Thursday 1 May 2014

मैं काशी का रक्षक हूँ

मैं काशी का भक्षक नहीं रक्षक हूँ
माँ ने यही पर
मेरी आत्मा को सुई धागे से सीया था
और शब्दों संघर्षों से मुझे सजाया था
काशी ! में मैंने माँ से सीखा था
छोटी -छोटी खुशियों को बटोरकर
चूल्हे की राख मे दबा कर रखना चाहिए
काशी ! मेरे जन्म से पहले
मेरी माँ की पाठशाला  हैं
काशी ! मेरी प्रेमिका की मन्दिर हैं
जिस काशी की मैन पहरेदारी करता हूँ
उसी काशी मे मेरी प्रेमिका को सबसे खूबसूरत औरत होने का ख़िताब मिला हैं ।
काशी ! कभी मेरे लिये बाबा हैं तो कभी मेरी दादी
काशी ! कभी मेरे लिये माँ हैं तो कभी मेरी प्रेमिका
काशी ! कभी मेरे लिये जन्नत हैं तो क़भी मृत्यु
काशी ! कभी मेरी जवानी हैं तो क़भी बुढ़ापा
मेरा घर भी काशी मे हैं तो मेरी यारी भी काशी मे है
काशी ! कभी मेरी कविता हैं तो कांशी कभी मेरी जुबाँ भी है
काशी में जितनी ज्योति हैं उतना ही अँधेरा ।

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