Sunday 2 November 2014

चलो कुछ बन जाते हैं

चलो तुम कुदाल बन जाओ
और मैं मिट्टी …
तुम खोदो मुझे परत दर परत
और छिपा के रख दो अपना संघर्ष .......
एक समय के बाद
तुम्हारा संघर्ष
अविराम विरोध की आवाज बन जायेगा आकाश के नीचे !
चलो मैं फूल बन जाता हूँ
और तुम रंग .......
ऐसे में हम एक हो जायेंगे
और कभी साख से टूटे तो एक दूसरे का साथ न छूटे
चलो तुम नदी बन जाओ
और मैं नाँव
और चलता रहे सूर्यास्त के बाद भी हमारा कारोबार !
चलो तुम अँधेरा बन जाओं
और मैं उजाला
जिससे मैं उत्तर सकूँ तुम्हारी अस्थियों में .......
चलो तुम सृष्टि बन जाओं
और मैं पहरेदार .......
चलो तुम पर्स बन जाओं  जेब
और बना ले अन्धेरें में अपना -अपना आयतन
या तुम मैदान बन जाओं
 धावक  .......
और मैं अंत तक दौड़ता रहूँ तुम्हारी शिराओं में
या तुम धुप बन जाओं और मैं हवा
जिससे सदी के अंत तक बना रहे हमारा स्पर्श .......
चाहे अयोध्या काबा रहे या न रहे
चलो मैं पतीली बन जाता हूँ  आंच .......

1 comment:

  1. Nitish Bhaiya aapki ye an take ki kavitayon men sabse badiya lag I ..badhai

    ReplyDelete