Sunday 1 June 2014

सोनाडीह के मेले से लौटते हुए

सोनाडीह मेले में
नहीं दिखाई दी
गुड की जलेबी 
न ही सील -बट्टे की दुकान
इस बार में नहीं आई थी लड़कियां
महिलाएं/  बच्चे ।
जबकि इस बार मेले में पूरा बाजार आया हुआ था
लेकिन ! मेले में नहीं थी कोई ऐसी आँख
या नहीं था कोई ऐसा हाथ
जो मेला का इंतजार कर रहा था
सूरज का एक साल से रंग देखकर
मेले में नहीं दिखाई दिया जोकर
जिसके कहानी साल भर गांव में सुनाई देती थी
मैं मेले में धूल की दीवार पार करते हुए
काफी आगे तक गया
पर नहीं दिखाई दिया मेले में
मेरा अपना खोया हुआ बचपन
और न ही वह आम का पेड़
जो बारहो महीने
देता था सबको छाँव
मेले में था कोई तो
सिर्फ  भगवती की तीन मूर्तियां
और हजारो भक्त
पर नहीं था मेले में कोई ऐसा
जो पत्थर की मूर्तियों को माँ की नज़र से देख सके । ।

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