कामरेड : याद हैं तुम्हें
तुम मुझे पहली बार और पहली रात
कुछ ऐसे छुए थे
जैसे - एक फूल को कोई रंग छूता हैं
जैसे -बारिश ने और हवा ने
अब तक मेरे बदन को छुआ था
तुम्हारे आंच में
मैं कुछ देर के लिए एक भीगी लकड़ी सी हो गई थी ।
और दूसरे पल मेरे बदन से
नदी की सहस्रों धाराएं फूट पड़ी थी
मेरे आगे जो अब दुनिया थी
उसकी हुलिया मेरे सपनों से बहुत -कुछ मिलती जुलती थी
मैं पहली बार तुम्हारे साएं में
लड़की होने के दायित्वबोध से मुक्त हुई थी
जब मैं पहली बार देह और शर्म के गझिन व्याकरण से मुक्त हुई
तब मुझे अहसास हुआ कि
मैं एक रंग हूँ और एक हवा हूँ
और आकाश का एक ऐसा कोना हूँ
जहाँ तुम कुछ देर के लिए
अपने सूरज को मुक्त छोड़ सकते हो । ।
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