Wednesday 14 May 2014

माँ रखी हुई हैं गुल्लक मे सिक्के क़ी जगह मेरी आत्मा

जब तक हमारे पास
गुल्लक था
हमारे सपने
और जीवन दोनों सुरक्षित थे
हम गुल्लक मे सिक्के और सपने
दोनों बचाकर रखते थे ।
कभी - कभी माँ भी
और बाबूजी
रखते थे
हमारे सपनो के बीच अपने सपनों को
और दोनों खूब हँसते थे ।
जब घर के चूल्हे
और हमारे कपड़े एक साथ रोते थे
या माँ -बाबूजी के बदन से कपड़े सरकने लगते थे
या घर कि खिड़कियां रोने लगती
ऐसे में माँ
गुल्लक तोड़ देती
माँ को मालूम था
जब कोई साथ नहीं देगा तब गुल्लक ही काम आएगा
और घर के टूटते सपनों को बचा लेगा ।
आज जब मै माँ से इतना दूर हूँ
उसके बावजूद भी
माँ रखी हुई हैं
गुल्लक
और रखती हैं
मेरे लिए सपने
और सुनती हैं गुल्लक मे
मेरे सपनों की आवाज
पर माँ
ने अब कसम खा लिया हैं
की अब नहीं तोड़ेगी वह क़भी गुल्लक
क्योंकि माँ
रखी हुई हैं गुल्लक मे सिक्के क़ी जगह मेरी आत्मा
क्योकि माँ जानती हैं
उसका बेटा अब गुल्लक मे हीं सुऱक्षित रहेगा ॥

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