अपने प्यार की कुछ बातें
रह जाती हैं हवाओं के जिस्म में
और कुछ दीये की रोशनी में
प्यार में अनकही बातों का स्पंदन
नदी के तट पर हमें अक्सर बुलाती हैं
हमें प्यार की कुछ बाते याद आती हैं
जिन्हें हमने अभी तक कहा नहीं हैं
वो बाते चाय पीते वक्त
हम अपनी आँखों से
हरे --भरे आकाश में लिखते -रहते हैं
हम अपने प्यार में
ऐसे ही कुछ भीगते हुए
लिखते हैं एक ऐसी कविता
जो कल्पना न होकर
एक आवाज लगती हैं ।
नीतीश मिश्र
रह जाती हैं हवाओं के जिस्म में
और कुछ दीये की रोशनी में
प्यार में अनकही बातों का स्पंदन
नदी के तट पर हमें अक्सर बुलाती हैं
हमें प्यार की कुछ बाते याद आती हैं
जिन्हें हमने अभी तक कहा नहीं हैं
वो बाते चाय पीते वक्त
हम अपनी आँखों से
हरे --भरे आकाश में लिखते -रहते हैं
हम अपने प्यार में
ऐसे ही कुछ भीगते हुए
लिखते हैं एक ऐसी कविता
जो कल्पना न होकर
एक आवाज लगती हैं ।
नीतीश मिश्र
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