इलाहाबाद के मनमोहन चौराहे पर
रात के देखे हुए ख्वाबों को
सुबह की आँखों में बोलते /दौड़ते हुए
मैंने देखा हैं
कंकरीट के सैलाबों के बीच
और चाय की झीनी सी खुसबू में
ये शहर मुस्कराते हुए
फिरसे सूर्योदय की तरह
एक बार जिन्दा हो जाता हैं
और शहर की सड़कों की
रवानगी में तमाम उम्र की
संस्कृतियाँ अलकतरे की तरह फ़ैल कर
सबकी जिंदगी में एक तस्वीर की तरह जुड़ जाती हैं
चौराहे के एक कोने में
शब्बीर भाई :अपने आदम चहरे
केसाथ लोगों की
उदास /टूटी हुई जिंदगी को
सलीके से सीकर
फूल की तरह सजाकर
जिसकी जिंदगी उसी को सौंपकर
देश की दुर्दशा पर हंसकर रोते हैं
और सभी से ये कहते हैं
मैंने टूटी हुई जिंदगी को
एक आकार दिया और
एक गुमनाम व्यक्ति को
एक नाम और घर दिया और
बदले में दिल्ली से एक खबर आयी की
इलाहाबाद में एक देशद्रोही रहता हैं ।
शब्बीर की आँखें मेरे सामने खड़ी होकर
मुझसे पूछती हैं
भाई दिल्ली में अब किस तरह के लोग रहते हैं ।।
नीतीश मिश्र
रात के देखे हुए ख्वाबों को
सुबह की आँखों में बोलते /दौड़ते हुए
मैंने देखा हैं
कंकरीट के सैलाबों के बीच
और चाय की झीनी सी खुसबू में
ये शहर मुस्कराते हुए
फिरसे सूर्योदय की तरह
एक बार जिन्दा हो जाता हैं
और शहर की सड़कों की
रवानगी में तमाम उम्र की
संस्कृतियाँ अलकतरे की तरह फ़ैल कर
सबकी जिंदगी में एक तस्वीर की तरह जुड़ जाती हैं
चौराहे के एक कोने में
शब्बीर भाई :अपने आदम चहरे
केसाथ लोगों की
उदास /टूटी हुई जिंदगी को
सलीके से सीकर
फूल की तरह सजाकर
जिसकी जिंदगी उसी को सौंपकर
देश की दुर्दशा पर हंसकर रोते हैं
और सभी से ये कहते हैं
मैंने टूटी हुई जिंदगी को
एक आकार दिया और
एक गुमनाम व्यक्ति को
एक नाम और घर दिया और
बदले में दिल्ली से एक खबर आयी की
इलाहाबाद में एक देशद्रोही रहता हैं ।
शब्बीर की आँखें मेरे सामने खड़ी होकर
मुझसे पूछती हैं
भाई दिल्ली में अब किस तरह के लोग रहते हैं ।।
नीतीश मिश्र
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