कामरेड तुम्हें याद हैं
जब मैं पहली बार
अपने बदन के अंधकार को उतारकर
तुम्हारे होंठ के दीये के नीचे आई थी
उस वक्त मेरे घर की दीवार बारिश से कांप रही थी
और घर के बाहर गेंहुअन पहरा दे रहा था
और आँगन में घूमता हुआ करैत खामोश था
शायद ! वह पीछे से मुझे डसना चाहता था
फिर भी मैं मेंढ़कों की टर्राहट और झींगुरो की ताल का सहारा लेकर
आगे बढ़ रही थी
मैं भूल गई थी
बांसवाड़ में रहने वाली चुरइ न को
जिससे पूरा गांव डरता था
फिर भी मैं लाल सलाम का महामंत्र जाप करते हुए आई थी तुम्हारे घर
और तुम खा रहे भात -चोखा
कामरेड तब
तुम मुझे बारिश की चादर ओढ़ाकर लिख रहे थे
अपने सिंद्धांतों का इंद्रधनुष
और मैं मूक थी तुम्हारे साये में दूब की तरह ॥
नीतीश मिश्र
जब मैं पहली बार
अपने बदन के अंधकार को उतारकर
तुम्हारे होंठ के दीये के नीचे आई थी
उस वक्त मेरे घर की दीवार बारिश से कांप रही थी
और घर के बाहर गेंहुअन पहरा दे रहा था
और आँगन में घूमता हुआ करैत खामोश था
शायद ! वह पीछे से मुझे डसना चाहता था
फिर भी मैं मेंढ़कों की टर्राहट और झींगुरो की ताल का सहारा लेकर
आगे बढ़ रही थी
मैं भूल गई थी
बांसवाड़ में रहने वाली चुरइ न को
जिससे पूरा गांव डरता था
फिर भी मैं लाल सलाम का महामंत्र जाप करते हुए आई थी तुम्हारे घर
और तुम खा रहे भात -चोखा
कामरेड तब
तुम मुझे बारिश की चादर ओढ़ाकर लिख रहे थे
अपने सिंद्धांतों का इंद्रधनुष
और मैं मूक थी तुम्हारे साये में दूब की तरह ॥
नीतीश मिश्र
No comments:
Post a Comment