Saturday 5 December 2015

सड़को पर अपनी नींद खोजता हूँ

हर सुबह एक बीमार ख़्वाब लिए
नंगी सड़को पर दौड़ता हूँ
जहाँ हर रोज मौते पनाह लेती हैं
कभी -कभी लगता हैं
जो सड़के मुझे मंजिल का पता बताती हैं
उन्हीं सड़को पर एक दिन मैं आखिरी नींद सो जाऊंगा
कभी -कभी मैं उन सड़को पर अपनी नींद खोजता हूँ
नींद तो नहीं मिलती हैं
लेकिन मेरे जूते के साक्ष्य जरूर मिल जाते हैं और कुछ अठन्नी भी
जो किसी भिखारी के गिरे हुए होंगे
मैं उस अठन्नी में अपनी किस्मत खोजता हूँ
और सड़क के एक किनारे सुरक्षित अठन्नी को रख देता हूँ
और कुछ देर तक मैं सड़को को प्यार की नजर से देखता हूँ
क्योकि सड़के ही मेरे समय की सभ्यता की एक साक्ष्य हैं
शहर की हर सड़क शहर की एक कुंजी होती हैं
जो बंद और खुले शहरों का पता बताती हैं
शाम को लौटते वक्त ख्वाब मर चूका होता हैं मेरी बाँहो में
कमरे का दरवाजा खोलते ही मैं दूसरा ख्वाब उठा लेता हूँ
कभी कभी मौत के बीच खुद को बचाने के लिए जरुरी होता हैं
ख्वाबों का चुराना
रात जब खामोश होकर उतरने लगाती हैं कुएं में
मैं एक बार फिर सड़क पर आता हूँ
उस समय सड़क घायल होकर कराहती रहती हैं
और सभी सरकारी फरमानों पर हंसती रहती हैं
सड़क आहिस्ते से कहती हैं
श्मशान का रास्ता भी मेरे ही सीने से होकर जाता हैं
उसके बाद भी इस सरकार को मेरा रत्ती भर भी ख्याल नहीं हैं ॥
 

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