औरत जब भी लड़ती हुई
दिखती हैं,
मुझे यही लगता हैं की
अभी राख में कहीं कोई
चिंगारी बची हुई हैं,
औरत जब भी, अपनी मायूसी
तोड़ती हैं
तो यही लगता हैं की
धरती अब करवट लेने वाली हैं |
औरत जब आगे बढकर बोलती हैं
शब्द भी नंगा होकर
अपने नए अर्थ की खोज में लग जाते हैं,
औरत जब जागती हैं
वर्षों से सोयी नदी बुल्बुलाने लगती हैं
औरत आग हैं,पानी हैं /हवा हैं
जब भी बुझाने जाओगे
एक दिन अपने वजूद के
लिए रोओगे .......[नीतीश मिश्र ]
दिखती हैं,
मुझे यही लगता हैं की
अभी राख में कहीं कोई
चिंगारी बची हुई हैं,
औरत जब भी, अपनी मायूसी
तोड़ती हैं
तो यही लगता हैं की
धरती अब करवट लेने वाली हैं |
औरत जब आगे बढकर बोलती हैं
शब्द भी नंगा होकर
अपने नए अर्थ की खोज में लग जाते हैं,
औरत जब जागती हैं
वर्षों से सोयी नदी बुल्बुलाने लगती हैं
औरत आग हैं,पानी हैं /हवा हैं
जब भी बुझाने जाओगे
एक दिन अपने वजूद के
लिए रोओगे .......[नीतीश मिश्र ]
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