Monday 28 April 2014

हम कब तक चुप्पी के साथ रहेंगे

वे
डरा कर .......
धमकाकर .......
गालियां देकर
अपमानित करके
हमें सदियों के लिये चुप करा दिए !
वे
हमसे हमारी आँखों की रोशनी छीन लिए
उदासी छिन लिए .......
 हँसी छिन लिए .......
हमसे हमारी आदते छीन लिए
शब्द छिन लिए .......
दिमाग के धार को भोथरा कर दिए
वे , खुश हुये
जब उन्हें विश्वास हो गया की
हम केवल भूखे हैं
और भूख से लड़ना ही हमारी प्राथमिकता हैं
तब वे खुश हुए !
दिल्ली की दीवारो से तभी एक आवाज आई
चलो ! देश की अधिकांश आबादी लाचार तो हुईं
वे , खुश हैं
यह सोचकर की
चुप आदमी कभी बोल नहीं सकता
वे निश्चिन्त हैं क्योंकि
सभ्य आदमी सड़क पर अब मूतना छोड़ दिया हैं
उन्हें समझ मे आ गया हैं
उनके विचार का
उनके उत्पाद का
उनके हथियार का बाज़ार शब्दों से गर्म हैं ।

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