Sunday 24 August 2014

मैंने अपने चेहरे  की हत्या नहीं की हैं
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अक्सर लोग अपने चेहरे की हत्या करके
जीने का एक प्रमाण देते हैं
लेकिन ! मैंने अपने चेहरे  की हत्या कभी नहीं की
यह अलग बात हैं कि ज़माने के साथ रहते हुए
मैं भूल गया अपना ही चेहरा
कई बार दुनिया को जानने के लिए
जरूरी होता हैं अपना चेहरा भूलना
दुनिया के साथ रहते हुए कभी - कभी मुझे याद आता था
मेरा चेहरा कैसा हैं ?
लेकिन ! लोगो छोटी -छोटी खुशियों के आगे
मुझे ध्यान ही नहीं रहता था अपना चेहरा की
मैं देखने मैं काला  हूँ या गोरा ।
एक समय बाद हम अपने जीवन के फलसफों की हत्या करके
बना लेते हैं अपने ऊपर एक चेहरा
नहीं तो जब डोमा जी उस्ताद जब पैदा हुआ था तो उसका भी चेहरा ठीक मेरे ही जैसा था
एक समय के बाद लोग बदल लेते हैं अपनी हुलिया
जब भी कभी कोई मुझसे पूछता हैं
तुम्हारा चेहरा कैसा हैं ?
तो मैं यही बताता हूँ
चौराहे पर खड़े मजदुर जैसा
एक लाचार बच्चे जैसा
कभी -कभी मेरा चेहरा भूख जैसा भी हो जाता हैं
मुझे अब शर्मिंदा नहीं होती हैं
अपने चेहरे पर
क्योकि इस चेहरे पर
अभी भी वह लिखती हैं
अपना सपना ॥

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