जब तक मैं, माँ के पास था
उसके लिए मैं एक
सोने का खिलौना था,
और जब मैं परदेश की और
रुखसत किया तो ......
उसके लिए एक ...
दीवार बन गया,
अब ऐसे में वह मेरी इबादत हो गयी हैं
शहर भर में अब
जीतनी भी माँ दीखती हैं
सभी की शक्ल मेरी माँ
से मिलती--जुलती हैं
जब मैं अपनी आँखें बंद करता हूँ
तो एक ही ख्वाब दिखाई देता हैं
कि अभी भी मेरी माँ रात भर जागकर
मेरे लिए कोई अच्छा खिलौना बना रही हैं ||
नीतीश मिश्र
उसके लिए मैं एक
सोने का खिलौना था,
और जब मैं परदेश की और
रुखसत किया तो ......
उसके लिए एक ...
दीवार बन गया,
अब ऐसे में वह मेरी इबादत हो गयी हैं
शहर भर में अब
जीतनी भी माँ दीखती हैं
सभी की शक्ल मेरी माँ
से मिलती--जुलती हैं
जब मैं अपनी आँखें बंद करता हूँ
तो एक ही ख्वाब दिखाई देता हैं
कि अभी भी मेरी माँ रात भर जागकर
मेरे लिए कोई अच्छा खिलौना बना रही हैं ||
नीतीश मिश्र
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