Wednesday 2 April 2014

मैं भूल रहा हूँ

मैं अँधेरे से ऊब  चुका हूँ
मैं भूल चुका  हूँ
हरेक आदमी के दूसरे नाम को
मैं भूल रहा हूँ
अपने साहस को
मैं पहली बार अपने साहस का परिचय
चोरी करने में दिया था
या किसी लड़की को चिट्ठी थमाते वक्त ।
मैं भूल रहा हूँ
उन तमाम चेहरों को जिनसे
मैंने किस्सा कहने का ढंग सीखा था
मैं भूल गया हूँ
जिसे मैंने पहली बार गाली दी थी
मैं भूल रहा हूँ
मुझे बाबूजी अधिक मारा करते थे या माँ
मैं धीरे - धीरे भूल चुका हूँ अपने दोस्तों के घर के पते ।

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