कामरेड !
मैं तुम्हारे साथ रहते हुए सीखी थी
पेड़ो पर चढ़ना
और फल तोड़ना
मैं सीख ली
हँसुए से आसमान में छुपे हुए सपनों को हांसिल करना
मैं पहनना सीखी जींस के ऊपर कुर्ता
और पांव में टायर का चप्पल
इतना कुछ तुमसे सीखने के बाद माँ बहुत खुश थी
लेकिन बाबूजी कहते थे इसे घर से बाहर निकाल दो
नहीं तो कूल का नाश करेगी एक दिन
कामरेड !
मैं घर छोड़कर अपनी आँखों में बसी दूनिया को पाने के लिए
आ गई तुम्हारे शहर इलाहाबाद में
तब मुझे लगा कि
यहाँ गंगा और यमुना के संगम के अलावा
दो संस्क़ृतियों का भी संगम होता हैं । ।
मैं तुम्हारे साथ रहते हुए सीखी थी
पेड़ो पर चढ़ना
और फल तोड़ना
मैं सीख ली
हँसुए से आसमान में छुपे हुए सपनों को हांसिल करना
मैं पहनना सीखी जींस के ऊपर कुर्ता
और पांव में टायर का चप्पल
इतना कुछ तुमसे सीखने के बाद माँ बहुत खुश थी
लेकिन बाबूजी कहते थे इसे घर से बाहर निकाल दो
नहीं तो कूल का नाश करेगी एक दिन
कामरेड !
मैं घर छोड़कर अपनी आँखों में बसी दूनिया को पाने के लिए
आ गई तुम्हारे शहर इलाहाबाद में
तब मुझे लगा कि
यहाँ गंगा और यमुना के संगम के अलावा
दो संस्क़ृतियों का भी संगम होता हैं । ।