Monday 19 May 2014

गाँवो में आदमी के बजाय कहीं देवता तो नहीं आ गए

जब गाँवो में घर नहीं थे
पर आदमी बहुत थे
पेड़  भी ……
आदमी और पेड़ जब -तक थे
तब गांव में जो देवता थे
उनका कद बहुत छोटा था
जब आदमी के पास अन्न नहीं था
फिर भी लोगों के पास भाषा थी
और गांव के हर मोड़ पर
सुनाई देती थी
प्रेम कहानियां ।
अब गांवों की लंबाई / चौड़ाई दोनों बढ़ गई
घर भी बहुत सारे बन गए
और दुकाने मुर्गियों की तरह खुल गई
राजनैतिक पार्टियों की तरह
कई मंदिर खड़े हो गए
लड़के / लड़कियां बहुत खूबसूरत दिखाई देने लगे
और पेड़ एक -एक कर गिरते गए
पिछले बीस सालों से
नहीं सुनाई दी
कोई प्रेम कहानी
और न ही कोई पेड़ लगने की खबर आई
मैं सोच रहा हूँ
आदमी के बजाय कहीं देवता तो नहीं आ गए । ।

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