हम
अपने प्यार और बाज़ार के
विस्तार में
भूल गए हैं
शहर में रहने वाले दर्जियों के नाम
और उनके चेहरे को ।
जो हर रात सोचते हैं
आदमियों को कैसे सभ्य बनाया जाए
हम भूल गए हैं
चौराहे पर बैठे हुए मोची को
जो सूरज के विरुद्ध मोर्चा खोलकर
आदमी को चलने का हुनर सिखाता हैं
हम भूल गए हैं
राजगीर की कला को
जिसके ऊपर हम बैठकर
दूसरे शहर को बताते हैं
हमारा मकान कैसा हैं ।
ऐसे ही हम भूल जायेंगे एक दिन
अपने शहर की हवा को
और धूप को ॥
अपने प्यार और बाज़ार के
विस्तार में
भूल गए हैं
शहर में रहने वाले दर्जियों के नाम
और उनके चेहरे को ।
जो हर रात सोचते हैं
आदमियों को कैसे सभ्य बनाया जाए
हम भूल गए हैं
चौराहे पर बैठे हुए मोची को
जो सूरज के विरुद्ध मोर्चा खोलकर
आदमी को चलने का हुनर सिखाता हैं
हम भूल गए हैं
राजगीर की कला को
जिसके ऊपर हम बैठकर
दूसरे शहर को बताते हैं
हमारा मकान कैसा हैं ।
ऐसे ही हम भूल जायेंगे एक दिन
अपने शहर की हवा को
और धूप को ॥
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