ज़ारा जब कभी तुम्हारी
पुरानी तस्वीरों को देखता हूँ
दिखाई देता हैं मुझे
अपना स्पर्श ………
तुम तस्वीरों में सपनों की मानिंद सुन्दर लगती हो
तस्वीरों में दिखाई देती हैं
सहजता ।
और जब कभी तुम्हारी नई तस्वीर उठाता हूँ
और झांकता हूँ तुम्हारे देह में
मांस के बड़े - बड़े लोथड़ों से बदबू आती हैं
अपने समय के हिंसा की
और मैं डर जाता हूँ
विज्ञानं और बाजार से ।
जो एक गुड़ियाँ को शहर की
सबसे प्रदूषित नदी बना दिए
अब मैं नहीं देखना चाहता हूँ कुछ भी नया ऐसा
जो सपनों को और जीवन को मारकर अपने समय का आईना बनाते हैं । ।
पुरानी तस्वीरों को देखता हूँ
दिखाई देता हैं मुझे
अपना स्पर्श ………
तुम तस्वीरों में सपनों की मानिंद सुन्दर लगती हो
तस्वीरों में दिखाई देती हैं
सहजता ।
और जब कभी तुम्हारी नई तस्वीर उठाता हूँ
और झांकता हूँ तुम्हारे देह में
मांस के बड़े - बड़े लोथड़ों से बदबू आती हैं
अपने समय के हिंसा की
और मैं डर जाता हूँ
विज्ञानं और बाजार से ।
जो एक गुड़ियाँ को शहर की
सबसे प्रदूषित नदी बना दिए
अब मैं नहीं देखना चाहता हूँ कुछ भी नया ऐसा
जो सपनों को और जीवन को मारकर अपने समय का आईना बनाते हैं । ।
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