तेरी यादों के साथ
रात का गुजरना
कुछ और ही होता हैं
मेरी कविताये
बिस्तर पर मुझसे
नाराज होकर
करवट बदलती रहती हैं
और हवा का हर झोंका
मेरे बदन पर
तुम्हारी अनकही बातों को
लिखती --रहती हैं
थिड़कियों से झांकता पेड़
तुम्हें आईना समझकर
देखता रहता हैं
खुदा के फरिस्तों को
वहम हो जाता हैं
कहिं कोई दूसरी दुनियां तो
नहीं बनने जा रही हैं
तेरी यादों के साथ रात गुजारना
कुछ और ही होता हैं ।।
नीतीश मिश्र
यादों के नरम एहसास
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