नींद रात भर नहीं आती
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रात भर नींद अब नहीं आती
मैं जागते -जागते
कुछ अपने तो कुछ तुम्हारे दर्द को
पहचानने की एक कोशिश करता हूँ
इसलिए शाम होते ही
आसमान की ओर मुँह करके
भोंकने लगता हूँ
और इसी तरह भोँकते भोँकते
मैं दर्द को पहचान लिया हूँ
मेरे दर्द का नाम सुक्खु हैं
और कबीर हैं और त्रिलोकिया हैं ...
मैं अपने दर्द को पहचानते --पहचानते
समाज के सीने मे एक सुराख कर दिया हूँ
और आदमी होने के नकाब को उतारकर
एक आवारा कुत्ता बन गया हूँ ||
नीतीश मिश्र
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रात भर नींद अब नहीं आती
मैं जागते -जागते
कुछ अपने तो कुछ तुम्हारे दर्द को
पहचानने की एक कोशिश करता हूँ
इसलिए शाम होते ही
आसमान की ओर मुँह करके
भोंकने लगता हूँ
और इसी तरह भोँकते भोँकते
मैं दर्द को पहचान लिया हूँ
मेरे दर्द का नाम सुक्खु हैं
और कबीर हैं और त्रिलोकिया हैं ...
मैं अपने दर्द को पहचानते --पहचानते
समाज के सीने मे एक सुराख कर दिया हूँ
और आदमी होने के नकाब को उतारकर
एक आवारा कुत्ता बन गया हूँ ||
नीतीश मिश्र
ओर कितना सोचना है
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