यमराज भी माँ के साथ
एक बेटे की तरह रहता हैं.…
जबकि माँ को मालूम हैं
उसके साथ एक ऐसा सांप हैं
जो कभी भी फुँफकार सकता हैं.....
इसके बावजूद भी
माँ कनई में से जीवन को छानकर
सदियों से धूप की अरगनी पर
छोटी --छोटी तमाम खुशियों को
सुखा रही हैं ।
उसकी जरा -जरा सी बात पर
यमराज उसके साये मैं बैठकर कभी हँसता हैं तो कभी रोता हैं
यह सोचकर कि कहीं वह अपने उद्देश्य में असफल न हो जाए
माँ कभी हवा को तो कभी बारिश को मनाती हुई कुछ देर के लिए
बटोरने लगती हैं अपने बच्चों कि खातिर वह तमाम खुशियां
जिसे एक आदमी कभी भी नहीं दे सकता
शायद ! उसकी इसी कला पर यमराज कुछ ऐसे रिझ गया हैं
कि वह भी माँ को माँ कहना शुरू कर दिया । ।
नीतीश मिश्र
एक बेटे की तरह रहता हैं.…
जबकि माँ को मालूम हैं
उसके साथ एक ऐसा सांप हैं
जो कभी भी फुँफकार सकता हैं.....
इसके बावजूद भी
माँ कनई में से जीवन को छानकर
सदियों से धूप की अरगनी पर
छोटी --छोटी तमाम खुशियों को
सुखा रही हैं ।
उसकी जरा -जरा सी बात पर
यमराज उसके साये मैं बैठकर कभी हँसता हैं तो कभी रोता हैं
यह सोचकर कि कहीं वह अपने उद्देश्य में असफल न हो जाए
माँ कभी हवा को तो कभी बारिश को मनाती हुई कुछ देर के लिए
बटोरने लगती हैं अपने बच्चों कि खातिर वह तमाम खुशियां
जिसे एक आदमी कभी भी नहीं दे सकता
शायद ! उसकी इसी कला पर यमराज कुछ ऐसे रिझ गया हैं
कि वह भी माँ को माँ कहना शुरू कर दिया । ।
नीतीश मिश्र
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