोंकते रहेगें

आँगन  में
एक आदमी
अपनी भूख से प्यार करना अभी सीख रहा था
और आसमान मे बैठा सूरज
जोर -जोर से हँस रहा था
दरवाजे पर बैठा हुआ
कुत्ता भोंक -भोंक कर
सूरज को तमीज सीखा रहा था
कुत्तों के भोंकने का मतलब
हर जगह एक सा नहीं होता !
कुत्तों के भोंकने के अर्थ मे
स्तुति कभी नहीं होती हैं ।
एक स्त्री जब -तक जी भरकर सपना नहीं देख लेती
और एक प्रेमिका जब -तक प्यार नहीं कर लेती
और आदमी जब -तक सोते हुये मुस्कुराना न सीख़ ले
तब -तक धरती पर कुत्तों का भोंकना ज़ारी रहेगा ॥

Sunday 20 April 2014

मैं आखिरी रात प्रेमपत्र लिखता हूँ

जिंदगी की आखिरी रात में
मैं कुछ भी कर सकता हूँ
देवताओं से मिलकर
पूछ सकता हूँ उनका चरित्र
या मृत्यु के बाद जीवन का मूल्यांकन का सकता हूँ
या लम्बी -लम्बी कविताएँ लिख सकता हूँ
चाँद को हथेलियों से छूकर बता सकता हूँ
चाँद का स्वाद वर्फी जैसा होता हैं
या अपने को सबसे पवित्र घोषित कर सकता हूँ
या कई ऐसे लोगो से मिल सकता हूँ
जो मुझे एक विचार दे सकते हैं
या अपने सारे सपनों के साथ रात भर खेल सकता हूँ
बहुत सा धन कमा सकता हूँ
अपने विरोधियों को परास्त कर सकता हूँ ………
मैं देश को राजनीति का एक नया विकल्प दे सकता हूँ
या अपने शहर की बीमारी को खत्म कर सकता हूँ
लेकिन ! मैं ऐसा कुछ भी नहीं करता
अपने मन पसंद का खाना खाता हूँ
और देर तक अँधेरे में चक्कर लगाता हूँ
और अँधेरे के एक छोर को पकड़कर
प्रेयसी के मुस्कुराते हुए चेहरे को थामता हूँ
और उसे एक प्रेमपत्र लिखता हूँ
इस उम्मीद से की प्रेमपत्र में शामिल हो जाए उसके लिए वह तमाम खुशियां
जिनके बगैर वह खुद को बार - बार कमजोर समझती हैं । ।

बाजार से लौटता हूँ तो मायूस होता हूँ

बाजार से लौटते हुए
मायूसी को अपने ऊपर ओढ़कर
अंदर ही अंदर रोता हूँ
अब बाज़ार से नहीं खरीद पाता हूँ
जीने के लिए थोड़ी - बहुत खुशियाँ
बाज़ार अब ऐसी डाइन हो गयी
जिससे मैं इस कदर डर जाता हूँ
घर से बाहर नहीं निकलता हूँ ।
जब मैं बाजार से घर आता हूँ
झोले को देखकर
माँ मेरी जिंदगी के लिए दुआ करने लगती हैं
माँ अब चूल्हे के पास बहुत अधिक समय नहीं गुजारती
बाजार ने छीन लिया मुझसे वह तमाम खुशियां
जिन्हे देखकर मैं खुश हो जाता था
बाजार से आज तक नहीं खरीद पाया
उसके लिए कोई भी सामान
इसके बावजूद भी वह खुश हैं
की उसके जिंदगी में बाजार का कोई हस्तक्षेप नहीं हैं ॥

तुम्हारा होना अनिवार्य हो जाता हैं

जब तुम साथ में होती हो
मैं भूल जाता हूँ
आसमान में एक पहरेदार ऐसा भी हैं
जिसका मुंह टेड़ा हैं………
जब तुम साथ में
या तुम्हारी यादे साथ में होती हैं
तब नहीं दिखाई देता हैं
मुझे बगल से कौन छूकर गुजर गया
हमें कुछ अगर दिखाई देता हैं
एक दूसरे का स्पर्श और एक दूसरे का एकांत ।
जब तुम साथ में होती हो
नहीं दिखाई देता हैं अंगुली का दर्द जो हथोड़े से लगी थी
जब तुम साथ में होती हो
नहीं दिखाई देता हैं मुझे वह चेहरा
जिनसे मैं कर्ज लेकर भागे फिर रहा हूँ
जब तुम साथ में हो जाती हो तो
नहीं आती हैं शर्म
मेरी कमीज़ गन्दी हैं या मेरा पेंट खराब हैं !
जब तुम साथ में होती हो तो याद आता हैं
मैं, तुम्हें पाने के लिए
खुदा  से कैसे - कैसे मिन्नते की थी । ।
तुम्हारा होना जरूरी हैं
जैसे फूलो में एक रंग का होना जरूरी होता है।

Saturday 19 April 2014

तुम्हारे नाम का भी एक शहर होना चाहिए

काश ! की इस कायनात में
एक शहर तुम्हारे नाम का भी होता
और मैं पहाड़ियों से उतरता हुआ
मस्जिद से आती नमाज़ की आवाज में
खोजता तुम्हारे आड़े / तिरछे नाम को
और हवा में मुठ्ठी भांजते हुए
सड़क किनारे खेल रहे बच्चो को देखकर
मैं भी हँसते हुए कहता की
यह शहर मेरा हैं ।
लेकिन ! शहर के नाम रखने वाले उस्ताद नहीं रखे किसी भी शहर या गाँव का नाम
तुम्हारे नाम पर
तुम्हारा स्पर्श ! मुझे पत्थरों के बीच होता हैं
तुम्हें शायद पता था
नहीं रखा जायेगा मेरे & तेरे नाम का कोई भी शहर
इसलिए तुम एक पत्थर हो गए और मैं एक रंग ।
और पत्थर भी ऐसा की जहाँ
कायनात सज़दे में कुछ देर के लिए झुक जाता
काश मैं ढूंढ लेता तुम्हारे नाम का कोई मोहल्ला
और बनाता अपना रेन बसेरा
लेकिन अफ़सोस ! तेरे नाम का मिलता हैं मुझे
एक जनरल स्टोर
और एक चाय की दुकान
मैं यह नाम देखकर ही रुक जाता हूँ
और तुम्हारे वजूद को अपनी नमाज़ में भरकर फिर लौट जाता हूँ
पहाड़ियों पर 
अगर मैं शंहशाह बनता हूँ कभी
तो पहले बनाऊंगा तुम्हारे नाम का एक शहर । ।


Friday 18 April 2014

मैं तुम्हारे बारे में सोचते हुए मरता हूँ

मैं जब कभी तुम्हारे बारे में सोचता हूँ
थोड़ी देर गुदगुदी होती हैं
और शर्म के साथ एक हंसी आती हैं
और मैं फूल की तरह एक रंग में ढलकर
अपने अंदर कुछ देर तक साँस भरता हूँ तुम्हारे नाम का
और कुछ देर के लिए सागर बन जाता हूँ ।
मैं अँधेरे में बैठकर
तुम्हारा एक चित्र बनाता हूँ
और तुम्हारे बारे में कुछ सोचता हूँ
एक दिन रिपोर्ट आएगी
मैं तुम्हारे बारे में सोचता हुआ
मर गया
किसी के बारे में सोचते हुए मरना
जीवन का एक अध्याय सरीखे होता हैं । ।

Thursday 17 April 2014

मैं भूल चूका हूँ जरूरी शिष्टाचार

मैं भूल जाता हूँ
जरूरी शिष्टाचार
अब मैं नहीं बोल पाता हूँ
अपने पांवो / चप्पलो को
धन्यवाद !
जो मेरे सुरक्षा में
अक्सर घायल हो जाते हैं
और उफ़ तक नहीं करते ।
मैं इस कदर अपनी उस्तादी में खो गया हूँ
अपने पैंट / शर्ट को भी नहीं बोल पाता हूँ
धन्यवाद !
जिसके चलते लोगो में मेरी पहचान बनी रहती हैं
मैं इस कदर आलसी हो गया हूँ
अपने दिमाग को भी धन्यवाद कहना छोड़ दिया हूँ
जिसके आसरे रह कर मैं दो जून की रोटी पाता हूँ
और अपने प्यार पर एक विश्वास का एक गहरा रंग चढ़ाता हूँ ।
मैं नहीं बोल पाता हूँ
अपनी कलाई की घड़ी को धन्यवाद
जो समय के साथ मुझे चलना सिखाई
मैं नहीं बोल पाता हूँ
धन्यवाद !
अपने टेबल पर रखी हुई पेन को
जो मेरे इशारे पर नाचने के लिए तैयार रहती हैं
मैं नहीं बोल पाता हूँ
धन्यवाद कमरे में लगे हुए बल्ब को या कमरे में रखे हुए झाड़ू को
जिससे मैं अपना अँधेरा साफ करता हूँ ।

Wednesday 16 April 2014

अब मुझे खबर नहीं रहती

अब मुझे खबर नहीं रहती
मेरे पड़ोस में कौन रह रहा हैं
मुझे अपने कमरे से आदमी कम
कपड़े / कूलर और एसी ज्यादा दिखाई देता हैं
ऐसे मैं मुझे यकीन नहीं होता कि मेरे देश की जनसंख्या कैसे अरबो तक पहुँच गई ।
अब मुझे जानकारी नहीं रहती की मेरे पड़ोस की कौन सी लड़की को बाजार में छेड़ा गया था
अब मैं नहीं जान पाता हूँ
मेरे आस -पास रहने वाले बच्चे कहाँ विलुप्त हो गए
अब मैं केवल इतना जानता हूँ
सुबह उठकर मुझे दफ्तर भागना हैं
और शाम की थकान अपनी जुबां के साथ बांटना हैं
अब मैं केवल इतना जानता हूँ की कौन सी सड़क पकड़कर मैं दफ्तर आराम से जा सकता हूँ
अब मैं जानता हूँ
मेरे शरीर में कोई बीमारी नहीं हैं
लेकिन मंहगाई नामक बीमारी से जकड़ा जरूर हूँ
अब मुझे खबर नहीं रहती हैं की कौन सा शहर जल रहा हैं
और कौन मर रहा हैं ।

Tuesday 15 April 2014

अब मैं कुछ भी नहीं सोच पाता हूँ

अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
अपने मोहल्ले के सबसे ईमानदार आदमी के बारे में
किसी भी शख्स को रोते हुए देखकर अब
मैं कुछ भी नहीं सोच पाता हूँ.……
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
कि  कल सूरज उगेगा की नहीं
अगर उगेगा भी तो कैसा लगेगा
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
की बिना मौसम के बारिश होने से किसी को तक़लीफ़ होती हैं की नहीं
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
गरीब आदमी के प्यार के बारे में
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
देश आगे बढ़ेगा तभी तो हमारा कुनबा आगे बढ़ेगा
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
शहर में हजारों भिखारी कैसे सोते होंगे
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ अपने गाँव के सुख्खू के बारे में
जो बच्चो को सपना बुनना सिखाते थे ।
अब मैं नहीं सोच पाता एक बच्चा कैसे अकेले अपनी तक़दीर बनाता हैं
अब मैं नहीं सोच पाता सिगरा पर अब लवंगलत्ता कैसा बनता होगा
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
मेरी प्रेयसी मुझसे कितना प्यार करती हैं ।
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
जब मेरे सपनों की हत्या हुई थी तब मैं कैसे चिल्लाकर रोया था
अब मैं नहीं सोच पाता
अपनी गली की सबसे सुन्दर लड़की के बारे में
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ की
लड़कियां घर छोड़कर क्या भाग रही हैं ।
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
अपने पड़ोसी के बारे में
जो अपनों को ही बेवकूफ बनाता हैं
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ
मेरे मोहल्ले का कौन सा लड़का छोटी जाति की लड़की से शादी किया था
अब मैं नहीं सोच पाता हूँ अपने दोस्त के बारे में जिसने कभी स्कूल का मुंह नहीं देख पाया
अब मैं नहीं सोच पाता जिला अस्पताल किसी जेल के सरीखे जैसे क्यों हैं
अब मैं कुछ भी नहीं सोच पाता हूँ
क्योकि रात में मेरे कानो में
जारा की आवाज गूंजती हैं
जो बनारस में दिन रात मेरे लिए और अपने लिए आतताई से लड़ रही हैं
वह रात भर मेरे कानो में चिल्लाती हैं
और कहती हैं तुम देश का संविधान पकड़कर बैठो
मैं तो आतताई से लड़ती रहूंगी ।
अब मैं कुछ भी नहीं सोच पाता हूँ
क्योकि मेरा सपना च्रकव्यूह में चारो और से अब घिर चूका हैं । ।

Monday 14 April 2014

अँधेरे ने मुझसे छीन लिया मेरा वजूद

अँधेरे  में
बहुत देर - तक संघर्ष करने के बाद
अपनी माँ के चेहरे को  पाता हूँ
वह भी एक उदास चेहरा !
मैंने कभी माँ को उदास होते हुए ऐसे नहीं देखा था
लेकिन ! अँधेरे के पास जो माँ का चेहरा था
माँ ! अपने चेहरे में ऐसे उदास लग रही थी
जैसे - उसने वर्षों से कभी खाना न खाया हो
सिर्फ ! मेरे बारे में सोच कर अँधेरे में कहीं खो गई हो
तभी मैं सोचता हूँ
आदमी अँधेरे से इतना क्यों डरता हैं ?
अँधेरा ! आदमी से सब कुछ छीन लेता हैं
और आदमी एक दिन इतना ख़ाली हो जाता हैं
अँधेरे के सामने खुद को नंगा पाता हैं ।
अन्धेरें ने मुझसे छीन लिया मेरी सारी स्मृतियाँ
जो मेरे दिमाग की एक रोशनी थी
आज ! मैं अँधेरे के सामने बहुत देर -तक चिल्लाकर रोता हूँ
और अँधेरे से कहता हूँ दे - दे
मुझे वे सारे सपने
जिनके साथ मैं खेलते हुए बड़ा हुआ हूँ
आज हम भूल चुके हैं अपने साथ जिए हुए तमाम चेहरे
हमें अँधेरे का करना होगा उत्खनन
और तभी हम पाएंगे अपना चेहरा
और तभी हम लिखेंगे उम्मीद की एक कविता
और प्यार की एक कहानी ।

Saturday 12 April 2014

औरते आतताई को रात भर गलियां देती हैं

बनारस में आतताई के आने से
औरते रात भर गालियां देती हैं
डर के रंग में खुद को रंगी हुई अपने बच्चों के लिए
लगातार दुवाएं कर रही हैं ……
प्रेमिकाओं ने तय कर लिया हैं
अबकी बार वो वोट नहीं करेगी
आतताई ने आकर लूट लिया हैं
बनारस की फिजाओं की महकती खुशबू  को
गंगा भी अब अपवित्र हो चुकी हैं
मंदिरो / मस्जिदो से अब नहीं आती हैं कोई आवाज
बच्चे डर के मारे अँधेरे में बना रहे हैं अँगुलियों से खिलौने
सदियों से बोलता हुआ बनारस शहर आज खामोश हैं
और बनारस की ख़ामोशी बयां करती हैं कि
हिंदुस्तान का भविष्य अब खतरे में हैं
लेकिन ! इन सबके बीच सबसे बड़ी बात यह हैं की
बनारसी आतताई का चेहरा भी नहीं पहचानते
लेकिन आतताई के विचारो को बहुत पहले वे नंगा देख चुके हैं ।

Friday 11 April 2014

बनारस के लोगो से क्या गुनाह हो गया था

बनारस के लोगो से क्या गुनाह हो गया था ?
क्या यही की वो सुबह उठकर
सूर्य की रोशनी और गंगा की लहरो पर
अपनी दीवानगी भरा हस्तक्षेप करते थे
या सुबह उठकर पूरी दुनियां का कुशल क्षेम जानने के लिए
अपने घरो से उठकर मिलो तक का सफर कर लेते थे
या अपना गुरु वो किसी को नहीं मानते थे
आखिरकार ! बनारस वासियों ने ऐसा क्या कर दिया
पुरे बनारस को सजा देने के लिए एक आतताई को भेज दिया
जिसका नाम भर सुनकर बच्चा पेंट में मूत देता हैं
क्या बनारसी ज्यादा पान में जर्दा खाने लगे थे
या बिना भांग खाए वो अपनी प्रेमिकाओं से मिलने नहीं जाते थे
या दूध -दही खाकर सबसे अधिक देश में स्वस्थ होने का दावा करते थे
या देह पर कपड़ा न होने के गुमान में
कबीरा गाकर अपना पेट भर लेते थे
या अपने से मस्त वो किसी को नहीं समझते थे
बनारस में आतताई को क्यों भेजा गया ?
जारा के ऐसे हजारो सवाल हैं मुझसे जिसका जबाब मैं दे नहीं पाता हूँ
जारा अक्सर मुझसे कहती हैं
तुम आतताई को क्यों नहीं भगा देतो हो बनारस से
मैं उससे बस यही कहता हूँ की मैं क्या
अब देश का कोई भी माई का लाल उसे यहाँ से नहीं भगा सकता हैं
क्योकि देश का संविधान से लेकर और नागरिक सब कायर हो गए हैं
मैं अब रात भर जागता हूँ
बनारस को टूटते हुए देखकर

आतताई के आने की संभावना से बनारस खत्म हो रहा हैं

बनारस में आतताई के आने की खबर से
हर माँ की आँखे नम सी हो गई हैं
बच्चो को कलेजे में समेटकर रात भर करवटे बदल रही हैं
आतताई के आने की संभावना से
साँप / बिच्छु / छंछुन्दर अपने बिलो से बाहर आना बंद कर चुके हैं
पंक्षियों ने पेड़ो पर घोसला बनाना छोड़ दिया हैं
हिंदू लड़कियां बंद कर दी हैं
मुसलमान लड़को को खत लिखना
और हिन्दू लड़के भी नहीं लिख रहे हैं
मुसलमान लड़कियों को खत………
आतताई के आने की खबर से बिगड़ गया हैं
बनारस का हाथी जैसा मस्त चाल
बनारस जलने की और ख़त्म होने की उम्मीद में मरघट पर सियारो की तरह ऊंघ रहा हैं भर
अब - तक लोग यही जानते थे
देवताओं की अवतार होता हैं
लेकिन हमारी सभ्यता में यह पहली बार होने जा रहा हैं
की एक आतताई आकर लोगो की नींदों में जगाते हुए मार रहा हैं........
उसके आने मात्र की सूचना से
बनारस की वैश्याएँ अपना कारोबार समेटकर दूर किसी और शहर की और कुच कर रही हैं
सब्जी वाले / आटों वाले / चाय वाले
सब भागकर कहीं और चले गए हैं
आतताई के आने से लोगो को यही लग रहा हैं
बनारस के लोगो के सीने पर चढ़कर जब तक होली नहीं खेली जाएगी
तब -तक आतताई लाल किले पर नहीं चढ़ पायेगा
बनारस भूल चूका हैं की कभी यहाँ कबीर भी हुआ करते थे
बनारस जानता हैं की आतताई को अपने आगे किसी की बात नहीं जमती
हमें अपने कंधे मजबूत करना चाहिए
क्योकि इस बार हम अपने कंधे पर आदमी का शव लेकर नहीं
घूमेंगे बल्कि शिव का शव हमारे कंधो पर होगा
क्योकि बनारस का हर आदमी या तो शिव हैं या अल्लाह ।

Thursday 10 April 2014

मेरा गाँव असभ्य होने की राह पर चल पड़ा हैं

मेरे गाँव के बच्चे धीरे -धीरे असभ्य हो रहे हैं
बच्चे अब नहीं चुराते हैं तपसी के बगीचो का आम
बच्चो को अब नहीं मालूम रहता हैं
दूसरी गलियों में रहने वाले बच्चो का नाम

बच्चे अब नहीं भागते हैं
रात में घरो से...
बच्चे अब नहीं लूटते पतंग
बच्चे गालिया देना तक भूल चुके हैं
बच्चे अब नहीं दौड़ते बिल्लियों / चूहो के पीछे -पीछे
बच्चो को अब नहीं मालूम हैं की
सुग्गा का बच्चा भी राम का मतलब कभी समझता था
कोई कहता हैं
गाँव अब सभ्य होने की राह पर कदम रख दिया हैं
जबकि मैं दावे के साथ कहता हूँ
यह मेरे गाँव की हत्या करने की एक साजिश बुनी जा रही हैं
बच्चे गाँव के सबसे अनमोल जेवर होते हैं
ऐसे में उनकी ख़ामोशी किसी बड़े तबाही की सूचक हैं । ।

Wednesday 9 April 2014

आतताई आ रहा हैं लूटने के लिए लोगों का नींद

उसके आने की खबर से
देश के सारे योद्धा या तो हिन्दू हो गए हैं
या नर्त्तकीयो  की आरती उतार  रहे हैं
इस बार वह आएगा और
शिव की तपस्या को भी भंग करेगा
इसलिए देश के सारे पंडित बन गए हैं
फिरसे एक बार तुलसीदास। ।
उसके आने की भनक से
सारे बुद्धिजीवी कायरों की तरह
सांपों के बिलो में घुसे पड़े हुए हैं
और जो लोग सामने आने की हसरत रखते थे
उन्हें अपाहिज बना दिया गया या देशद्रोही
और जो युवा हैं
सो रहे हैं अपनी माशूका के साथ कुंभकरण की नींद में
ऐसे में इस दुनिया में क्या बचा रह गया हैं अब
हिन्दू भाइयो ! जो चाहो वह करो दुनिया का बलात्कार करो या दुनिया को सजाओं
या बनारस को अयोध्या बनाओ
जाओ करो अपनी मनमानी
मिट जायेगा बनारस अब दुनिया के नक़्शे से
लेकिन ! याद रखना मत लूटना किसी का बचपन
मत लूटना किसी का प्रेम पत्र ।


Sunday 6 April 2014

सबसे खूबसूरत लड़की कहीं खो गई है

मेरे गांव की सबसे खूबसूरत लड़की
जो एक पक्के घर में जवान हो रही थी
उसने अपने लिए अपने पक्के घर की तरह
कई पक्के सपने बुन रही थी
खूबसूरत लड़की
अपनी हर अभिव्यक्ति
कभी अपने सपने तो कभी अपनी हँसी में छुपाकर
अभी -अभी जीना सीख  रही थी
वह भी ऐसे समय में.. .
जब देश में संविधान संशोधन के सारे काम बंद हो गए थे
लड़की के बदन से महकते हुए सपने
से पूरा गाँव पागल होने की राह पर निकल पड़ा था
गाँव वाले अपनी अभिव्यक्ति की चमक कुछ तेज करने के लिए खूबसूरत लड़की का नाम ;आवारा ' रख दिया
गाँव के ही कुछ और सभ्य लोग लड़की को माल कहना शुरू कर दिया
जितने मुंह लड़की के उतने नाम
कहते हैं आज भी लोग उससे ज्यादा नाम आज तक किसी को नहीं मिला हैं ।

लड़की को नहीं मालूम था
उसकी उपस्थिति सिर्फ उसके घर तक ही नहीं रह गई थी
बल्कि लड़की अक्सर पायी जाती  सभी के सपनो में
लड़की की याद में कई लोग गीत गाना सीख चुके थे
कई लोग सीगरेट पीना शुरू कर दिए
कई लोगों को रात में भी देखना शुरू कर दिए
कई लोग तो चोर तक बन गए
और चुराने लगे लड़की के एक -एक कपडे
कई लोग सभ्यता की मूर्ति ओढ़कर जवानी बचाने का अनोखा नुस्खा खोजने में लग गए
मसलन खूबसूरत लड़की जैसे - जैसे जवान हो रही थी
वैसे -वैसे लोग अपना कारोबार भी बढ़ाने में लगे हुए थे ।
कभी - कभी यह चर्चा जब लड़की के कानो तक पहुंचती तो वह बहुत खुश होती
और आकाश से कहती मेरे ही बहाने
कम से कम गाँव वाले खुश तो रहते हैं ।
खूबसूरत लड़की को पाने के लिए
पंडितो ने अपनी पंडिताई छोड़ दी
मुल्लाओं ने मुल्लाई  तक छोड़ दी
पंडित / मुल्ला / बुजुर्ग / बच्चे देर रात तक अपने बिस्तर पर जागने लगे
और सभी यही दावा करते की
वह लड़की के सबसे ज्यादा करीब आ चुके हैं

खूबसूरत लड़की के बदन की गंध शराब की तरह महकने लगी
तब लोगों की दिलचस्पी पत्नियों में कम होने लगी
औरते खूबसूरत लड़की को डायन कहना शुरू कर दी
गाँव के सारे बुजुर्ग इस बात से सबसे अधिक खुश थे
खूबसूरत लड़की कहीं और की नहीं बल्कि उन्हीं के गांव की हैं
गांव की अन्य लड़कियां खुश थी
क्योकि अब वो डरना छोड़ दी थी
क्योकि अब उनकी और कोई नहीं देखता था
एक दिन वह भी आया जब
खूबसूरत लड़की एक वोट बन गई
ऐसे में लड़की का कोई काम नहीं रुकता था
ऐसे में लड़की को लगता था की दुनियां बहुत सभ्य हैं
लड़की को नहीं खड़ा होना पड़ता था
बस में या ट्रेन में
उसे सभी स्कूल में दाखिला मिल जाता था
जहाँ पढ़ने के लिए लोग सपना देखते थे
शहर हो या गांव सभी जगह उसे कम दाम में अच्छा सामान मिल जाता था
ऐसे में खूबसूरत लड़की को अपराधबोध नहीं होता था लड़की होने पर
खूबसूरत लड़की जब बीमार होती
शहर का सबसे अच्छा डॉक्टर अपनी सबसे अच्छी दवाई देकर चला जाता था
लड़की स्कूल नहीं भी आती थी
उसके बावजूद भी हाजिरी लगी रहती थी
जैसे ही देश में चुनाव आया
और जो अपना उम्मीदवार था वह अपनी पार्टी का प्रधानमंत्री का दावेदार था
यह अलग बात थी कि वह इस क्षेत्र का निवासी नहीं था
लेकिन यहाँ के लोग उसे अवतारी पुरुष बताते थे
और लोग कहते थे जैसे राम ने अयोध्या में अवतार लिए
ठीक उसी तरह उनका उम्मीदवार भी अवतार लेकर यहाँ आया हुआ हैं
प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार से लड़की
मन्त्र सुनकर राजनीति में थोड़ी बहुत दिलचस्पी लेने लगी
कुछ दिन बाद एक खबर आई कि
लड़की ने जिस प्रत्याशी को अपना वोट दिया हैं
वह देश का प्रधानमंत्री बनने जा रहा हैं ।
प्रधानमन्त्री को भी ख़ुशी हुई
यह जानकर की खूबसूरत लड़की ने उन्हें वोट किया हैं
ऐसे में वे फरमान जारी किये
कि खूबसूरत लड़की को दिल्ली बुलाया जाये
प्रधानमंत्री जैसे ही दिल्ली में लड़की से मिले
उन्होंने लड़की के सामने कई प्रस्ताव रखे
वह चाहे तो पार्टी में आ जाये
उसके लिए वह सब कुछ करने को तैयार हैं
जिससे लड़की का नाम अमर हो जाये ।
लेकिन ! लड़की सारे प्रस्ताव को दिल्ली में छोड़कर गाँव चली आई
और अपने डायरी में एक जगह लिखी
यह दुनियां भेड़ियों से भी ज्यादा गंदी हैं
और इस देश के प्रधानमंत्री का दिमाग टमाटर से भी ज्यादा लाल हैं
और ऐसे में इस देश में रहना कायरता हैं ।
उसके बाद खूबसूरत लड़की कहाँ गई
किसी को भी नहीं पता चल पाया
कोई यह भी नहीं कहता कि वह मर गई ।
लेकिन गाँव वाले आज भी दबी जुबान में कहते हैं
खूबसूरत लड़की कहीं नहीं गायब हुई
बल्कि प्रधानमंत्री ने उसका अपरहण करवा कर अपने साथ रखता हैं
इसीलिए हमारे देश का प्रधानमंत्री कभी बुढ्ढा नहीं हुआ
और हर बार प्रधानमंत्री बंनने का दावा करता हैं ।

Wednesday 2 April 2014

मैं भूल रहा हूँ

मैं अँधेरे से ऊब  चुका हूँ
मैं भूल चुका  हूँ
हरेक आदमी के दूसरे नाम को
मैं भूल रहा हूँ
अपने साहस को
मैं पहली बार अपने साहस का परिचय
चोरी करने में दिया था
या किसी लड़की को चिट्ठी थमाते वक्त ।
मैं भूल रहा हूँ
उन तमाम चेहरों को जिनसे
मैंने किस्सा कहने का ढंग सीखा था
मैं भूल गया हूँ
जिसे मैंने पहली बार गाली दी थी
मैं भूल रहा हूँ
मुझे बाबूजी अधिक मारा करते थे या माँ
मैं धीरे - धीरे भूल चुका हूँ अपने दोस्तों के घर के पते ।

खुन्नू बाबू का दिमाग जाग गया हैं

कहते हैं  जब सारी  दुनियां सो रही थी
तब मेरे गाँव के खुन्नू बाबू
अपने बाहर / भीतर जागने  का अभ्यास कर रहे थे
उनकी इस कला को देखकर
कुत्ते भी सोना छोड़ दिए
और तभी से लोग कहते हैं कि
कुत्ते भी उसी समय से गांव में रात  को भोंकना शुरू कर दिए
और आज -तक भोंकते आ रहे हैं ।
जब सारी  दुनिया सोती थी
तब खुन्नू बाबू  सपने की जाल  बिछाकर
दावा  करते थे की वे बहुत ही होशियार हैं
इसी क्रम में वे कभी - कभी अपनी आंत निकालकर धो लिया करते थे
एक दिन खुन्नू बाबू
जब पूरा गांव किसी ऊब में डूबा हुआ था
तब खुन्नू बाबू मौके का फायदा उठाते हुए अपना दिमाग भी ठन्डे पानी से धो दिए
उसी दिन से उनके दिमाग की तुलना
लोग - बाग  पीपल के पत्ते से करने लगे ।

गनीमत हैं की हमारे यहाँ लोकतंत्र हैं
नहीं तो खुन्नू बाबू  किसी राजा के सलाहकार होते
लेकिन ! खुन्नू बाबू अपनी टूटती हुई हवेली को देखकर
अपने  भीतर स्वीकार कर लेते हैं कि
क्या हुआ आज उनकी कोई पूछ नहीं हैं
लेकिन किसी ज़माने में उनके पूर्वजो की  तो पूछ थी

खुन्नू बाबू का दिमाग इतना तेज था कि
कब्रिस्तान में सोये हुए मुर्दे भी घबराते थे
खुन्नू बाबू कई बार सोये हुए मुर्दो को जगाकर उन्हें दूसरी जगह भी शिफ्ट कराए  थे
उनके  दिमाग की  देन हैं कि
कचहरी में वकीलो का कारोबार इस बीच काफी तेजी से चल रहा हैं ।

खुन्नू बाबू  ने एक नया प्रयोग किया
एक कपड़े  को वे तीन  दिन सीधा पहनते हैं और तीन- दिन  उल्टा
और अब अपनी आत्मा को वे सीधा और उल्टा करने में लगे  हुए हैं
उनका  मानना  हैं कि अगर वे इस कला में माहिर हो गए तो वे एक दिन राजा जरूर बन जायेंगे ।
गांव के लोग परेशान हैं
अगर खुन्नू बाबू अपने प्रयोग में सफल हो गए तो
गांव के सारे मुर्दे अपना घर छोड़कर भाग जायेंगे । ।

Friday 28 March 2014

एक खूबसूरत लड़की

मेरे गाँव  की  सबसे खूबसूरत लड़की
जो पढ़ी - लिखी नहीं थी
पर उसके किस्से बहुत दूर -दूर तक सुनाई देते थे
गाँव  के लड़को  और मर्दो के लिए वह एक पहेली सी थी
सारे लड़को और मर्दो के पास जब समय होता था
तब उसी के बारे में तमाम कहानियां बुनते रहते थे
मैं गाँव  जितनी  बार गया
हर बार लड़की से जुड़ा हुआ एक नया किस्सा सुनने को मिलता
हर व्यक्ति खूबसूरत लड़की के बारे में ऐसी बात करते थे
जैसे उनके पास कोई और समाचार न रह गया हो ।

गाँव  के सारे पुरुष रात को इस उम्मीद से सोते थे कि
उसे सपने में वे जरूर देख लेंगे

खूबसूरत लड़की को कभी - कभी अपनी खूबसूरती से नफ़रत होने लगती थी
क्योकि वह घर से कभी अकेले बाहर  नहीं निकल पाती थी
वह सोचती रहती थी
आत्महत्या के बारे में
खूबसूरत लड़की  नहीं जान  पाती  गांव की रोज की बातो को
उसके पास जो भी  आती थी वह बहुत पुरानी  होती थी
एक दिन खूबसूरत लड़की
एक खूबसूरत लड़के के साथ भाग गई
धीरे -धीरे लोग उसे भूल गए
पर अभी भी लोग जब अपनी बीबियों और लड़कियों को गालियां देते थे
तब खूबसूरत लड़की का नाम जरूर लेते थे
गांव की सारी लड़कियां यह जरूर कहती थी कि
खूबसूरत लड़की कभी कायर नहीं रही
आज सारी  लड़कियां खूबसूरत लड़की को अपना हीरोइन ही मानती थी
एक दिन अख़बार में खबर आई की
खूबसूरत लड़की विधायक बन गई
फिर गांव के सारे पुरुष उसकी
खूबसूरती पर गालियां देने लगे
एक दिन खूबसूरत लड़की से मेरी मुलाकात हुई
खूबसूरत लड़की ने बताया की
औरत कुछ भी कर के दिखा दे
पर पुरुष हमेशा उसकी देह को लेकर एक नई गाली देता हैं । ।

Monday 10 March 2014

मैं अपनी माँ का सिकंदर नहीं हूँ

यदि कभी.. .
मैं  बाबूजी के साए को
छूकर घर से निकलता
मैं दुबारा घर पर सिकंदर की तरह वापस आता
लेकिन ! मेरी यह खुशनसीबी हैं
मैं घर छोड़ने से पहले
अपनी माँ के साए को छूकर निकलता हूँ
माँ यह सोचकर खुश होती हैं
उसका बेटा लाख कायर हो
पर सिकंदर कि तरह घर पर कभी वापस नहीं आएगा ।

हाँ ! मैं सिकंदर नहीं हूँ.. . .
जो घर छोड़ने से पहले यह वादा करूँ कि
एक दिन सारी दुनियां मेरी मुट्ठी में होगी
और जो दुनियां और जो हवा और जो बारिश
 मुझे वर्षों से अपनी मुट्ठी में रखकर पालती आई
उसे ही सिकंदर बनकर छोड़ दूँ
क्या मेरे सिकंदर बन जाने से
यह दुनियां मुझे अपना लेती ?
हाँ ! मैं सिकंदर नहीं हूँ
जो मरने से पहले
अपनी स्मृतियों का कायदे से कफ़न भी न पहन सकूँ ।

इसलिए मैं घर से निकलने से पहले
अपनों को पुनः पाने के लिए
यही कहते हुए निकलता हूँ
कि हाँ ! मैं सिकंदर नहीं हूँ
मेरे मुंह से यह वाक्य सुनकर
माँ की हड्डियां फिरसे एक बार जीवित हो जाती हैं
और वह उम्र के आगे की एक दहलीज पर खड़ी होकर
आँखों से ऐसे हंसती हैं
जैसे उसकी आँखे कभी रोयी न हो ।
मैं दुनियां के किसी भी कोने से चाँद को देखता हूँ
माँ को चाँद के बीचोबीच ही सूत काटते हुए पाता हूँ
और जब कभी कोई रंग मुझे अपनी और घेरता हैं
माँ की साड़ियों के रंग याद आने लगते हैं
और जब भी मैं कोई खेत में फसल देखता हूँ
तो याद आता हैं
मेरे खेत में एक कछुए का दिन भर आराम से सोना
मैं सोचता हूँ
काश ! सिकंदर के पास भी ऐसी कुछ स्मृतियाँ होती तो
तो उसकी माँ भी हंसती हुई मौत के पार  जाती । ।
नीतीश मिश्र

Saturday 8 March 2014

यमराज भी माँ के साथ एक बेटे की तरह रहता हैं

यमराज भी माँ के साथ
एक बेटे की तरह रहता हैं.…
जबकि माँ को मालूम हैं
उसके साथ एक ऐसा सांप हैं
जो कभी भी फुँफकार सकता हैं.....
इसके बावजूद भी
माँ कनई में से जीवन को छानकर
सदियों से धूप की अरगनी पर
छोटी --छोटी तमाम खुशियों को
सुखा  रही हैं ।
उसकी जरा -जरा सी बात पर
यमराज उसके साये मैं बैठकर कभी हँसता हैं तो कभी रोता हैं
यह सोचकर कि कहीं वह अपने उद्देश्य में असफल न हो जाए
माँ कभी हवा को तो कभी बारिश को मनाती हुई कुछ देर के लिए
बटोरने लगती हैं अपने बच्चों कि खातिर वह तमाम खुशियां
जिसे एक आदमी कभी भी नहीं दे सकता
शायद ! उसकी इसी कला पर यमराज कुछ ऐसे रिझ गया हैं
कि वह भी माँ को माँ कहना शुरू कर दिया । ।
नीतीश  मिश्र

Friday 7 March 2014

सुबह की
यह सोचकर उदास हैं
उसका क्षण भर का प्यार
और क्षण भर का जीवन
धूप की फा में दहन हो जायेगा
और उसे कभी याद नहीं आएगी
कि उसने भी कभी प्रेम किया था |
नीतीश मिश्र

Sunday 2 March 2014

एक माँ खूबसूरत इसलिए होती हैं

एक माँ खूबसूरत इसलिए होती हैं
क्योकि  वह अपने मरने पर
अपने बच्चो के आसूओं को लेकर
अपने साथ लेकर चली जाती हैं ।
माँ अपने होने का साक्ष्य
बांसुरी की तरह सदैव देती रहती हैं
एक माँ का जिंदगी के बज्म से उठना
यही लगता हैं कि किसी ने
आसमान से चाँद को चुरा लिया हैं ।
और बच्चे अपने नंगे चेहरे पर अँधेरे को पहनकर
छेड़ दिए हैं अँधेरे के खिलाफ एक जेहाद
आने वाले इतिहास में दर्ज होगा अब
बच्चो द्वारा छेड़ा गया एक जेहाद ।

नीतीश  मिश्र

एक माँ खूबसूरत होती हैं

एक माँ  बहुत खूबसूरत इसलिए होती हैं
वह अपने मरने पर
अपनेक्योंकि बच्चों के आसूंओ को लेकर
अपने साथ लेकर चली जाती हैं।
एक माँ अपने सुर को
बच्चों की आत्मा की बांसुरी में भरकर
अपने होने का सदैव प्रमाण देती रहती हैं

लेकिन ! जिंदगी के बज्म से माँ का उठना
यही अहसास कराता हैं
आसमान से किसी ने सरेआम चाँद को चुरा लिया हैं
और बच्चे अपने नंगे चेहरे पर
अँधेरे को पहनकर
छेड़ दिए हैं एक जेहाद अँधेरे के
लेकिन ! यह जेहाद
इतिहास के फैसलो में कहीं भी दर्ज नहीं होने वाला हैं
क्योकि हमारा इतिहास
राजाओं के हरम से आगे की बात नहीं करना चाहता हैं । ।

नीतीश  मिश्र

Monday 17 February 2014

एक लड़की की चिट्ठी -7

कामरेड !
मैं तुम्हारे साथ रहते हुए सीखी थी
पेड़ो पर चढ़ना
और फल तोड़ना
मैं सीख ली
हँसुए से आसमान में छुपे हुए सपनों को हांसिल करना
मैं पहनना सीखी जींस के ऊपर कुर्ता
और पांव में टायर का चप्पल
इतना कुछ तुमसे सीखने के बाद माँ बहुत खुश थी
लेकिन बाबूजी कहते थे इसे घर से बाहर निकाल दो
नहीं तो कूल का नाश करेगी एक दिन
कामरेड !
मैं घर छोड़कर अपनी आँखों में बसी दूनिया को पाने के लिए
आ गई तुम्हारे शहर इलाहाबाद में
तब मुझे लगा कि
यहाँ गंगा और यमुना के संगम के अलावा
दो संस्क़ृतियों का भी संगम होता हैं । ।


Sunday 16 February 2014

मैं सपनों को नहीं मार पाया

एक रात ऐसी भी थी
जब हम सपने पहनकर सोते थे
और आज एक ऐसी रात भी हैं
जब हम अपने सपनो को बचाने के
लिए करवट भी नहीं बदल पाते 

यह सोचकर
कि कहीं हमारे करवट बदलने से सपने घायल हो जाएँ
सपने सच नहीं हुए वह् दूसरी बात हैं
पर सबसे जरूरी हैं
अपने सपनो को बचाकर रखना |

अब हम  जागते हुए सपनों को देखना शुरू कर दिए 
अब शायद आपको खबर होगी 
मैं जागते हुए एक दिन 
मर गया 
पर सपनों को नहीं मार पाया । । 
नीतीश मिश्र

Saturday 15 February 2014

एक लड़की कि चिट्ठी -6

कामरेड मैंने तुम्हारे साथ
रहते हुए सीखी थी
सपनो को सच करने के लिए जरूरी हो तो
तो हमें प्रतीकों से भी और परंपराओं से भी लड़ना होगा
कामरेड मैंने
तुम्हारे साथ रहते हुए सीखी थी
तोते का जूठे हुए फल को भी खाना
मैं सीखी थी
देवताओं से बेहतर उस इंसान की इबादत करो
जो तुम्हें सपना देखना सीखा सके
मै सीखी थी तुम्हारे साथ
जिंदगी को बचाने का नुस्खा सबसे बेहतर किताबों में होती हैं
मैं सीखी थी
जिंदगी सबसे ताकतवर भाषा उस समय गढ़ती हैं
जब अपनी जिंदगी अभावों के दरख्तो से गुजरती हैं ।

नीतीश मिश्र

Thursday 13 February 2014

एक लड़की की चिट्ठी




कामरेड : याद  हैं तुम्हें
तुम मुझे पहली बार और पहली रात
कुछ ऐसे छुए थे
जैसे - एक फूल को कोई रंग छूता हैं
जैसे -बारिश ने और हवा ने
अब तक मेरे बदन को छुआ था
तुम्हारे आंच में
मैं कुछ देर के लिए एक भीगी लकड़ी सी हो गई थी ।
और दूसरे पल मेरे बदन से
नदी की सहस्रों धाराएं फूट पड़ी थी
मेरे आगे जो अब दुनिया थी
उसकी हुलिया मेरे सपनों से बहुत -कुछ मिलती जुलती थी
मैं पहली बार तुम्हारे साएं में
लड़की होने के दायित्वबोध से मुक्त हुई थी
जब मैं पहली बार देह और शर्म के गझिन व्याकरण से मुक्त हुई
तब मुझे अहसास हुआ कि
मैं एक रंग हूँ और एक हवा हूँ
और आकाश का एक ऐसा कोना हूँ
जहाँ तुम कुछ देर के लिए
अपने सूरज को मुक्त छोड़ सकते हो । ।

Wednesday 12 February 2014

एक लड़की की चिट्ठी

कामरेड तुम्हें याद  हैं
जब मैं पहली बार
अपने बदन के अंधकार को उतारकर
तुम्हारे होंठ के दीये के नीचे आई थी
उस वक्त मेरे घर की दीवार बारिश से कांप रही थी
और घर के बाहर गेंहुअन पहरा दे रहा था
और आँगन में घूमता हुआ करैत खामोश था
शायद ! वह पीछे से मुझे डसना चाहता था
फिर भी मैं मेंढ़कों की टर्राहट और झींगुरो की ताल का सहारा लेकर
आगे बढ़ रही थी
मैं भूल गई थी
बांसवाड़ में रहने वाली चुरइ न  को
जिससे पूरा गांव डरता था
फिर भी मैं लाल सलाम का महामंत्र जाप करते हुए आई थी तुम्हारे घर
और तुम खा रहे भात  -चोखा
कामरेड तब
तुम मुझे बारिश की चादर ओढ़ाकर लिख रहे थे
अपने सिंद्धांतों का इंद्रधनुष
और मैं मूक थी तुम्हारे साये में दूब की  तरह ॥

नीतीश मिश्र

Tuesday 11 February 2014

एक लड़की कि चिट्ठी --तीन

एक लड़की कि चिट्ठी --तीन
___________________________

कितने शर्म की  बात हैं कामरेड
तुम मेरे देश और समाज में रहकर भी
कभी मेरे नहीं हो पाएं
और मैं तुम्हारी तबसे हूँ
जब तुम मेरी गली से
लाल सलाम कहकर गुजरते थे
तुम्हारे मुंह से लाल सलाम सुनकर
मैं ,बाहर -और भीतर से एक पल के लिए लाल हो जाती थी
मेरा लहू मेरे पसीने से बाहर आकर
मेरे बदन के कहीं कोने में लिखता -रहता था
हर पल तुम्हारा नाम
तुम्हारे स्पर्श की छाया में
मैं जब भी आती थी
मेरे भीतर की लालिमा गुलमोहर की तरह चमकने लगती थी
और तुम्हारे स्पर्श के एक -एक शब्द को
मैं रात भर बैठकर अपने आईने में लिखती रहती थी ।

मैं जब कभी तुम्हारे छाया में आती थी
तुम मूर्तिकार की तरह मुझे खजुराहो से भी ज्यादा सुन्दर बनाते थे
उस वक्त यही लगता था की
मैं एक बांसुरी हूँ
और तुम उसमे सुर हो
यह तो मुझे बहुत बाद में पता चला की
तुम मेरी बांसुरी में अपनी कला का सुर नहीं
बल्कि अपने संघर्षो की छाया खोजते रहते थे ।

कामरेड मैं आज भी वहीँ खड़ी हूँ
जहाँ तुम मुझे छूकर लाल सलाम कहा करते थे
उस जगह मैं रोज खोजती -रहती हूँ अपनी टूटी हुई यादें
क्या कामरेड मैं कभी तुम्हारे सपनो में भी आती हूँ कि  नहीं !

Monday 10 February 2014

एक लड़की की चिट्ठी-1

एक लड़की की चिट्ठी-1
----------------------
कामरेड जब तुम रोटी को रोटी कहते हो तो
तुमसे बहुत प्यार करने को मन करता हैं
कामरेड: जब तुम टूटे हुए अपने सपनो को जोड़ते हो मुझे यही लगता हैं की तुम मेरा साथ कभी नहीं छोडोगे
कामरेड मैं जबसे तुमसे जुड़ी हूँ
मैने सही से अपनी दुनिया को पहचानने का एक नज़रिया पाया हैं
और मैं दावे के साथ कह सकती हूँ
की एक कामरेड से प्यार करके मैने कोई ग़लती नहीं की हैं
लेकिन कामरेड जब मैं तुमसे पूछती हूँ की प्यार क्या होता हैं
मेरे इस प्रश्न को सुनकर तुम वर्षो तक खामोश हो जाते हो
अगर तुम मेरे प्रश्न का उत्तर नही दे पा रहे हो तो तुमसे प्यार करने के नाते मुझे ही इस प्रश्न का उत्तर देना होगा
एक कामरेड के लिए प्यार रिक्त स्थानो की पूर्ति के सिवाय और कुछ नहीं हैं
मुझे माफ़ करना कामरेड
लेकिन मैं अभी भी इंतजार कर रही हूँ
जब क्रांति शायद ख़त्म हो जाए
तब तुम्हें प्यार का माने अगर समझ मे आ जाए तो मेरे शहर मे आ जाना
प्यार का अर्थ जमाने को समझाने के लिए ||

नीतीश मिश्र

एक लड़की की चिट्ठी

एक लड़की की  चिट्ठी
___________________

कामरेड : मैं कितनी अभागिन लड़की हूँ
कामरेड : तुम बाएं हाथ से कब -तक मुझे प्यार करते रोहेगे
जबकि तुम जानते हो
मेरे बदन की सीमा असीमित हैं
और तुम्हारे बाएं हाथ की एक तयशुदा सीमा हैं ।
तुम शायद ! दाहिने हाथ से मुझे एक बार छू लो
मैं तुम्हारे चेहरे की लाल रंग बन जाउंगी
लेकिन ! मैं क्या करूँ
तुम कुरुक्षेत्र के सिर्फ एक भीष्मपितामह हो
जो सिर्फ अपनी शर्तो पर जीना जानते हो
और अपनी शर्तो पर मरना
और तुम्हारे इन्हीं हथियार से कितने बेगुनाह लड़कियां मरती हैं
क्या कभी उन मौतों का पोस्टमार्टम रिपोर्ट
तुम अपने सिंद्धांतों में चस्पा करते हो ।

कामरेड तुम -कब तक
मेरे समाज और देश को
अपने बाएं हाथ और बाएं पैर से नापते रहोगे
जबकि तुमलोग भी आईने के पीछे
मंत्रोच्चार करते हुए पाए गए हो कि
तुम्हारा लाल सिंदूर सिंगुर में ही खो गया हैं
बोलो कामरेड------
मैं तुमसे प्यार करके
न तो घर कि रही और न ही तुम्हारी
क्योकि तुमने मुझे अभी दाहिने हाथ से प्यार नहीं किया
तुम जानते हो कामरेड
मेरा घर गली के दाहिने और ही पड़ता था
और तुम अपने दाहिने पैर से चलकर मेरे घर कभी नहीं आ सकते थे
इसलिए मैंने अपना परम्परागत घर छोड़कर
तुम्हारे पीछे चली आई ॥

नीतीश मिश्र

Tuesday 28 January 2014

मैंने दिशाओं की हत्या की हैं


______________________

जब मेरे पास चेहरा ढकने के लिए
कुछ नहीं था
तब मैं दिशाओं को पहनकर
सृष्टि के हर कोने में पहरा देता था
और अपनी दुनिया और अपनी भाषा से एक संवाद का अटूट रिश्ता बनाया हुआ था
जब कमरे में दीवारे नहीं थी
तब दुनिया बहुत सुन्दर लगती थी
दीवारो के न होने पर दिशाएं कमरे में
मेरे साथ बैठती थी
और सोती थी ।
जब आज कमरे में दीवारे हैं
और दुनिया सिमट गई हैं
आलमारियों में
ऐसे में मुझे लगता हैं की
मैंने अपने आस - पास सभी दिशाओं की एक साथ हत्या करके
अपने कमरे में बैठा हुआ हूँ
अब मुझे दिशाओं की कोई विशेष पहचान नहीं रह गई हैं। .

मैं अब दो दिशाओं को ही
वह भी कुछ देर के लिए ही पहचानता हूँ
एक पूरब और दूसरा पश्चिम को
मैं दीवारो के साथ रहते हुए हत्या कर चुका हूँ दिशाओं का ।

सुबह का सूरज

सुबह का सूरज
________________

सुबह का सूरज मुझे देवता कम
डॉक्टर कुछ ज्यादा लगता हैं
मरीजों के बिस्तर पर बैठकर
त्वचा की नोटबुक पर लिखता रहता हैं ढेर सारी दवाईयां ।

सुबह का सूरज मुझे देवता कम
मास्टर कुछ ज्यादा लगता हैं 
और लोगों की चेहरों की किताबों को खोलकर
उन्हें दिनभर नेक सलाह देता रहता हैं ।
सुबह का सूरज देवता कम
मेहतर कुछ ज्यादा सा लगता हैं
वह भी इतना कुशल मेहतर की एक ही झटके में
घर से लेकर खलियान तक साफ कर देता हैं
सुबह का सूरज देवता कम
धोबी कुछ ज्यादा लगता हैं
और हर आदमी का कपड़ा एक सा धोता हैं

सुबह का सूरज देवता कम
मुझे अपने कमरे की टेबल घड़ी सा लगता हैं
जो दिन भर मेरे लिए एक दिनचर्या बनाता हैं

Monday 20 January 2014

प्यार में हाथ का होना जरूरी हैं
-------------------------------
जब मेरे पास
प्यार और प्रेमिकाएं दोनों थी.....
और दिमाग में बहुतेरे ख्वाब
इतने ख्वाब कि …
अगर सपनों के मामले में
तुलना की जाती तो
सपना देखने वालों के इतिहास में
कहीं मेरे नाम की भी ………
कोई सभ्यता और संस्कृति होती
लेकिन अफ़सोस !
हमारे यहाँ के निकम्मे इतिहासकार
अपने इतिहास में
बिस्तर से लेकर सिंहासन तक की खबर लिख दिये
लेकिन मनुष्यों के सपनों की दुनिया के बारे कुछ नहीं लिख पाये।

जब मेरे पास प्यार और प्रेमिकाएं दोनों थी
तब मेरी पतंग आकाश में न उड़कर
जमीन पर उड़ती थी ……
जब प्रेमिकाएं बहुत पास में होती थी
तब मैं पूरी तरह से नास्तिक हो जाता था
और मुझे मुक्तिबोध के ब्रह्मराक्षस से भी नहीं डर लगता था
और न ही अज्ञेय का केशकम्बली रहस्यमयी लगता था
जब प्रेमिकाएं मुझे अपने प्यार के रंग से रंगती थी
तब मेरे पास बुद्ध या महात्मा गांधी बनने ख्याल भी नहीं आता था
और न ही कोई दुःख सालते थे
जबकि दुःखो कि मेरे पास कोई कमी नही थी।

जब प्यार और प्रेमिकाएं दोनों पास में थी
तब किसानी भी बढ़िया से हो जाती थी
और सिर्फ मछली ---भात खाकर
ऐसा लगता था की मैं ही वह आदिपुरुष हूँ
जो कैलाश पर्वत छोड़कर
फिरसे एक नई सभ्यता यहाँ लिखने आया हूँ।
जब प्यार और प्रेमिकाएं दोनों पास में थी
तब अपना टुटा हुआ घर भी
किसी किले कम नहीं लगता था
तब मैं अपने पूर्वजों से संवाद करते हुए कहता था
मैं तुम्हें ऐसा पिंडदान दूंगा
कि तुम श्मशान और प्रेतलोक से बाहर आकर
शहर की कोई मुख्यधारा बन जाओगे।

लेकिन जैसे ही प्रेमिकाओं का जिंदगी से जाना हुआ
शरीर से अकेलेपन के मवाद रिसकर बाहर आने लगे
तब अपनी ही जिंदगी मुझे किसी कि उधार दी हुई कमीज के सलीके सी लगती
जिसे पहनना मेरी मज़बूरी हो गई थी
क्योकि नंगा चेहरा लेकर जिंदगी से लड़ा जा सकता हैं
लेकिन नंगी देह लेकर अपनी जिंदगी से नहीं लड़ा जा सकता हैं
फिर भी मैं जी रहा था
क्योकि मेरे पास यादो का घना बोझ जो था
लेकिन एक हादसे के बाद मैं अपना दोनों हाथ गँवा बैठा था
जब हादसे के बाद मुझे होश आया तो मैं दोनों हाथो के साथ
अपना प्यार भी गँवा बैठा था
यह अहसास तब हुआ !
जब मेरे पास अपने दोनों हाथ नहीं थे
और मेरे सामने खड़ी थी मेरी प्रेमिकाएं
और समुद्र में लगातार सुराख़ किये जा रही थी
और मैं अपनी प्रेमिकाओं के कारनामे को कागज में दर्ज नहीं कर प् रहा था
तब याद आया प्यार में दोनों हाथो का होना कितना आवश्यक होता हैं
अब मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ
प्यार में सबसे ज्यादा दुःखी इंसान वही होता हैं
जिसके पास अपने दोनों हाथ नहीं होते
आज मैं इस अभाव को खड़ाऊं की तरह अपने पैरो में पहनकर
अपनी प्रेमिका के शहर में चौराहे की किसी प्रतिमा की तरह खड़ा हूँ
और हर रोज
सुबह --शाम मेरी प्रेमिका चौराहे पर रुकती हैं
और हरे सिंग्नल होने का इंतजार करती हैं
और मैं चौराहे पर किसी प्रतिमा की तरह खड़ा होकर
अपने लिए जीवित हूँ
पर दूसरों के लिए मरा हुआ हूँ। . . ।

नीतीश  मिश्र

Saturday 18 January 2014

नींद रात भर नहीं आती
__________________________
रात भर नींद अब नहीं आती
मैं जागते -जागते
कुछ अपने तो कुछ तुम्हारे दर्द को
पहचानने की एक कोशिश करता हूँ
इसलिए शाम होते ही
आसमान की ओर मुँह करके
भोंकने लगता हूँ
और इसी तरह भोँकते भोँकते
मैं दर्द को पहचान लिया हूँ
मेरे दर्द का नाम सुक्खु हैं
और कबीर हैं और त्रिलोकिया हैं ...
मैं अपने दर्द को पहचानते --पहचानते
समाज के सीने मे एक सुराख कर दिया हूँ
और आदमी होने के नकाब को उतारकर
एक आवारा कुत्ता बन गया हूँ ||

नीतीश मिश्र